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बीकानेर,कोविड-19 की जानलेवा आपदा ने दो साल में गहरे जख्म दिए हैं। तीन लहरों के बाद भी अब तक कोरोना टीके की सुरक्षा से वंचित 15 तक की उम्र के बच्चों के अभिभावक ऑफलाइन और ऑनलाइन परीक्षा के विकल्पों को लेकर दुविधा में हैं। शिक्षा विभाग ने परीक्षा के लिए दोनों विकल्प रखे हैं लेकिन निजी स्कूल संचालक ऑफलाइन व्यवस्था रखने पर तुले हुए हैं। सीबीएसई और अन्य शिक्षा बोर्ड ने परीक्षा तिथियां घोषित करते हुए 10वीं और 12वीं के लिए ऑफलाइन माध्यम से बोर्ड परीक्षाएं कराने का प्रस्ताव दिया। सीबीएसई ने 10वीं व 12वीं कक्षा के लिए 26 अप्रेल से परीक्षाएं कराने का फैसला किया है। हालांकि इस पर कई अभिभावक • सुप्रीम कोर्ट गए। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका यह कहकर • खारिज कर दी कि इससे न केवल झूठी उम्मीदें बंधती हैं, बल्कि परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों में भी भ्रम पैदा होता है। दूसरी ओर सभी बच्चों को टीका नहीं लगने से अभिभावक चिंतित हैं कि स्कूलों में भीड़ बढ़ने से कोविड-19 प्रोटोकोल की पालना नहीं होगी।

हकीकत यही है कि कोरोना अब तक पूरी तरह से नहीं गया है। दो साल से यह नित रूप बदलकर आ रहा है। महामारी पर काबू पाना चुनौती बना हुआ है। अब भी कोई नहीं कह सकता कि संकट कब तक रहेगा। कोरोना ने बच्चों के बौद्धिक विकास पर नकारात्मक असर डाला है। बच्चों और अभिभावकों को संदेह है कि लंगातार दो शैक्षणिक सत्र में पढ़ाई प्रभावित होने से उनका परिणाम प्रभावित होगा। कोरोना के चलते इस बार भी दिसंबर तक स्कूल बंद रहे। पाठ्यक्रम पूरा नहीं होने से विद्यार्थी तनाव में हैं। सामान्य तौर पर ही विद्यार्थियों में परीक्षा को लेकर काफी व्यग्रता रहती है। पाठ्यक्रम पूरा हो और पर्याप्त दोहराव भी, तभी यह व्यग्रता दूर होती है और आत्मविश्वास जन्म लेता है। स्कूल में शिक्षकों के मार्गदर्शन से यह और पुख्ता होता है। इस बार सबसे बड़ी कमी यह है कि पढ़ाई नहीं होने से विद्यार्थियों में पर्याप्त आत्मविश्वास नहीं है। कई जगह जनवरी माह में स्कूल शुरू होने के बाद ही पढ़ाई शुरू की जा सकी। ऐसे में विद्यार्थी बिना तैयारी के कैसे परीक्षा दे पाएंगे? दूसरी ओर स्कूल संचालकों को ऑफलाइन माध्यम ज्यादा सुविधाजनक लगता है। उनका तर्क है कि ऑनलाइन परीक्षा प्रणाली से बच्चों का सही मूल्यांकन नहीं हो सकता। दोनों पक्षों की कशमकश में संवाद से ही कोई राह निकल सकती है।

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