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बीकानेर,3 दिसम्बर, शनिवार को प्रात: 05:52 से 04 दिसम्बर, रविवार को प्रात: 04:35 तक (यानी 03 दिसम्बर शनिवार को पूरा दिन) व्यतिपात योग है !

व्यतिपात योग की ऐसी महिमा है कि उस समय जप पाठ प्राणायम, माला से जप या मानसिक जप करने से भगवान की और विशेष कर भगवान सूर्यनारायण की प्रसन्नता प्राप्त होती है जप करने वालों को, व्यतिपात योग में जो कुछ भी किया जाता है उसका १ लाख गुना फल मिलता है।

व्यतिपात योग की कथा

एक समय की बात है |चन्द्रमा ने ब्रहस्पतिजी की पत्नी तारा का हरण किया तो सूर्य ने कहा,’ ऐसा कार्य तुम्हें नहीं करना चाहिए | ‘ चन्द्रमा ने सूर्य के सामने क्रोध से देखा तो सूर्य ने भी चंद्रमा के सामने क्रोध दृष्टि से देखा | दोनों की दृष्टि आमने-सामने हुई इस टकराव से एक भयानक पुरुष उत्पन्न हुआ, उसकी 8 आंखें, 18 हाथ, उसका मुंह खुला हुआ था जैसे कि संसार को निगल ले | वह भयानक स्वर से बोला – ‘मैं समस्त जगत को निकल जाऊंगा | इसलिए मैं उत्पन्न हुआ हूँ |’ सूर्य चन्द्र ने कहा,’ तुम हमारा कहना मानो, तुम हमारे दोनों की कोप दृष्टि से उत्पन्न हुए हो | अतः तुम्हारा नाम व्यतीपात होगा | तुम लोगों के राजा होंगे | लेकिन तुम्हारा योग 27 दिन होने से होता है | तुम्हारे दिन में स्नान, दान,हवन, व्रत जो करेगा वह अश्रय फलदाई होगा | जो तेरा पूजन करेगा वह धनवान, पुरुष्वान, आयुष्मान रहेगा | स्त्री का सुहाग अमर रहेगा | व्यतिपात बोला,’ मुझे भूख और क्रोध दोनों सताते हैं | सूर्य चंद्र ने कहा,’ लोग तुझे दान धर्म देंगे वह तुम्हारा भोजन है | और जो धर्मदान नहीं करेगा उस पर क्रोध करना और दान धर्म देगा उस पर प्रसन्न होना | ‘ व्यतिपात यह सुनकर सूर्य चंद्र को नमस्कार करके चला गया | 1 वर्ष में 13 व्यतिपातआते हैं | उस दिन उपवास रखना और फल आदि 13 गिनकर देना | साथ में दक्षिणा देना | एक समय राजा युधिष्ठिर ने मार्कण्डेय मुनि को पूछा कि एम दंड से छूटने का उपाय बताओ | मुनि बोले कि व्यतीपात का व्रत करने से सब पाप छूट जाते हैं | यह व्रत किसने किया था ? मार्कण्डेय मुनि बोले – ‘ पूर्व काल में एक राजा ने व्रत किया था | राजा ने उस व्रत का फल भुण्ड को दिया | भुण्ड पूर्व जन्म में एक कंजूस वैश्य था | उसका मन पैसे में था | कभी धर्म, दान, पुण्य नहीं किया | एक दिन वह अपनी दुकान पर बैठा था | उस दिन व्यतिपात पर्व था | एक गरीब ब्राह्मण दाल लेने आया | उसमें कहा,’सेठ थोड़ा मुझे रसोई का सामान दो, मैं भूखा हूं |’ उसने उसको निकाल दिया, पर वह फिर आया,’आज पर्व का दिन है | थोड़ा कुछ दे दो चौगुना होगा | भगवान तेरा भला करेगा | थोड़ा आटा दे दो | ‘ सेठ ने उसे धक्का मार कर निकाला तो ब्राह्मण क्रोध करके उसको श्राप दिया,’ तू भुंड होगा, जलता भूखा मरता फिरेगा | जब कोई व्यतीपात का पुण्य देगा तब तुझे शांति मिलेगी |’ और वह चला गया | वैश्य की बुद्धि ठिकाने आई वह दौड़कर ब्राह्मण के पास गया व माफी मांगी | पूछा मेरा उद्धार कब होगा| ब्राह्मण ने कहा- ‘जब कोई पुण्यात्मा व्यतीपात का पुण्य देगा तब तुम श्राप से मुक्त होंगे | थोड़े दिन के बाद वैश्य मर गया | उसे भुण्ड की देह मिली | वह भयंकर जंगल में विचरने लगा | एक बार आग लगने से भुण्ड का मुंह,पेट आदि थोड़ा – थोड़ा जल गया | उससे वह दुखी रहने लगा | राजा हर्यश्च जंगल में आया और उसने भुण्ड को पीड़ित देखा | राजा ने पूछा तुम्हें इतना कष्ट क्यों हो रहा है | तुमने पूर्व जन्म में पाप किया होगा |’ भुण्ड ने कहा मैं पहले वैश्य था | व्यतिपात के दिन एक ब्राह्मण भिक्षा लेने हेतु आया परन्तु मैंने उससे धक्का देकर निकाल दिया था | इस कारण उसने मुझे श्राप दिया कि तुम भुण्ड हो जाओगे | वन में मुख से पीड़ित होकर फिरते रहोगे | यदि आपने व्यतिपात का व्रत किया है, तो उसका फल मुझे दे दो तो मेरा उद्धार हो जाएगा |’ दयालु राजा ने हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प करके भुण्ड पर छीड़का तो वह भुण्ड तुरन्त पूर्व जन्म का वैश्य बनकर दिव्य रूप धारण करके स्वर्ग में गया | जो व्यतिपात की कथा सुनेगा, स्नानदान, धर्म, उपवास करेगा, उसके ऊपर यमराज प्रसन्न होकर स्वर्ग का लाभ देगा |

ज्योतिषी मनोज व्यास 9928733271

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