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बीकानेर,नशा मुक्त भारत अभियान के अंतर्गत सीमा गृह सुरक्षा के जवानों व C.O.अरुण सिंह भाटी के साथ आचार्य डॉक्टर गोपाल गोयल व रेजिडेंट डॉक्टर तुलसी शर्मा द्वारा नशे पर चर्चा की गई।

जिसमे निम् बिन्दुओं पर वार्ता की गई।

नशे के प्रकार :
शराब, ओपिओइड कैटेगरी में शामिल है अमल, डोडा, पोस्त, हीरोइन, स्मैक, चिट्टा, ट्रामाडोल, ट्रपेंटाडॉल आदि। कैनाबिस कैटिगरी में गांजा, भांग, ज्वाइंट इत्यादी। इसके अलावा MDMA, नींद की गोलियां, विभिन्न प्रकार की दर्द की गोलियां आदि।

नशे के दुष्प्रभाव:
शारीरिक दुष्प्रभाव में देखा जाए तो कैंसर होने की संभावना नशे की वजह से बढ़ जाती है जैसे शराब पीने से लीवर का कैंसर, धुम्रपान करने से फेफडों का कैंसर, गुटखा खाने से गले व मुंह का कैंसर हो जाता है तथा डोडा पोस्ट खाने वाले मरीजों के आंतों के चिपकने की समस्या हो जाती है ।

जिससे उन्हें पेट दर्द और कब्ज की शिकायत होती है तथा तुरंत सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है।
मानसिक दुष्प्रभाव जैसे चिड़चिड़ापन, गुस्सा आना, निंद में बाधा आना, नशे की तलब लगना, घबराहट होना, उदासी रहना व अन्य गंभीर मानसिक समस्यायो का हो जाना।

अन्य दुष्प्रभाव जैसे परिवारजानो व मित्रों से संबंधों का खराब हो जाना, समाज से अलग-थलग हो जाना, अर्थिक तंगी का आजाना, नशे के प्रभाव में लड़ाई झगड़ा करना, एक्सीडेंट का हो जाना, नशे के लिए पैसे की व्यवस्था करने के लिए अवैद्य तरीकों को अपनाना, जिसकी वजह से अपराध में शामिल हो जाना ।

बच्चों में नशे की पहचान :
स्कूल जाने में आना-कानी करना, स्कूल से शिकायतों का आना, पढ़ाई में अचानक से कमजोर हो जाना, अकेले में समय बिताने को प्राथमिकता देना, चिड़चिड़ापन, कपड़ों से असामान्य वस्तुओं का मिलना, घर से पैसों का चोरी होना इत्यादि।

नशे के मरीजों का इलाज :
नशे की प्रकृति, मात्रा, अवधि, गंभीरता, मरीज की शारीरिक और मानसिक अवस्था के आधार पर उपयुक्त मात्रा में दवा व काउंसलिंग द्वारा किया जाता है तथा आवश्यकता पड़ने पर मरीजों को भर्ती भी किया जाता है। मरीजों को दी जाने वाली हर दवा के बारे में मरीज व परिवारजनों को जानकारी दी जाती है तथा कुछ दवाई जो गंभीर रिएक्शन कर सकती हैं, उनके उपयोग से पूर्व लिखित में अनुमति ली जाती है तथा यह सलाह भी दी जाती है कि बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी दवा मरीज को नशा मुक्ति हेतु ना दी जाए।

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