बीकानेर,हैरानी की बात है कि राजस्थान सरकार ने सभी जिलों में साइबर थाने खोलने की घोषणा तो कर दी, लेकिन खुद पुलिस मुख्यालय और जिलों की पुलिस के पास साइबर क्राइम की जांच की सुविधा और साइबर एक्सपर्ट ही नहीं हैं। साइबर क्राइम शहरों ही नहीं, ग्रामीण इलाकों तक पहुंच चुका है। नित नए तरीके से साइबर ठगी के मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे में साइबर थाने बिना विशेषज्ञ के कैसे काम कर पाएंगे? साइबर क्राइम के आंकड़ों पर नजर डालें, तो पिछले पांच सालों में साइबर अपराधों की संख्या लगभग तीन गुना बढ़ी है। सामान्य लोग ही साइबर अपराधियों के शिकंजे में नहीं फंस रहे, बल्कि कई मामले ऐसे भी सामने आए हैं, जब साइबर अपराधियों ने आला अफसरों को भी निशाना बनाया है।
पुलिस मुख्यालय के आंकड़े बताते हैं कि साल 2017 में जहां प्रदेश भर में 1304 साइबर अपराध दर्ज हुए थे, वहीं साल 2021 में इनकी संख्या बढ़कर 3218 हो चुकी है। मात्रा साल 2018 को छोड़कर हर साल • साइबर अपराधों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। यह स्थिति तो तब है, जब पुलिस ने साइबर मामले में भी अपनी छवि के अनुरूप साइबर अपराधों के पूरे मामले ही दर्ज नहीं किए। अकेले पिछले साल 20 हजार शिकायतों को परिवाद के रूप में दर्ज कर इतिश्री कर ली गई। अब यह तथ्य सामने आए कि पुलिस मुख्यालय में ही कोई साइबर एक्सपर्ट नहीं है। पीएचक्यू ने संविदा पर जिस एक्सपर्ट को लगाया था, उसका अनुबंध भी खत्म हो चुका है। पुलिस अब जिलों पर साइबर विशेषज्ञ लगाने की जिम्मेदारी डालने पर विचार कर रही है।
जरूरत इस बात की है कि पुलिस खुद अपने साइबर एक्सपर्ट तैयार करे। नए भर्ती हो रहे भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों में भी कई सूचना प्रौद्योगिकी में बी. टेक करके निकले हैं। पुलिस के बेड़े में इंजीनियरिंग व आइटी बैकग्राउंड के कई अधिकारी मिल जाएंगे। विशेषज्ञों की मदद से ऐसे पुलिस अधिकारियों को ही विशेष ट्रेनिंग दिलाकर साइबर एक्सपर्ट की फौज क्यों नहीं खड़ी की जाती? सूचना तकनीक की पढ़ाई करके निकले नौजवानों को भी भर्ती किया जा सकता है। जिस तरह से रोजमर्रा की जरूरतों तक के लिए सूचना तकनीक का सहारा लिया जा रहा है, तो साइबर अपराधों की संख्या भी उसी रफ्तार से बढ़ने की आशंका को टाला नहीं जा सकता। इसके अनुरूप अभी से तैयारी रखनी होगी और पुलिस को खुद अपनी टीम खड़ी करनी होगी।