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बीकानेर,डा कृष्णलाल बिश्नोई द्वारा सम्पादित एवं प्रकाशित गुरु जंभेश्वर जी के श्रीमुख से उच्चरित मानव हितार्थ वाणी को आमजन तक सर्वसुलभ सबदात्मक माला रूपी भावों को और जांभाणी संतों की वाणियों को मूल ग्रंथों से चुन चुन कर बनाया गया एक अमृत रूपी सार ग्रंथ (जो दो भागों में है)”विश्नोई संतों की वाणियों का पर्यालोचन ” है।
जांभाणी साहित्य अकादमी बीकानेर द्वारा आयोजित ऑनलाइन व्याख्यानमाला के 60 वें संवाद श्रृंखला के मुख्य वक्ता के रूप में वार्ताकार रहे सेवानिवृत्त वरिष्ठ शोध निदेशक (राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान) डॉक्टर कृष्ण लाल जी विश्नोई ने जांभाणी साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित संवाद श्रृंखला के अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए यह बातें कहीं ।
उन्होंने बताया कि किस तरह से गुरु जंभेश्वर भगवान ने अपनी वाणी के द्वारा समस्त मानवता के हित के लिए अपनी वाणी कही थी।उनके पश्चात उनके हजूरी संत कवियों (जिनमें ना केवल विश्नोई संप्रदाय के ही नहीं बल्कि अन्य सभी संप्रदायों के भी कवि शामिल हैं) के मूल हस्तलिखित ग्रंथों का जो अमृत रूपी सार है इन ग्रंथों में संकलित किया है।इन ग्रंथों के माध्यम से मैंने विश्नोई संतो की वाणियों का पर्यालोचन करने का प्रयास भी किया है। क्योंकि जांभाणी साहित्य परंपरा में 300 से अधिक कवि साहित्यकार हुए हैं और उन सब के मूल ग्रंथ को बारीकी से अध्ययन,मनन करके पुस्तक रूप में संकलित करना एक तरह से गुरु महाराज की वाणी को आमजन तक सुलभ करवाना ही मुख्य उद्देश्य रहा है। क्योंकि मेरा कार्य भी राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में ऐसा ही रहा है। मुझे वहां उन मूल ग्रंथों को बारीकी से समझने, पढ़ने और देखने का अवसर प्राप्त हुआ था।और अब समयानुकूल परिणात्मक इस ग्रंथ की रचना की गई है। सामान्य संत कवियों ने अपनी वाणी के माध्यम से जीव जगत सहित मानव हितार्थ अनेक बातें बताई है।उन सब बातों को इस ग्रंथ में शामिल किया गया है। और अगर बात की जाए रिसर्च की तो इस एक ग्रंथ के माध्यम से ऐसे अनेक विषय रिसर्च स्कॉलरो को उपलब्ध कराए गए हैं।जिनसे वे आगामी भविष्य में अपने शोध कार्य के दौरान ये विषय चुन सकेंगे ।
इस ग्रंथ में तेजो जी चारण, ऊदोजी,मेहोजी,वील्होजी,केसोजी,परमानंद जी बणियाल सहित अनेकों संतों की रचनाओं का संग्रह किया गया है।बात करें परमानंद जी वणियाल के पोथों की,तो उनके पोथों से कई रिसर्च हो सकती है, इतना विस्तृत उनका कार्य है।उन सब महान संत कवियों द्वारा समयानुकूल चलाई गई लेखनी के माध्यम से उपलब्ध मूल ग्रंथो से किसी विशेष रचना को चुनना बहुत कठिनाई भरा कार्य रहा है ऐसा डा.बिश्नोई ने बताया।
ऐतिहासिक और साहित्यिक दृष्टि से इन मूल ग्रंथो का रिसर्च की दृष्टि से बहुत महत्व है। इन महत्वपूर्ण विषयों की आमजन तक आसानी से पहुंच हो और अनेक नए विषयों पर पीएच. डी हो इसलिए इस ग्रंथ को लिपिबद्ध किया है।बिश्नोई संतो ने बहुत कड़े परिश्रम द्वारा विषम परिस्थितियों में जो लेखनी चलाई वो वास्तव में पूजनीय है। वर्तमान सभी समाजों और विद्यार्थियों सहित आमजन को इन संतो की वाणी का अध्ययन करना चाहिये ऐसा डा बिश्नोई का कहना है।
संवाद श्रृंखला के संयोजक विनोद जम्भदास ने भी डा बिश्नोई के इन ग्रंथों की भूरि भूरि प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि जाम्भाणी साहित्य अकादमी द्वारा कोरोना काल से शुरू इस ऑनलाइन वार्ता में समाजोहित के अनेक विषयों पर ऐसी वार्ताओं का आयोजन किया है।कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ हरिराम बिश्नोई ने कहा कि ऐसे महत्वपूर्ण विषयों पर आयोजित व्याख्यानमाला में आमजन को बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए।समग्र जाम्भाणी साहित्य पर ये ग्रंथ डा.बिश्नोई की सार गर्भित टिप्पणी है। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए डॉ मनमोहन लटियाल ने कहा कि समाज की वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर ऐसे आयोजनों का होना बहुत जरूरी है। उन्होंने डा बिश्नोई द्वारा बताए गये सुझावों को मानने पर बल दिया।
कार्यक्रम के तकनीकी संयोजक डॉ लालचंद जी ने कहा कि वर्तमान में तकनीक का भरपूर उपयोग करके आमजन को मानव हितार्थ के कार्यक्रमों को सुनना चाहिये। उन्होंने अकादमी के सभी सदस्यों से ऐसे कार्यक्रमों से जुड़ने की अपील की।

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