वास्तविक इतिहासबोध राष्ट्र की विशेष शक्ति होता है। सच्चा इतिहासबोध राष्ट्र बोध जगाता है। बच्चों को वास्तविक इतिहासबोध की शिक्षा देना राष्ट्र राज्य का कर्तव्य है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद यानी एनसीईआरटी ने सम्यक विचार के बाद दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के लिए इतिहास की पुस्तकों का पाठ्यक्रम संशोधित किया है। इस पर विवाद हो गया है। कांग्रेस, माकपा और शिवसेना (उद्धव गुट) सहित कई पार्टियों ने पाठ्यक्रम संशोधन पर कड़ा विरोध किया है। विशेषकर मुगल साम्राज्य, दिल्ली दरबार, अकबरनामा, बादशाहनामा और कुछ राजनीतिक दलों के उदय वाले अंश विवाद का विषय बने हैं।
मुगल शासकों और उनके साम्राज्य, पांडुलिपियों की रचना, रंग चित्रण, राजधानियां, दरबार, उपाधियां एवं उपहार, शाही परिवार, शाही मुगल अभिजात वर्ग वाले अंश ठीक ही हटाए गए हैं।
मार्क्सवादी इरफान हबीब सहित कई इतिहासकारों ने संशोधन के विरोध में हस्ताक्षर अभियान चलाया है। इसमें वे भाजपा की विचारधारा खोज रहे हैं। मल्लिकार्जुन खरगे का कहना है कि इतिहास को बदलने की कोशिश हो रही है। सच को झूठ और झूठ को सच बताया जा रहा है। सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क और कपिल सिब्बल भी विरोध जता चुके हैं। माकपा नेता सीताराम येचुरी ने भी एनसीईआरटी के निर्णय को सांप्रदायिक बताया। वहीं, कई शिक्षाविदों और नेताओं ने एनसीईआरटी की पहल का समर्थन किया है। एनसीईआरटी निदेशक ने इस बहस को अनावश्यक बताते हुए कहा कि, ‘विशेषज्ञ समिति ने सिफारिश की थी कि ऐसे अध्यायों को हटाने से बच्चों के ज्ञान पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसलिए एक अनावश्यक बोझ हटाया जा सकता है।’
इतिहास सर्वोच्च मार्गदर्शक होता है। विकृत इतिहास पराक्रमी राष्ट्र के लिए क्षतिकारक होता है। देश में इतिहास के प्रतिष्ठित नायकों की उपेक्षा की बात होती रही है। सुहेल देव और मार्तण्ड वर्मा जैसे प्रेरक व्यक्तित्व इतिहास से बाहर हैं। भारतवासियों पर इतिहास की उपेक्षा के आरोप लगाए जाते रहे हैं। अल बरूनी ने कहा था कि, ‘हिंदू घटनाओं के ऐतिहासिक क्रम पर ध्यान नहीं देते। वे अपने सम्राटों के कालक्रमानुसार वर्णन में लापरवाह हैं। इसी तरह एल्फिंस्टन को सिकंदर के पहले किसी भी घटना का निश्चित समय दिखाई नहीं पड़ता।’
हालांकि, सत्य इतर है। भारत में इतिहास संकलन यूरोप से भिन्न है। गांधीजी भी राजाओं के विवरण को सच्चा इतिहास नहीं मानते थे। उन्होंने ‘हिंद स्वराज’ में लिखा, ‘इतिहास जिस अंग्रेजी शब्द हिस्ट्री का अनुवाद है और जिस शब्द का अर्थ बादशाहों या राजाओं की तवारीख होता है। हिस्ट्री में दुनिया के कोलाहल की ही कहानी है। राजा लोग कैसे खेलते थे। कैसे बैर करते। यह सब हिस्ट्री में मिलता है।’ यह सही नहीं कि भारत के लोग इतिहास की उपेक्षा करते थे। देश में इतिहास संकलन की अपनी परंपरा रही है। अमरकोश के अनुसार इतिहास का नाम ‘पुरावृत्त’ था। विश्वामित्र ने श्रीराम को पुरावृत्त सुनाया था।
