बीकानेर,प्रथम चरण के साथ साथ फिर दूसरे चरण में मतदाताओं का स्वाभिमान थोड़ा जागा । थोड़ा बहुत मतदान प्रतिशत बढ़ा ,पहले से बेहतर रहा , मतदाताओं में थोड़ा बहुत उत्साह दिखा। लेकिन वो फिर भी आशा के अनुकूल नहीं रहा। चुनावों में भाजपा कार्यकर्ताओं ने सक्रियता की बजाय जो निरिसता और उदासीनता दिखाई उसके परिणाम कोई विशेष आशाजनक नज़र नहीं दिखाई दिया। फिर भी मर- घिट कर पहले चरण से ज़्यादा वोट पड़ गये। इसका मतलब यह नहीं कि सरकार मोदी जी की नहीं बनेगी। ऐसा तो कभी सपने में भी नहीं सोचा जा सकता। सरकार तो मोदीजी की ही बनेगी वो भी ४०० के पार में अब आशंका नहीं हो सकती है। क्योंकि चुनाव में उम्मीदवार – मोदी, योगी, शाह , गड़करी , नद्दा जी के भाषणों को देखते हुए जीत तो जाएँगे ही लेकिन वोट देने के लिए मतदाता घर से निकलने मे फिर भी उदासीन रहा। क्योंकि कार्यकर्ताओं ने ऐसे कोई प्रयास नहीं किए जो मतदाता को चुनाव बूथ तक पहुँचाए। उनका घमण्ड या इतना अधिक आत्मविश्वास भाजपा को कुछ महँगा पड़ेगा। मोदी जी किसी क़ीमत में हारेंगे तो नहीं लेकिन आने वाले सालों में अगली पंचवर्षीय में इस तरह की सुस्ती कार्यकर्ता दिखाते रहे तो शायद आगे की राह आसान नहीं होगी। इन चुनावों में भाजपा कार्यकर्ताओं में एक अलग ही लेवल का आत्मविश्वास दिखाई दिया। उन्हें पूरा भरोसा रहा कि मोदी जी ने इतने शानदार और अदभुत काम किए है जिससे वोटर ख़ुद उन्हें वोट देने आएगा जैसे उनका इन पर कोई उधार बाक़ी रहा हो। दरअसल में कार्यकर्ता और मोदी भक्त, चुनाव प्रचार- प्रसार में उनके क्षेत्र में आने वाले नेता के इर्द- गिर्द रहे हैं उनके साथ फ़ोटो खिंचवाते रहे , हैं उनकी निगाहो में आने के लिए अख़बारो में अपना नाम देते रहे हैं। चुनाव प्रचार के लिए पार्टी उम्मीदवार को जिताने की तहेदिल से जुगत नहीं हुई। हुई तो आने वालों का स्वागत सत्कार उनके साथ फ़ोटो सेशन करवाकर नज़दीकिया बढ़ाने की जुगत।और उम्मीदवार के सामने दिखावा। उम्मीद के अनुरूप किसी भी प्रकार का न तो कोई प्रचार हुआ न ही किसी तरह का जनसंपर्क। किसी भी कार्यकर्ता ने घर घर जाकर सम्पर्क नहीं किया। सब ने यही सोच लिया कि मतदाता मोदी जी को वोट देने अपने आप आएगा। दूसरी तरफ़ कांग्रेस जान रही थी कि वो तो हारेंगे लेकिन फिर भी वो सड़को पर थे। सक्रिय थे चाहे मोदी जी ने कितने ही अच्छे काम किए हों ।पर यह भारत देश हैं जहां जिन्दा रहने के लिए भी आपको सबूत देना पड़ता है। फिर चाहे वो चुनावी समय में ही आपको देना पड़े लेकिन यहाँ भी अगर आप मुर्दों की तरह रहोगे तो इसके परिणाम आपको स्वयं भुगतने होंगे। सांसद हो, विधायक हो, कार्यकर्ता हो उनका यह विश्वास कितना घातक हो सकता हैं यह भाजपा को समझना होंगा। जिसे आप विश्वास समझ रहे हैं असल में जनता इसे आपका घमण्ड समझेगी, और फिर एक दिन आपको उत्तार कर नीचे फेंक देगी। निचले स्तर पर इस तरह की लपरवाई का भुगतान ऊपर बैठे ईमानदार लोगो को भुगतना पड़ेगा ये निश्चित हैं। उनकी पूरी मेहनत धरी के धरी रह जायेगी। अगर भाजपा चाहती हैं कि ऐसा न हो तो अभी भी बहुत समय बाक़ी है चुनाव के पाँच चरण बाक़ी हैं। समय रहते सँभल जाना चाहिए और मतदाताओं को जागरूक कर उन्हें वोट के मूल्य को समझाना हैं ख़ुद जागना है और मतदाताओं को भी जगाना हैं। शत प्रतिशत मतदान के क़रीब पहुँचना हैं उन्हें यह बताना है कि सुनहरा भविष्य उनका इन्तज़ार कर रहा हैं।
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