
बीकानेर,देश-प्रदेश की बात करने से पहले अपने शहर बीकानेर की दुर्घटनाओं और समस्याओं की बात कर ले तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि आज तक शहर की दुर्घटनाओं या समस्याओं के निदान के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है। समस्याओं में जैसे शहर के बीचो- बीच दिन में ५२ बार बंद होते रेल फाटक जिसे यहाँ के नागरिक शहर का सबसे बड़ा कैंसर रोग कहते है और उससे सालो से जूझ रहे है। लेकिन जिसका इलाज किसी भी मंत्री, विधायक, और प्रशासनिक अधिकारी के पास नहीं है और न ही इसके निदान के लिए इन्हें ज़िम्मेदार ठहराया जाता है । क्या इसके लिए पूर्व मंत्री बी डी कल्ला, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल जिम्मेदार नहीं है? क्यो नहीं शहर की टूटी सड़के, गहरे गड्डे, सड़को पर बहता गटर का पानी, बाजारो में विचरण करते आवारा पशु- गाय गोधो की लड़ाई, चोटिल होते राहगीर, पागल कुतो के काटने से मरते लोगो के लिए क्या नगर निगम जिम्मेदार नहीं है? लेकिन वो तो हाथ पर हाथ धरे बैठा है। वाहनो की तेज़ रफ़्तार से मरते लोग, अव्यवस्थित ट्रेफिक व्यवस्था, ओवरलोडिंग गड़ियों से मरते लोगो के लिए पुलिस प्रशासन जिम्मेदार तो है न? या वो भी नहीं। बीकानेर के विकास की आवाज़ न उठाने वाले जागरूक साहित्यकार, कवि, शायर, लेखक और बुद्धिजीवी वर्ग भी तो जिम्मेदार है ? उनकी लेखनी और आवाज़ कहा चली गई? सिर्फ़ नाम और सम्मान के लिए उनकी आवाज़ सुनाई देती है। कानून के रक्षक बने वकील समुदाय में भी कोई ऐसा वकील नहीं है जो बीकानेर की समस्याओं के समाधान के लिए हाई- कोर्ट में जन हित याचिका लगाएं। यह सब कहने का तात्पर्य मेरा इतना ही है कि इस देश में कोई भी गलती करने पर किसी की जिम्मेदारी फिक्स नहीं होती न ही उसे दण्ड मिलता है और न ही कोई सजा? अपितु उसका सम्मान होता है प्रमोशन ही होता है। उन्हें फूलो के गुलदस्ते भेट किये जाते है। गत दिनों देश में तीन बड़े हादसे हुए। एक तो अहमदाबाद- से लंदन जाने वाले हवाई जहाज़ का क्रैश होना,३०० से जायदा लोगो का मरना, दूसरा केदारनाथ में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में पायलट सहित पाँच यात्रियों का मरना, तीसरा पूना के पुल टूटने पर ३० पर्यटकों का नदी में बह जाना— लेकिन इन सबकी मौतो का कोई ज़िम्मेदार नहीं ठहराया गया है ? क़ानून में किसी की हत्या करने पर फाँसी या आजीवन कारावास की सज़ा होती है लेकिन यहाँ इतने लोग मर गए पर किसी की कोई ज़िम्मेदारी तय नहीं हुई ? इस देश में तो जनता का ध्यान डायवर्ट करने के लिए दुर्घटनाओं की जाँच के लिए जाँच आयोग बैठा दिया जाता है जिसकी रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं होती। सजा या दण्ड किसी को भी मिलता हो हमने कहीं पढ़ा या सुना नहीं? ये तो थी बड़ी दुर्घटनाएं। जिसमे बेमोंत बेचारे ७५ डाक्टर्स भी मारे गए! लेकिन हमारे यहाँ तो रोज़ कोई न कोई मरता है। जैसे बिजली कर्मचारी थम्भे पर बिजली की तारों को ठीक करते हुए करंट से मर जाता है। गटर साफ़ करते हुए सफ़ाई कर्मचारी गटर की जहरोली गेंस से दम तोड़ देता है। कारो, ट्रकों, बसों, थ्री व्हीलर्स और अन्य वाहनो की तेज रफ़्तार से रोजाना कई लोग मौत के मुंह में जाते है। टूटी सड़को, स्ट्रीट लाइट के न होने से वाहन चालक सामने की कार से टकरा कर या फिर खड्डों में गिरकर दम तोड़ देते है। अस्पताल में गलत इंजेक्शन लगाने से या गलत खून चढ़ाने से अनेकों मरीज दम तोड़ देते है। आत्म हत्या उकसाने के लिए कोचिंग सेंटर काफ़ी बदनाम है लेकिन इन पर कारवाई कुछ भी नहीं। कोटा के कोचिंग सेंटरों में आए दिन छात्र अत्याधिक दवाब के कारण आत्महत्या कर रहे है लेकिन प्रशासन ने आँखे बंद कर रखी है। सरकार -सब कुछ भगवान की मर्जी से हो रहा है- कहकर अपना पल्ला झाड़ लेती है। नैतिकता न तो राजनीतिक्षों में बची है न प्रशासनिक अधिकारियों में। लालबहादुर शास्त्री जैसे नेता अब तो रहे नहीं! अफ़सोस तो यह कि अब लोग मृतक के शवों के साथ फोटो खिंचवाकर, सहानुभूति के दो शब्द बोलकर, कुछ राशि देकर मामले को रफ़ा- दफा करने की कोशिश में लगे रहते है। दोषी नेता, दोषी अधिकारी, दोषी विभाग का बाल बाँका भी नहीं होता? अब मोदी जी से उम्मीद की जा सकती है कि दुर्घटना छोटी हो या बड़ी, जिम्मेदार अफसर को दण्ड मिलना चाहिए और राजनीतिक्ष भी अपनी नैतिकता दिखाने में आगे आए।