नई दिल्ली, देश में कोरोना महामारी को नियंत्रित करने के लिए काफी हद तक परंपरागत चिकित्सा पद्धतियां कारगर साबित हुई है। योग,आयुर्वेद प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी और होमियोपैथी पद्धतियों ने काफी हद तक लोगों को कोरोना वायरस से बचाव किया है। इसे देखते हुए सरकार ने आयुष को दुनिया के अन्य देशों तक पहुंचाने की तैयारी कर ली है। मंत्रालय ने कंपनियों और वैश्विक इकाइयों से समझौता किया है, जिससे भारत में तैयार आयुष दवाइयों का डंका विदेश में भी बजने लगेगा।
इसी सिलसिले में आँखल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआईआईए) ने आयुर्वेद की दवाओं का दूसरे देशों में निवांत करने और जांची-परखी दवा के तौर पर बढ़ावा देने के लिए लंदन स्कूल ऑफ साइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन (एलएसएचटीएम) के साथ एक समझौता किया है। इसके तहत ब्रिटेन में यह परीक्षण किया जाएगा कि कैसे अश्वगंधा (प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवा) कोविड-19 संक्रमण से उबरने में मदद करती है।
उपलब्ध आंकड़ों पर नजर डालें तो देश के ज्यादातर राज्यों में आयुष दवाओं के जारए कोविड संक्रमण से निजात पाने को दर 90 फीसदी से अधिक रही है। कोविड 19 संक्रमण की लहर के दौरान संक्रमित
लोगों के इलाज में भारत में बड़े स्तर पर आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक दवाओं का इस्तेमाल हुआ था। कम से कम नौ राज्यों ने आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक कोविड चिकित्सा केंद्र बनाए थे। इनमें हरियाणा मणिपुर, मिजोरम, तमिलनाडु तेलंगाना गुजरात, कर्नाटक, करल और पुडुचेरी जैसे राज्य शामिल है। पहले चरण में आयुष का प्रभावी इस्तेमाल करने वाले केरान में ऐसे सबसे ज्यादा 1,206 केंद्र हैं।
आयुष की उपचार तकनीक कोरोना संक्रमण रोकने में पर्याप्त
आयुष मंत्रालय के जुलाई तक के उपलब्ध आकड़ों से पुष्टि होती है कि आयुष की उपचार तकनीक कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए पर्याप्त है। केरल के आयुर रक्षा क्लीनिक नाम से बनाए 1206 केंद्रों में 35 लाख लोगों का इलाज हुआ। इनमें 99.96 फीसदी लोग कोविड सक्रमण से पूरी तरह ठीक हो गए। जबकि तमिलनाडु और मिज़ोरम में संक्रमण से उबरने की दर 100 फीसदी तक रही।
अश्वगंधा पर बड़े स्तर पर ब्रिटेन में होंगे परीक्षण
हाल ही में आयुष सचिव राजेश कोटेचा ने एक कार्यक्रम में कहा था कि अश्वगंधा किस तरह से काविड संक्रमण से लड़ने और उससे ठीक होने में मदद करता है, इस पर बड़े स्तर पर ब्रिटेन में परीक्षण होंगे। इस क्लीनिकल परीक्षण में 2000 से अधिक लोग हिस्सा लेंगे। इससे यह जानने में काफी हद तक मदद मिल सकेगी कि अश्वगंधा को कोविड संक्रमण से लड़ने में जाबी-परखी दवा के तौर पर स्थापित किया जा सकता है या नहीं।
29 औद्योगिक साझेदारों को तकनीक स्थानांतरित
समय कीविड के हल्के लक्षण वाले मरीजों को दी जाने वाली दवाओं में आयुष 64 (कद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा विकसित) प्रमुख है। कोटेचा ने आगे कहा था कि 29 औद्योगिक साझेदारों को यह तकनीक स्थानांतरित की जा चुकी है। यह ऐसे समय में हुआ है, जब परंपरागत दवाओं का निर्यात वर्ष 2020-21 में 15 अरब डॉलर तक पहुंच गया। आयुर्वेदिक दवाओं का कूल निर्यात मूल्य 2018-19 में 44.6 करोड़ डॉलर था। बजट में भी आयुष के लिए प्रावधानों को बढ़ाया गया है और यह वर्ष 2014-15 से करीब पाच गुना तक बढ़ चुका है। पिछले छह वर्षों में भारत में आयुर्वेद उद्योग की सालाना वृद्धि दर 17 फीसदी रही है।