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बीकानेर,भगवान की लीला को कोई नहीं जानता, जो धनुष अच्छे -अच्छे शूरमा नहीं तोड़ पाए उसने सभी को व्याकुल कर दिया। जनक जी ने भरी सभा में ऐसे शब्द बोले जो लक्ष्मण से सहन नहीं हुए। उन्होंने अपने क्रोध को प्रकट किया लेकिन रामजी ने इशारे से शांत किया, इसके बाद गुरु जी ने आज्ञा दी तो भगवान श्री राम ने मन ही मन गुरु को प्रणाम किया और बड़ी फुर्ती से धनुष को उठा लिया। जब उसे (हाथ में) लिया, तब वह धनुष बिजली की तरह चमका और फिर आकाश में मंडल जैसे हो गया। ये तीनों काम इतनी फुर्ती से हुए कि धनुष को कब उठाया, कब चढ़ाया और कब खींचा, इसका किसी को पता ही नहीं चला, सबको श्री राम धनुष खींचें ही खड़े दिखे। उसी क्षण उन्होंने धनुष को बीच से तोड़ डाला। तोड़ने के साथ ही भयंकर कठोर ध्वनि हुई। महंत क्षमारामजी महाराज ने बताया कि घोर, कठोर शब्द से लोक भर गए, सूर्य के घोड़े मार्ग छोड़कर चलने लगे। दिग्गज चिग्घाड़ने लगे, धरती डोलने लगी, शेष, वाराह और कच्छप कलमला उठे। देवता, राक्षस और मुनि कानों पर हाथ रखकर सब व्याकुल होकर विचारने लगे। महंत जी ने कहा कि तुलसीदासजी कहते हैं (जब सब को निश्चय हो गया कि) श्री रामजी ने धनुष को तोड़ डाला, तब सब ‘श्री रामचन्द्र की जय’ बोलने लगे। प्रभु ने धनुष के दोनों टुकड़े पृथ्वी पर डाल दिए। श्री श्री 1008 सींथल पीठाधीश्वर महंत क्षमारामजी महाराज ने गोपेश्वर बस्ती स्थित गोपेश्वर भूतेश्वर महादेव मंदिर में चल रहे श्री रामचरित मानस नवाह्न परायण पाठ के तीसरे अध्याय का वाचन करते हुए सीता स्वयंवर के प्रसंगों के बारे में बताया।

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