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बीकानेर, साहित्य अकादेमी नई दिल्ली और रमेश इंग्लिश सीनियर सैकंडरी स्कूल के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को राजस्थानी और अनुवाद विषय पर एक दिवसीय सिम्पोजियम का आयोजन किया गया। इस दौरान राजस्थानी के वरिष्ठ लेखक, आलोचक व समालोचक अर्जुनदेव चारण ने कहा कि अव्यक्त को अपने अनुभव में डुबाकर व्यक्त करना ही अनुवाद है। साहित्य अकादेमी की तरफ से ही दूसरा सिम्पोजियम रविवार को नेहरु शारदा पीठ कॉलेज में आयोजित होगा।

अंत्योदय नगर स्थित रमेश इंग्लिश स्कूल के ऑडिटोरियम में आयोजित कार्यक्रम में चारण ने अनुवाद की बारीकियों का जिक्र किया। अव्यक्त को अपने अनुभव में डुबा कर व्यक्त करना अनुवाद है। डा.चारण ने सृष्टि की हर रचना को अनुवाद बताया। उन्होंने कहा कि ‘माघ पंडित अर डोकरी री बात’ के जरिये विजयदान देथा ‘बिज्जी’ के कृतित्व का जिक्र करते हुए कहा कि बिज्जी ने राजस्थानी लोक को अपने समय के ‘राजा-बणिया’ जैसे जिक्र से समृद्ध करने का काम किया। डा.चारण ले अनुवाद में मूल की आत्मा को संचित रखते हुए ‘स्वीकरण और हरण’ की साहित्यिक प्रवृत्तियों का तंज के अंदाज में जिक्र किया।
प्रख्यात लेखक कैलाश कबीर ने कहा कि एक से दूसरी भाषा और दूसरी से तीसरी भाषा में अनुवाद करते समय कई बार मूल कृति का अर्थ ही बदल जाता है। ‘रशियन में लिखी एक पुस्तक का अंग्रेजी में अनुवाद होता है। उसको हिन्दी में लाने के लिए अंग्रेजी अनुवाद का अनुवाद होता है। ऐसे में राजस्थानी में इसे लाना हो तो रशियन के अंग्रेजी अनुवाद के हिन्दी अनुवाद का अनुवाद होता है। इस अनुवाद के अनुवाद के अनुवाद तक पहुंचते-पहुंचते लेखन की मूल आत्मा कहीं मर जाती है। उसके साथ न्याय नहीं हो पाता। कबीर ने राजस्थानी अनुवाद करने के लिए दूसरी भाषाओं के वैकल्पिक शब्दों का उपयोग करने से परहेज की नसीहत दी। इसी सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में सेनुका हर्ष ने कहा कि साहित्य और शिक्षा का जुड़ाव है। शिक्षण संस्थाओं को साहित्यिक आयोजनों में आगे आना चाहिए ताकि बच्चेों में रुचि जागृत हो सके।
एक अन्य सत्र में राम स्वरूप किसान, शंकर सिंह राजपुरोहित और पूर्ण शर्मा “पूरण” ने राजस्थानी गद्य साहित्य और अनुवाद विषय पर अपनी बात रखी। रामस्वरूप किसान ने कहा, खराब अनुवाद मूल लेखन की हत्या कर देता है। शंकर सिंह राजपुरोहित ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लेखन रूचि का खुलासा करते हुए राजस्थानी-गुजराती में ज्यादा अनुवाद होने का जिक्र किया। उन्होंने राजस्थानी के अनुवादकों की ओर से किये गये काम को भी गिनाया। पूरण शर्मा ‘पूरण’ ने भी राजस्थानी में अनुवादकर्म की बारीकियां बताई।
एक सत्र में साहित्य अकादमी के राजस्थानी परामर्श मंडल सदस्य संजय पुरोहित और लेखिया कृष्णा जाखड़ ने राजस्थानी पद्य साहित्य में अनुवाद के हालात से रूबरू करवाया। समापन सत्र में साहित्यकार डा.बृजरतन जोशी और मधु आचार्य आशावादी ने आयोजन की महत्ता और इससे राजस्थानी साहित्य, लेखक व आम पाठक को मिलने वाले लाभ का जिक्र किया। विविध सत्रों का संचालन संजय पुरोहित, सविता जोशी और नगेन्द्र किराड़ू ने किया।
आयोजन में लेखक व साहित्यकार हरीश बी.शर्मा, साहित्यकार हरिशंकर आचार्य, प्रकाशक प्रशांत बिस्सा, साहित्यकार गौरीशंकर प्रजापत, नमामीशंकर आचार्य, मनीष जोशी, योगेंद्र पुरोहित, डॉ.प्रमोद चमोली, आर.के.सुतार, उमेश बोहरा, राजेंद्र जोशी, कमल रंगा, गिरिराज व्यास, सोनाली सुतार, आशीष पुरोहित, योगेंद्र पुरोहित, राजाराम स्वर्णकार, अजय जोशी, सविता जोशी, कमल रंगा, आनंद हर्ष, अमिताभ हर्ष आदि उपस्थित रहे।

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