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बीकानेर। कोरोना के बाद डेंगू ने पूरे सिस्टम को हिला कर रख दिया है। कोरोना में सोशल डिस्टेंसिंग, दवा, रेमडेसिविर, प्लाज्मा, टैसीजीलुमैब आदि जीवन बचाने में कारगर साबित हो रहे थे लेकिन डेेंगू में ब्लड, आरडीपी व एसडीपी के अलावा विशेष कुछ नहीं है। ऐसे में डेंगू के कारण रक्त की मांग दो गुना बढ़ गई है। आरडीपी और एसडीपी की डिमांड तीन गुना हो गई है।

अब हुए ३९१, चार की मौत

पीबीएम अस्पताल के आंकड़ों के मुताबिक मंगलवार को ४१६ सैम्पलों की रिपोर्ट में से २१ में डेंगू की पुष्टि हुई। इन नए मरीजों के साथ जिले में डेंगू मरीजों का आंकड़ा ३९१ पहुंच गया है। वहीं चार मरीजों की मौत हो चुकी है। डेंगू की आशंका के चलते अब तक १० हजार ६५७ लोगों की जांच कराई जा चुकी हैं। पीबीएम एवं जिला अस्पताल में डेंगू के मरीजों के कारण व्यवस्था गड़बड़ा गई है। अस्पताल प्रशासन जितनी व्यवस्थाएं कर रहा है वह बढ़ते मरीजों से बेपटरी हो रही है। लोगों को सरल व सहज इलाज नहीं मिल रहा।

वार्डों और ब्लड बैंक में भीड़

पिछले १५ दिन से अस्पतालों का माहौल ही अलग है। वार्डों में भारी भीड़ है। बिस्तर कम पडऩे से मरीजों को फर्श पर लिटाना मजबूरी है। वहीं ब्लड बैंक में भीड़ अधिक है। ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. नौरंगलाल महावर ने बताया कि बीते २४ घंटे में १४५ आरडीपी और पांच एसडीपी मरीजों को उपलब्ध कराई जा चुकी है। यह आंकड़ा हर दिन बढ़ रहा है। डेंगू और प्लेटलेट्स घटने की शिकायत लेकर पहुंचने वाले मरीजों के अलावा कैंसर, लीवर सहित अन्य बीमारियों के मरीजों को आरडीपी, एसडीपी एवं रक्त उपलब्ध कराया जा रहा है।

लूट-खसोट भी चालू

वार्डों में एकाएक मरीज बढऩे के साथ ही लूट-खसोट भी शुरू हो गई है। अस्पताल में सब-कुछ फ्री है लेकिन मरीजों का पैसा लग रहा है। मेडिसिन वार्ड भर हो हैं। ऐसे में मरीजों को फर्श पर बिस्तर लगाकर इलाज किया जा रहा है। विडम्बना यह है कि मरीजों को बिस्तर बाहर से किराए पर लाना पड़ रहा है, जिसका किराया ३० से ४० रुपए प्रतिदिन वसूल किया जा रहा है। लोग बाहर होटल व ढाबे व ठेले वालों से बिस्तर किराए पर ला रहे हैं।

मरीजों पर नहीं दे रहे ध्यान

गंगाशहर निवासी एक युवक की प्लेटलेट्स काफी कम हो गई। चिकित्सक को घर दिखाया तो उन्होंने पीबीएम अस्पताल में भर्ती होने की सलाह दी। युवक के भाई हरखचंद ने बताया कि भर्ती होने के बाद से अब तक कोई वरिष्ठ चिकित्सक देखने नहीं पहुंचा। रेजिडेंट चिकित्सकों के भरोसे पूरा वार्ड हैं। रेजिडेंट बहुत मेहनत कर रहे हैं लेकिन वरिष्ठ चिकित्सकों को भी मरीजों की जान की परवाह होनी चाहिए।

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