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बीकानेर। कोविड-१९ को हराने और मरीजों का मनोबल बनाए रखने में चिकित्सकों ने अहम भूमिका निभाई है। घर-परिवार की चिंता छोड़कर मरीजों की सेवा करना और उन्हें कोरोना से उबारने में चिकित्सकों ने दिन-रात एक कर दिया। कोविड-१९ की शुरुआत के साथ ही जैसे-जैसे मामले बढ़े तो चिकित्सकों की जिम्मेदारी दोगुनी हो गई। कई महिला चिकित्सकों ने अपने परिवार की जिम्मेदारियों को त्यागकर मरीजों की सेवा में अपना पूरा समय दिया। किसी ने मरीजों का समय पर दवा दी, किसी ने योग-प्रणायाम सिखाया तो किसी ने आत्मविश्वास बढ़ाने के प्रयास किए। घर-परिवार के लोग चिकित्सकों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहते हैं लेकिन इनका कहना है कि वे भी सैनिकों की तरह देश की सेवा में लगे हुए हैं। कोविड-१९ के इलाज में एक-दो चिकित्सक नहीं सैकड़ों चिकित्सक जान की परवाह नहीं कर जुटे हुए हैं। एसपी मेडिकल कॉलेज से संबद्ध पीबीएम अस्पताल के मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. सुरेन्द्र कुमार वर्मा ने कोविड-१९ के दौर के अनुभव साझा किए।

दिन का पता न रात का, एक कॉल पर पहुंच जाते हैं वार्ड में
एसपी मेडिकल कॉलेज से संबद्ध पीबीएम अस्पताल के मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. सुरेन्द्र वर्मा को कॉलेज प्रशासन ने बीकानेर में कोरोना की दस्तक देने के साथ ही नोडल ऑफिसर बनाकर जिम्मेदारी सौंपी। वे अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहे हैं। वे पिछले डेढ़ साल से मरीजों की सेवा करने में दिन-रात जुटे हैं। डॉ. वर्मा कोरोना की पहली लहर में अक्टूबर को संक्रमित हो गए। दस दिन उन्हें क्वारेंटीन रहना पड़ा लेकिन उन्होंने फिर भी मरीजों की सेवा करना नहीं छोड़ा। कोविड हॉस्पिटल में मरीजों के उपचार को लेकर मोबाइल पर परामर्श देते रहे। इतना ही नहीं दस दिन बाद ठीक होकर वे पुन: दोगुने उत्साह व जोश से फिर मरीजों की सेवा में जुट गए। डॉ. वर्मा आज भी अद्र्धरात्रि को भी एक कॉल पर वार्ड में पहुंच जाते हैं।
वो दस दिन नहीं भूल पाऊंगा
डॉ. वर्मा बताते हैं कि कोरोना को लेकर सभी आशंकित थे। कॉलेज प्रशासन ने मुझे जिम्मेदारी सौंपी। मैं खुद को खुशनसीब समझता हूं जो मुझे इस महामारी में यह मौका मिला। कोरोना की वजह से परिवार से बेहद दूर रहना पड़ा। बेहद सावधानी बरतने के बावजूद अक्टूबर माह में अक्टूबर माह में संक्रमित हो गया। पत्नी व दोनों बच्चों से दस दिन दूर रहा। खाना-पीना सब एक कमरे में।छोटा बेटा बार-बार पास आने की जिद्द करता लेकिन मजबूर था। बाद में उसकी मम्मी उसे समझाती। मुझे मेरे परिवार को भी कोरोना से बचाना था। ईश्वर की कृपा रही कि अब तक परिवार को बचा पाया हूं। डॉ. वर्मा कहते हैं कि पत्नी पारुल प्रकाश भी जनाना अस्पताल में गायनिक की चिकित्सक है, उसका भी बहुत सहयोग रहा। पत्नी ने घर-परिवार की जिम्मेदारी संभाल ली, जिस कारण ही मैं कोरोना में बेहतर काम कर पाया।
मरीजों के हित में जो ठीक लगा वह किया
डॉ. वर्मा बताते हैं कि कॉलेज प्रशासन ने नोडल ऑफिसर बनाकर कोरोना प्रबंधन एवं मरीजों के उपचार की जानकारी सौंपी। कोरोना के धीरे-धीरे मरीज बढऩे लगे। साल २०१९ में मई-जून और इस बार अप्रेल व मई में मरीज बेइंतहाशा बढ़े। ऑक्सीजन से लेकर बैड तक कम पडऩे लगे। ऐसी परिस्थितियों में मरीजों को रेमडेसिविर, टैसीलीजूमैब, प्लाज्मा थैरेपी सहित अन्य उपचार कैसे और कब देना सब कुछ तय किया। मरीजों के हित में जो ठीक लगा वह किया। कॉलेज प्रशासन व साथी चिकित्सकों के सहयोग से कोरोना की जंग को जीत पाए हैं।
डॉ. वर्मा बताते हैं कि कोरोना मरीजों के इलाज के लिए कोरोना वार्ड में जाना पड़ता है। कहीं एक गलती से परिवार व परिचितों को भारी न पड़ जाए यह सोचकर चिंता रहती थी। मेरी वजह से संक्रमण न फैल जाए इस लिए तेज गर्मी में भी पीपीई किट पहन कर वार्ड में जाते। कोरोना के बीच दीमाग में परिवार और बच्चों के बारे में कुछ न कुछ चलता रहता। कोविड-१९ की ड्यूटी बेहद अलग है। आमतौर पर मरीजों के साथ कोई न कोई तीमारदार होता है लेकिन कोविड-१९ के मरीजों के साथ कोई नहीं होता। ऐसे में मरीजों की इच्छाओं का भी ध्यान रखना पड़ता है।

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