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25जून 1975 की वो रात, जो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास पर कभी ना मिटने वाला दाग छोड़ गई t । 1975 में आज ही के दिन तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर आपातकाल की घोषणा की थी।जिसके बाद लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार छीन लिए गए।आपातकाल यानि विपत्ति का काल। भारतीय संविधान में आपातकाल एक ऐसा प्रावधान है। जिसका इस्तेमाल तब होता है जब देश पर किसी आंतरिक, बाहरी या आर्थिक रूप से किसी तरह के खतरे की आशंका होती है।आपातकाल वो अवधि है जिसमें सत्ता की पूरी कमान प्रधानमंत्री के हाथ में आ जाती है। अगर राष्ट्रपति को लगता है कि देश को आंतरिक, बाहरी या आर्थिक खतरा हो सकता है तो वह आपातकाल लागू कर सकता है।भारत के संविधान निर्माताओं ने आपातकाल मसलन देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा खतरे में होने जैसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए ये प्रावधान किया। जिसके तहत देश की सरकार बिना बेरोकटोक गंभीर फैसले ले सक। मान लीजिए कि हमारे देश पर कोई पड़ोसी देश हमला कर दे तो ऐसी आपात स्थिति में संविधान भारत सरकार को अधिक शक्तियां देता है, जिनके जरिये वो अपने हिसाब से फैसला ले सकती है। जबकि आपातकाल ना होने या सामान्य परिस्थिति में संसद में बिल पास कराना पड़ेगा और लोकतंत्र की परंपराओं के मुताबिक चलना होगा लेकिन आपातकाल लगने पर सरकार अपनी तरफ से कोई भी फैसला ले सकती है।जून 1975 की रात को लगा आपातकाल अनुच्छेद 352 के तहत लगाया गया। देश में राष्ट्रीय आपातकाल या नेशनल इमरजेंसी का ऐलान देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किया जाता है जैसे युद्ध या बाहरी आक्रमण की स्थिति में। देश में आपातकाल केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जाता है। अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल के दौरान सरकार को असीमित अधिकार मिलते हैं लेकिन देश के नागरिकों के वो मौलिक अधिकार छीन लिए जाते हैं, जो उन्हें देश का संविधान ही देता है बहरहाल सियासत उस आपातकाल को अपने फायदे लिए इस्तेमाल करती रही है और आगे भी करती रहेगी। लेकिन आपातकाल एक सबक है कि अपने स्वार्थ के लिए शक्तियों का दुरुपयोग करने वालों को जनता सबक सिखाती है। भारत सहित दुनियाभर में इसकी सैकड़ों मिसालें हैं।

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