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बीकानेर,राजस्थान सरकार में हाल ही में बनाए शिक्षा मंत्री डा.बी ड़ी कल्ला को कोरोना महामारी के चलते ध्वस्त ( क्रेश) शिक्षा व्यवस्था मिली है। यह सच है कि ढाई साल से स्कूलों में शिक्षण व्यवस्था अनियमित है और शिक्षा प्रशासन व प्रबंधन विफल। यह बात अभिभावक, शिक्षक और सरकार भलीभांति महसूस करते हैं। इसका असर भावी पीढ़ी की शिक्षा पर नकारात्मक है। शिक्षण प्रबंधन से नकारात्मक प्रभाव को न्यूनतम कैसे किया जाए यह शिक्षा मंत्री के लिए चुनौति है। चुनौती भी तब है जब वे उसे स्वीकारें अन्यथा तो ढर्रे पर तो व्यवस्था चल रही है। कल्ला प्रदेश के हित में ऐसी कार्य दक्षता दिखा सकते हैं। उनका कहना है कि इंग्लिश माध्यम की महात्मा गांधी स्कूल, अंग्रेजी माध्यम से अगले साल से प्री प्राइमरी शिक्षा शुरू करेंगे। डिजिटल एज्युकेशन को बढ़ावा दिया जाएगा। वहीं अगले दो सालों में माध्यमिक उच्च माध्यमिक में डिजिटल शिक्षा का कार्य शुरू किया जाएगा। शिक्षा मंत्री कि जिम्मेदारी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को राजस्थान में लागू करना भी है। शिक्षक अपनी ड्यूटी को कितनी गंभीरता से लेते इस और निगरानी साथ ही शिक्षक डायरी को गंभीरता से लागू करवाना भी है। स्कूल शिक्षा परिषद के मंतव्यों की अनुपालना भी शिक्षा मंत्री की कार्य दक्षता पर ही निर्भर है। समग्र शिक्षा अभियान मूल उद्देश्यों से भटक कर यथास्थितिवादी हालत में आ गया है। स्टाफिंग पेटर्न माध्यमिक और आगे के स्तर पर नहीं है। स्कूलो को क्रमोन्नत होने के साथ पद नहीं भरते। विषयानुसार शिक्षक नहीं लगे हैं । स्थानांतरण नीति का कोई अता पता ही नहीं है। नवक्रमोन्नत विद्यालय में पदों का आवंटन नही। 2020 में क्रमोन्नत स्कूलों की यह स्थिति है। आजकल “राजस्थान स्कूल शिक्षा परिषद “जो कि एक प्रोजेक्ट है , द्वारा निरंतर सूचनाए दी जा रही है। निदेशालय व्यवस्था गौण होती जा रहा है। सूचनाओ से सम्बंधित इनके द्वारा जारी संदेशों का प्रवाह आगे से आगे अवकाश के दिन और रात में भी अनवरत बह रहा ।ऑनलाइन उपलब्ध सूचनाएं विभिन्न कार्यालयों द्वारा बार बार विद्यालयों से मांगी जा रही है ।
विभाग का किसी भी स्तर का अधिकारी इन अनुपयोगी और शिक्षण व्यवस्था को बर्बाद करनेवाले आदेशों के बारे में उच्च स्तरीय बैठको में औचित्य पूर्ण विरोध दर्ज नही करते।धरातल पर peeo ये सारी बातें जानते है परंतु कभी इनका विरोध करने की जरूरत नही करते है। आखिर ब्लॉक,जिला और संभाग स्तर पर शिक्षा विभाग में भारी भरकम पदों को सृजित कर उन पर अधिकारियों को बिठाने का क्या फायदा जबकि वे सही और गलत बात को बेबाकी से उच्च स्तर पर रखने का कर्तव्य नहीं निभा पाते है।
इनको ऑनलाइन करो,फोटो लिंक पर अपलोड करो,रोज रोज प्राथमिक शिक्षकों का प्रशिक्षण,आत्मरक्षा प्रशिक्षण,आरपी ट्रेनिंग,
स्कूलों की हालत यह हो गयी है पढ़ाने वाले काम जिनमे पहाड़े बुलवाना, हिंदी अंग्रेजी संस्कृत अंताक्षरी,सामान्यज्ञान प्रतियोगिता,छोटे छोटे खेल सब गायब हो चुके है या होते जा रहे हैं।
सब कुछ ऑनलाइन डेटा फीडिंग में बदलता जा रहा है।
परिषद से एक बजट आता है एसएफजी का,इसके अलावा 150 रुपये से लेकर 2000 रुपये तक के 10 तरह के बजट,
क्या क्या नाम पता ही नही,कब किस चीज के पैसे आये कोई सूचना नही,फिर डरा डरा के यूसी मांगते है।
इन सबकी एक राशि भेजकर एक पत्र में अलग अलग मद क्यों नही लिख देते।
पढ़ाने, गृह कार्य देने,जांच करने,सुधार करवाने की उस पुरानी पद्दति पर ही लौटना अच्छा है।
सभी जगह नेटवर्क नहीं,एक क्लर्क नही,चपरासी नही,,और ये सूचनाएं बनाना, फीड करना,ऑफलाइन भेजना इसमे प्रिंसिपल,क्लर्क व दो तीन और टीचर पूरे दिन लगते है तब भी काम हो नही पाता है।
जो चाहते है वैसा ऑफिस भी तो दो।

अनेक एनजीओ सेटिंग के अलावा कुछ नही कर रहे,विद्यालयों में खानापूर्ति कर करोड़ो का बजट उठा रहे हैं। निष्पादन समिति की मासिक बैठक का कंसेप्ट था कि उसमें सभी विभागों के अधिकारी आएंगे और विद्यालयों की समस्या समाधान मौके पर होगा।पर एक भी नही आता,बिजली,पानी,स्वास्थ्य,सड़क से सम्बंधित कोई भी नही।

सभी संस्था प्रधान/peeo तथ्यात्मक सुझाव अपने उच्चाधिकारियों को भिजवाकर अनावश्यक गतिविधियों से अवगत करवाए तथा विभागीय अधिकारी अपनी अभिशंषा के साथ उन्हें सक्षम स्तर पर अग्रेषित करने का कर्तव्य अवश्य करें। : उच्च माध्यमिक में क्रमोन्नत पर प्रथम वर्ष 1 व्यख्याता कई स्टाफिंग पैटर्न माध्यमिक में नही हो पाया संख्या वहाँ भी बढ़ी है। मंत्री जी स्कूली शिक्षा का बंटाधार हो रहा है। संभाल लो। विसंगतियां दूर कर वापस शिक्षा का वातावरण बनाओ। नहीं तो अगली पीढ़ी क्या कहेगी ?

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