बीकानेर, वेटरनरी विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशालय द्वारा राज्य स्तरीय ई-पशुपालक चौपाल में “भेड़-बकरियों में परजीवी रोग” विषय पर विशेषज्ञ प्रो. राजेश कटोच ने पशुपालकों से संवाद किया। वेटरनरी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सतीश के. गर्ग ने चौपाल में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वेटरनरी विश्वविद्यालय द्वारा संचालित ई-पशुपालक चौपाल के माध्यम से पशुपालक घर बैठे लाभान्वित हो रहे है। पशुपालक भाई विशेषज्ञों के साथ अधिक से अधिक समस्याओं को साझा करके एवं उनके द्वारा बताए गए सुझावों को अपनाकर पशुओं को नुकसान से बचा सकते है। आयोजन सचिव एवं निदेशक प्रसार शिक्षा प्रो. राजेश कुमार धूड़िया ने विषय प्रवर्तन करते हुए बताया कि भेड़-बकरियों में विभिन्न प्रकार के अन्तः एवं बाह्य परजीवियों के संक्रमण से शारीरिक कमजोरी एवं उत्पादन क्षमता में लगातार गिरावट आती है तथा पशुपालकों का बीमारी को कारण समझ नहीं आता है अतः पशुपालक समय पर पशुओं की जांच करवाकर कृमिनाशक दवाईयों के माध्यम से इस रोग से निजात पा सकते है एवं आर्थिक नुकसान से अपने आप को बचा सकते है। आंमत्रित विशेषज्ञ प्रो.राजेश कटोच, विभागाध्यक्ष, पशु परजीवी विभाग, पशुचिकित्सा और पशुपालन संकाय, शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू ने विस्तृत चर्चा करते हुए बताया कि भेड़ों एवं बकरियों में बाह्य एवं अन्तः दोनो प्रकार के परजीवी पाऐं जाते है। बाह्य परजीवियों में मुख्यतः चीचंड या कीलनी, पिस्सु, मक्खी, मच्छर आदि है जबकि अन्तः परजीवियों में पर्णकृमि, फीताकृमि एवं गोलकृमि प्रमुख है। चूंकि भेड़-बकरी नदी-नालों एवं पोखरो के किनारे घास चरते है अतः इन परजीवियों के लार्वा घास एवं पानी के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाते है। शरीर में परजीवी यकृत एवं आंतो के साथ-साथ शरीर के विभिन्न अंगो को प्रभावित करते है। पशुओं के शरीर से रक्त, प्रोटीन एवं पोषक तत्वों का अवशोषण करते है फलस्वरूप पशुओं के शरीर में प्रोटीन एवं रक्त की कमी, पशुओं के शारीरिक वजन में गिरावट, शरीर के विभिन्न हिस्सो में सुजन, उत्पादन एवं प्रजनन क्षमता में गिरावट आदि प्रमुख लक्षण दिखाई देते है। परजीवियों के अधिक संक्रमण की स्थिति में पशुओं की मृत्यु भी हो जाती है। पशुओं में संक्रमण को रोकने के लिए समय-समय पर पशुचिकित्सक की सहायता से गोबर की जांच करवाकर उपयुक्त कृमिनाशक दवा से पशुओं का ईलाज करवाऐं। बाह्य परजीवियों की रोकथाम के लिए पशुओं के शरीर पर कृमिनाशक दवा के घोल को लगाऐं एवं पशुशाला में कृमियों की कोलॉनियो को कीटनाशक घोल से नष्ट करें। वर्ष में तीन बार पशुओं को कृमिनाशक दवाईया अवश्य पिलाएं ताकि पशु स्वस्थ रह सके एवं उत्पादन क्षमता में वृद्धि हो सके। ई-पशुपालक चौपाल में राज्यभर के पशुपालक, किसान, विश्वविद्यालय के अधिकारीगण फेसबुक पेज से जुड़े।
Trending Now
- डॉ.टैस्सीटोरी की पुण्यतिथि पर दो दिवसीय ओळू समारोह 22 व 23 को
- कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर बजरंग धोरा धाम में भक्तो ने किया दीपोत्सव
- 50 लाख की फिरौती मांगने वाले बदमाश को पुलिस ने पुणे से किया गिरफ्तार
- सामाजिक कार्यकर्ता रामेश्वरलाल बिश्नोई ने सोनी से की मुलाकात
- विधायक सारस्वत ने सरदारशहर में प्रधानमंत्री मोदी की मन की बात कार्यक्रम को सुना
- रेसटा की जिला कार्यकारिणी में सीताराम डूडी जिलाध्यक्ष व पवन शर्मा दूसरी बार निर्वाचित हुए जिला महामंत्री
- मिशन सरहद संवाद जिला कलेक्टर ने खाजूवाला के 14 बीडी और 20 बीडी में ग्रामीणों से किया संवाद
- लक्ष्मीनाथ जी मंदिर में दीपावली 1 नवंबर को मनाई जाएगी
- प्रमुख पंडि़तों व बुद्धिजीवियों की बैठक,एक नवम्बर को ही दीपावली मनाने पर सर्वसम्मति फैसला
- महावीर इंटरनेशनल वीरा कांफ्रेंस अमुधा दुबई में
- लावारिस हालात में मिला पीबीएम में कराया युवक को भर्ती
- गृह राज्य मंत्री बेढम से मिले विधायक,रोजगार मेले की दी जानकारी
- संयुक्त निदेशक स्कूल शिक्षा,बीकानेर के पद पर गोविंद माली ने किया पदभार ग्रहण,रेसटा ने किया बहुमान
- सामूहिक रूप से एक परिवार ने जहर खायां,तीन सदस्यों की हुई मौत,वहीं एक का गंभीर हालत में चल रहा है ईलाज
- 68वीं राजस्थान राज्य स्तरीय मुक्केबाजी प्रतियोगिता में जीते 6 पदक