बीकानेर,भगवान महावीर ने देव गति के चार कारण बताए हैं। पहला शराक संयम, दूसरा संयमा संयम, तीसरा अकाम निर्जरा और चौथा बाल तप करता जीव यह देव गति आयु का बंध करते हैं। संयम और संबल एक दूसरे के पूरक हैं। जिसके जीवन में संयम आ गया, उसके जीवन में संबल आएगा ही आएगा। इससे आचरण में अहिंसा आ जाती है। यह सद्विचार श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने व्यक्त किए। आचार्य श्री ने सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में शनिवार को अपने नित्य प्रवचन के दौरान व्याख्यान देते हुए कहा कि संयम में रमण करता जीव साता वेदनीय कर्म का उपार्जन करता है। साता वेदनीय कर्म का यह महत्वपूर्ण बोल है। संयम यम और नियम से भारी पड़ता है। यम और नियम तो फिर भी लोग कर लेते हैं लेकिन संयम को हर कोई ग्रहण नहीं कर सकता।
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने बताया कि वास्तविक संयम उन व्यक्तियों के जीवन में घटित होता है, जिनके जीवन में अहिंसा आ जाती है। लेकिन श्रावकों के जीवन में हिंसा ज्यादा है। जितनी ज्यादा हिंसा, उतनी अराजकता, असंतोष रहता है। इससे बैर से बैर, विरोध से विरोध, विग्रह से विग्रह बढ़ते जाते हैं। इसका उपाय केवल सहन करना है। जिसके जीवन में सहनशीलता आ गई, उसके जीवन में अहिंसा भी आ जाती है।
दो तरह के जागरण, दो तरह की सुश्रुती
भजन ‘उठो नर- नारियों जागो, जगाने संत आए हैं, धर्म-उपदेश यह प्यारा, सुनाने संत आए हैं’ आदमी दो तरह से जागरण करता है। एक शरीर पिण्ड से, दूसरा आत्मा का जागरण । हम आत्मा से जागे हैं तो इसका थर्मामीटर क्या है…?,। महाराज साहब ने कहा – बंधुओ, जो आत्मा से जागा है, उसे संयम, तप, नियम, त्याग प्यारे लगेगें। जिन्हें यह प्यारे नहीं लगेगें, वह शरीर पिंड से भले ही जगे हों, आत्मा से नहीं जाग रहे हैं। कितने-कितने काल से हमारी आत्मा सोई रहती है, विषयों में भटकती रहती है। इसे जगाने के लिए ही संत आते हैं, संत जागृति के लिए, जागरण के लिए आते हैं। वह जब आते हैं तो एक लक्ष्य लेकर आते हैं और वह है सोई हुई आत्माओं को जगाना। इसलिए सत्संग का लाभ लो, संतों की वाणी का लाभ लो, क्योंकि जगा मनुष्य ही देवगति में जाता है।
आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं
आचार्य श्री ने ‘वल्र्ड सुसाइड प्रिवेन्शन डे’ पर अपने व्याख्यान में कहा कि नर गति में जाने का एक कारण पंचेन्द्रिय हिंसा भी है, जिसे आत्महत्या कहा जाता है। पंचेन्द्रिय हिंसा से एक ही गति होती है और वह है नर गति। भगवान महावीर ने नरक के चार कारण बताए हैं। पहला महारंभ, दूसरा महा परिग्रह,तीसरा मद्य मांस का सेवन, चौथा पंचेन्द्रिय की हिंसा है। भारत में विशेषतौर से युवक- युवतियों में आत्महत्या की प्रवृति बढ़ी है। हमारा भारत ही नहीं अन्य देश भी आत्महत्या मुक्त होना चाहिए। ऐसा वातावरण बनाना बहुत जरूरी है। आज लोगों में आक्रोश है, ईष्र्या है, एक- दूसरे के प्रति द्वेष की भावना रहती है। इससे व्य1ित कुंठित हो जाता है। लेकिन वे यह नहीं जानते कि समय बदलता रहता है, यह सदैव एक जैसा नहीं रहता। परिस्थितियां भी समय के साथ बदलती जाती है। लेकिन तब तक धैर्य रखना पड़ता है। थोड़ा सा भी धैर्य, आत्मविश्वास हम रखते हैं तो परिस्थितियों पर विजय पा सकते हैं। जिनके मन में थोड़ी सी असफलता, आवेश, अधीरता पैदा हो जाती है, वह ऐसे कृत्य करते हैं। इससे जिंदगी भर पश्चाताप रह जाता है। महाराज साहब ने कहा बंधुओ आत्महत्या करने वाला तो मरकर चला जाता है। लेकिन अपने पीछे कई जिंदगीया बर्बाद कर देता है।
गणमान्यजनों ने भरे संकल्प पत्र
‘वल्र्ड सुसाइड प्रिवेन्शन डे ’ दस सितंबर के अवसर पर आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने क्रान्तिकारी आगाज करते हुए ‘मैं आत्महत्या नहीं करुंगा’ का संकल्प पत्र भरवाये जाने का अभियान शुरू किया है। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि गृह मंत्री अमित शाह, केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, कैलाश चौधरी ने दिल्ली से अभियान की शुरूआत संकल्प पत्र भरकर की, बीकानेर में महापौर सुशीला कंवर राजपुरोहित, पूर्व संसदीय सचिव कन्हैयालाल झंवर, पूर्व महापौर नारायण चोपड़ा, नायब तहसीलदार कैलाशदान चारण, जैन पाठशाला सभा के अध्यक्ष विजय कोचर ने आचार्य श्री के सानिध्य में संकल्प पत्र भरा। साथ ही सभा में संकल्प लिया कि वे अन्य लोगों को भी इस कार्य के लिए प्रेरित करेंगे। बच्छराज लूणावत और संजय सांड ने चलाए जा रहे अभियान की जानकारी देते हुए बताया कि पूरे देश में पांच करोड़ संकल्प पत्र भरवाए जाएंगे।
जैन महासभा द्वारा तपस्वियों का अभिनंदन रविवार को
संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि चातुर्मास के अवसर पर श्रावक-श्राविकाओं द्वारा तप किया जा रहा है। जैन महासभा सेठ धनराज ढ़ढ्ढा कोटड़ी में 11 सितंबर रविवार को सभी तपस्वी लोगों का सम्मान करेगा।