बीकानेर,आचार्य श्री तुलसी शांति प्रतिष्ठान, नैतिकता के शक्तिपीठ प्रांगण में उपासक श्रेणी संगोष्ठी शिविर समारोह को संबोधित करते हुए मुनि चैतन्य कुमार “अमन” ने कहा – श्रम, समय और समझ शक्ति का सदुपयोग करना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए । उपासक वही होता है जो श्रमशील बनता हुआ श्रेय, शिव, सुख, शुभ की साधना करता है एवं श्रावक श्रमण की आराधना करके श्रमणोपासक बनता है । भारतीय संस्कृति में सदैव श्रम की प्रधानता रही है। ऋषि – मुनियों ने श्रम करके जो पाया उसे दुनिया को बांटा । मुनि “अमन” ने आगे कहा – आचार्य तुलसी की दूरगामी सोच ने इस उपासक श्रेणी का प्रवर्तन किया । लगभग 700 भाई – बहने उपासक की परीक्षा पास कर धर्मसंघ को अपनी महनीय सेवाएं दे रहे हैं। वर्तमान आचार्य श्री महाश्रमण जी इस और बड़ी जागरूकता से ध्यान दे रहे हैं। जहां साधु संत नहीं पहुंच पाते हैं । वहां पर शीघ्र उपासक श्रेणी पहुंचकर धर्म व अध्यात्म परक रचना का माहौल कर सुंदरतम काम कर देती है ।
इस अवसर पर मुनि प्रमोद कुमार ने कहा- एक उपासक को पाप भीरु होना चाहिए, उसकी अलग पहचान होती है । एक साधारण श्रावक की तुलना में एक उपासक का दर्जा अलग होता है । उसको अपना विवेक प्रशस्त रखते हुए प्रत्येक कार्य करना होता है, जिससे उसका अच्छा प्रभाव होता है ।
इस अवसर पर शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष हंसराज डागा ने स्वागत वक्तव्य दिया और संस्थान में चल रहे आयामों की जानकारी दी । वरिष्ठ उपासक प्राध्यापक निर्मल नौलखा ने जैन धर्म दर्शन व तत्वज्ञान का प्रशिक्षण दिया। उपासक एवं श्रावक कार्यकर्त्ता राजेंद्र जी सेठिया ने अपने सारगर्भित विचारों को प्रस्तुत किया । उपासक बहनों ने समूह स्वर में गीत प्रस्तुत किया । कार्यक्रम का संचालन राजेंद्र पारख ने किया ।