बीकानेर,साहित्य समाज का दर्पण है, साहित्य द्वारा ही मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। भारत जैसे देश में साहित्य का प्रभाव मानव को, सही राह दिखाता रहा, अतः यहाँ मानवाधिकार कानून की आवश्यकता नहीं हुई। संस्कार जनित भारत मानवाधिकार सुरक्षित भारत होगा ।” उपर्युक्त विचार महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग एवम् विधि विभाग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित राष्ट्रीय परिचर्चा में बोलते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 विनोद कुमार सिंह ने व्यक्त किये।
कार्यक्रम में मुख्यवक्ता के रूप में विचार व्यक्त करते हुए कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो0 एस. के. अग्रवाल ने कहा कि स्वातंत्र्योत्तर भारत में साहित्यकारों द्वारा समाज की नकारात्मकता को ही प्रदर्शित किया गया है, समाज में व्याप्त सकारात्मकता को साहित्य के माध्यम से प्रस्तुत करना होगा जिससे मानव अधिकार के प्रति जनमानस में अनुपालना की भावना पैदा की जा सके। उन्होंने विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि साहित्य की कुछ विधाओं का जन्म ही मानवाधिकार संरक्षण हेतु हुआ। इसके पश्चात् हुये विद्यार्थी संवाद का मार्गदर्शन करते हुए प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता डॉ0 प्रभा भार्गव ने बताया कि सकारात्मकता के साथ ही समाज को मानवाधिकार अनुपालन हेतु प्रेरित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि साहित्यकार ह्यूमन राइट्स एक्टिविट्स एवम् हय्मन राइटस एक्टिविट्स् साहित्यकार की भूमिका का निर्वहन करे। उन्होंने कहा, मानवाधिकार दिवस की सार्थकता इसमें है कि हम सूचना सम्पन्न होने के साथ-साथ चेतना सम्पन्न भी हो।
कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के सभी संकाय सदस्य, विश्वविद्यालय के छा़त्र एवं कर्मचारी उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरूआत सरस्वती वंदना से हुई। कार्यक्रम का संचालन डॉ0 संतोष कंवर शेखावत ने किया।
(प्रो. एस. के. अग्रवाल)
निदेशक, स्कूल ऑफ लॉ