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बीकानेर, स्थानीय पंच मंदिर जेल रोड में श्री राम कथा प्रवचन कार्यक्रम में बोलते हुए शाश्वत सनातन अभ्यागत साधु समिति के अध्यक्ष श्रीमद स्वामी अखिलेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने निषादराज गुह और केवट प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि “राम ब्रह्म परमार्थ रूपा”श्री रामानंद सिंधु सुख राशि है निषादराज गुह और केवट ने श्री राम की सेवा की , इन भक्तों के हृदय में एक भाव पैदा हो गया की “अब कछु नाथ न चाहिअ मोरे दीनदयाल अनुग्रह तोरे”यह समझ ले कि यह जीवन का एक बहुत सुंदर सूत्र है राम की सेवा जो करता है उसके अंदर कहीं भाव पैदा होता है कि अब मुझे कुछ नहीं चाहिए “आजू मैं काह न पावा”राम की सेवा यानी धर्म की सेवा “रामो विग्रहवान धरमः”और जो धर्म की सेवा करता है तो परिणाम में उसे यही मिलता है कि उसे कुछ नहीं चाहिए।
श्रीमत स्वामी जी ने कहा कि धर्म एक साधन है और उस साधन का साध्य विरक्ति है, यदि आप वास्तव में धर्म के पथ पर चल रहे हैं तो आज नहीं तो कल आपके जीवन में विरक्ति का आगमन होगा मनु महाराज धर्म पर चल रहे थे और परिणाम स्वरूप उनके अंदर वैराग्य उत्पन्न हो गया यदि चौथे मन में आप आ गए और सांसारिक चीजों से आपको वैराग्य उत्पन्न नहीं हुआ तो यह समझ लीजिए कि आपने साधन रुपी धर्म का प्रयोग ठीक से नहीं किया कहीं न कहीं आप संसार में आसक्त रहे आप स्वयं पर अभिमानी रहे “वह तैरते -तैरते डूब गए जिन्हे खुद पर अभिमान था और वह डूबते -डूबते तर गए जिन पर तू मेहरबान था”
कथा में मुख्य रूप से प्रकाश जी वेद पाठी रामनिवास सारस्वत मोहन जी सोनी चांदमल जी रामचंद्र जी रोहित

शकुंतला संजय हरीश जी सक्सेना मुरलीधर सारस्वत सुशील सारस्वत तथा भवानी पुजारी आदि श्रोता उपस्थित रहे।

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