बीकानेर,राजस्थानी भाषा की मान्यता का मुद्दा चुनाव नजदीक आते ही हर बार की तरह फिर उछाला जा रहा है। भाजपा और कांग्रेस गेंद एक दूसरे के पाले में फेंक रही हैं। राजनीतिक दल इसे वोटों के खातिर मुद्दा ही बनाए रखना चाहते हैं, क्योंकि यह मुद्दा वोट का खजाना है। राजस्थान विधानसभा के चुनाव इसी वर्ष और लोकसभा के चुनाव अगले वर्ष होने है। भाजपा कांग्रेस को और कांग्रेस भाजपा को राजस्थानी की मान्यता को लेकर एक दूसरे को कटघरे में खड़ा करने में लगे हुए हैं। राजस्थानी भाषा के मान्यता के मुद्दे पर लम्बे समय से आंदोलन कर वाले लोग और संस्थाएं राजनीतिक दलों और सरकारों की ढुलमुल नीति से उकता गए हैं। इन पर से भरोसा भी उठ गया है। करें तो क्या करें ? जो भी नेता इस मुद्दे पर राजनीति करते हैं चुनाव जीतने और मंत्री बनने के बाद मुंह फेर लेते हैं। बात वहीं की वहीं रहती है। अभी राजस्थान विधान सभा में यह मुद्दा फिर से गर्माया हुआ है। भाजपा प्रतिपक्ष के उप नेता राजेंद्र राठौर और कांग्रेस सरकार के कैबिनेट मंत्री कल्ला के बीच सदन में जो बातचीत हुई वो इस मुद्दे पर पहले जैसी धुंधली तस्वीर ही पेश करती है। राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए पूर्व में गठित महापात्रा कमेटी ने जब राजस्थानी भाषा को मान्यता की अनुशंसा कर दी है तो फिर राजनीतिक दलों और सरकारों को कहने को बचा ही क्या है ? महापात्रा कमेटी मान्यता की प्रक्रिया का संवैधानिक प्रारूप ही था और अनुशंसा मान्यता प्रावधानों की पुष्टि। फिर क्यों एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं? मंत्री डा. बी.डी. कल्ला कह रहे हैं राजस्थानी को दूसरी राजभाषा बनाने की प्रक्रिया चल रहे है। दूसरे राज्य के तर्ज पर काम हो रहा है। ऑफिशियली लैंग्वेज एक्ट 1956 में संशोधन का परीक्षण करवाया जा रहा है। भाषा विभाग के मंत्री ने कमेटी बनाई है। अब सवाल यह उठता है कि महापात्र कमेटी ने अनुमोदन कर दिया है। 25 अगस्त 2003 को राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का राजस्थान विधानसभा के सभी विधायकों का सर्व सम्मति से प्रस्ताव भेजा गया था तो वापस एक से गिनती क्यों की जा रही है जो हो चुका है उसे दोहराने की भाजपा व कांग्रेस को क्या जरूरत है? जब संविधान के आर्टिकल 325 के तहत प्रावधानों के हिसाब से राज्य सरकार राजभाषा घोषित कर सकती है तो वापस शून्य पर खड़े होकर बातें दोहराने का क्या अर्थ लगाया जाए ? कल्ला का केंद्र पर आरोप हैं कि प्रस्ताव पारित होने के 20 साल बाद भी भाषा को आठवीं अनुसूची में केंद्र ने शामिल नहीं किया है। अफसोस । जबकि भाजपा राठौर कहते लैंग्वेज एक्ट 1956 में संशोधन कर राज्य सरकार राजस्थानी को राजभाषा बना सकती हैं। आप राजस्थानी भाषा की मान्यता पर क्या समझे? क्या केंद्र सरकार आठवीं अनुसूची में राजस्थानी को शामिल कर लेगी ? या फिर राजस्थान सरकार दूसरी राज भाषा के रूप मान्यता दे देगी? सवाल जटिल है और राजनीति गहरी। न कांग्रेस और न भाजपा जनता को ही उठ खड़ा होना पड़ेगा। अब पराकाष्ठा हो गई हैं । जनता की आवाज से ही सरकारें झुकेगी। इसके बिना कुछ होना जाना नहीं है।
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