बीकानेर,जयपुर,प्रदेश में लगातार राईट टू एजुकेशन का मामला उग्र रूप लेता जा रहा है, जहाँ एक और स्कूलों में नए सत्र की पढाई शुरू हुए 2 महीनें हो चुके है वही शिक्षा का अधिकार अधिनियम कानून के तहत आरटीई प्रकिया से एडमिशन प्राप्त बच्चों की पढाई अब तक भी शुरू नहीं हो पाई है, एक और स्कूल कोर्ट आदेश का हवाला देकर अभिभावकों को दर-दर की ठोकरे खाने पर मजबूर कर रहे है तो वही दूसरी तरफ सरकार और प्रशासन बच्चों की पढ़ाई को गंभीरता ना लेकर अभिभावकों की भावनाओ के साथ खिलवाड़ कर रहे है।
*संयुक्त अभिभावक संघ ने रविवार को जारी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से एक बार फिर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्थाओ में फेली बदहाली पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा की* – प्रदेश के निजी स्कूलों ने उनकी मनमानी और भारीभरकम फीस देने वाले छात्रों की पढाई का सत्र दो महीने पहले ही शुरू कर दिया है किन्तु कानून के तहत अनिवार्य एवं जरुरी शिक्षा का अधिकार देने वाले कानून शिक्षा का अधिकार अधिनियम की पालना कोई भी निजी स्कूल नही कर रहे है इसके अलावा कोर्ट और सरकार के आदेश की अवहेलना कर प्रक्रिया के के तहत एडमिशन प्राप्त बच्चों को आजतक शिक्षा से वंचित रखकर देश के ना केवल लोकतंत्र का अपमान कर रहे है बल्कि देश के संविधान का भी अपमान कर रहे है। जिसके चलते अकेले राजस्थान में आरटीई से एडमिशन प्राप्त 75 हजार से अधिक बच्चों का भविष्य अंधकार में धकेल रहे है बल्कि बच्चों का भविष्य शुरू होने पहले तबाह कर रहे है। जबकि राज्य सरकार द्वारा आरटीई के तहत जारी प्रत्येक प्रक्रिया और गाइडलाइन को विभिन्न ठोकरें खाने के बावजूद गरीब और जरूरतमंद अभिभावकों ने अपने बच्चों के बेहतर भविष्य की कल्पना कर एडमिशन करवाया था, किंतु उसके बावजूद अभिभावक और छात्र आजतक केवल स्कूलों और विभाग के ठोकरें खा रहे है उन्हे शिक्षा उपलब्ध नहीं हो रही है।
*प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा की -* अभी हाल ही में 29 अगस्त को जयपुर जिला शिक्षा विभाग ने अभिभावकों से प्राप्त शिकायतों के आधार राजधानी के 24 स्कूलों को दोषी माना और उनके स्कूलों की एनओसी रद्द करने को लेकर लगातार 14 वा अनुशंसा पत्र शिक्षा निदेशक कार्यालय, बीकानेर भेज दिया, किंतु आज 5 दिन बीत जाने बावजूद ना स्कूलों पर कार्यवाही हुई ना अभिभावकों को राहत मिली और ना छात्रों को उनकी शिक्षा का अधिकार मिला। ऐसी स्थिति में कैसे बच्चों को उनकी शिक्षा का अधिकार प्राप्त होगा, कैसे उनके 2 महीनों की पढ़ाई की पूर्ति होगी, जिसको लेकर अभिभावक चिंतित है। इसके अतिरिक्त अगर अभिभावकों के आरोप बेबुनियाद होते तो जिला शिक्षा अधिकारी स्कूलों को 3 बार अंतिम चेतावनी के नोटिस और 11 बार एनओसी रद्द की चेतावनी के नोटिस जारी ही क्यों करते किंतु जिस प्रकार से पिछले 2 महीनों से अभिभावकों। भटकाया जा रहा है उससे साफ अंकित होता है की स्कूल, सरकार और प्रशासन केवल खानापूर्ति कर रहे है और इनकी आपस की लड़ाई को अभिभावकों को अपने बच्चों की शिक्षा से समझोता कर भुगतना पड़ रहा है। क्योंकि पिछले सत्र में स्कूल, सरकार और प्रशासन ने हजारों बच्चों का साल खराब किया था और अब वही प्रक्रिया अपना 75 हजार बच्चों का भविष्य तबाह करने की मिलीजुली साजिश रची जा रही है जिससे निजी स्कूलों को फायदा पहुंचाया जा सकें।