बच्चे भारत का भविष्य हैं। उन्हें विरूपित इतिहास पढ़ाना खतरनाक है। इतिहास के पाठों की रचना सतर्कतापूर्वक की जानी चाहिए। एनसीईआरटी का निर्णय इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है। आखिर बच्चों को विश्व राजनीति में अमेरिकी दबदबा पढ़ाने का क्या तुक, जबकि यह एक विचार मात्र है। ऐतिहासिक तथ्य नहीं। कथित हिंदू चरमपंथियों की गांधी के प्रति नफरत भी एक कल्पना है। इन्हें हटाना सर्वथा उचित है। बेशक भारत में विविध राजनीतिक विचारधाराएं हैं। सबको अपनी विचारधारा के अनुसार लोकमत बनाने का अधिकार है, लेकिन अपने मन का इतिहास गढ़ना और पढ़ाना अनुचित है। वामपंथी इतिहासकारों ने इतिहास का विरूपण किया है। वैसे भी, एनसीईआरटी का यह कदम पहला नहीं है। वर्ष 2002 में भी इतिहास की विषयवस्तु को लेकर राजनीतिक आरोप लगे। उस समय केंद्र सरकार पर शिक्षा और इतिहास के ‘भगवाकरण’ का आरोप लगाया गया था।
संप्रति मुगल साम्राज्य के अंश हटाने को लेकर बड़ी आक्रामकता है। वस्तुत:, मुगल साम्राज्य का केंद्रीय विचार मजहबी श्रेष्ठता और हिंदुओं के अपमान की व्यथा कथा है। आखिर इसके महिमामंडन का क्या तुक? बाबर श्रीराम जन्मभूमि मंदिर ध्वंस के मुख्य अभियुक्त हैं। अपवाद छोड़कर मुगल साम्राज्य के कालखंड में हिंदू तीर्थ यात्राओं पर भी टैक्स था। मुगल साम्राज्य में हिंदू उत्पीड़न एक तथ्य है, लेकिन वामपंथी इतिहासकारों ने मुगल शासन का मनगढ़ंत तरीके से महिमामंडन किया। औरंगजेब घोर सांप्रदायिक, उत्पीड़क एवं अत्याचारी था। डा. राधाकृष्णन ने ‘धर्म और समाज’ में औरंगजेब द्वारा अपने अध्यापक को लिखे पत्र का उल्लेख किया है, ‘तुमने वस्तुओं के संबंध में अनेक अव्यक्त प्रश्न समझाए। इनका मानव समाज के लिए कोई उपयोग नहीं। तुमने यह समझाने की चेष्टा नहीं की कि शहर पर घेरा कैसे डाला जाता है और सेना को कैसे व्यवस्थित किया जाता है।’ यह पत्र औरंगजेब की हिंसक मनोदशा प्रकट करता है। उसने सगे भाई दारा शुकोह की हत्या कराई। शुकोह की गलती यही थी कि वह भारतीय दर्शन और वेदांत के प्रति उत्सुक था।
इतिहास और वर्तमान का संबंध अविभाज्य है। हम इतिहास के प्रेरक अनुभवों से शक्ति अर्जित करते हैं। भूलों से सीखते हैं। इतिहास सहित सभी विषयों का पुनरीक्षण आवश्यक है। एनसीईआरटी वही कर रही है। वह हर साल पाठ्यक्रम की समीक्षा करती है। अन्य विषयों के पाठ्यक्रम में भी संशोधन हुआ है, मगर मुगलों को लेकर बहुत हायतौबा है। इतिहास के संशोधन का सीधा संबंध बच्चों के भविष्य से जुड़ा है। मूलभूत प्रश्न है कि बच्चे क्या पढ़ें? और क्यों पढ़ें? उन्हें सही इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए। इससे वे अपने भविष्य को ज्ञानवान और समृद्ध बनाएंगे। वे राष्ट्र के आधारभूत तथ्यों से परिचित होंगे। राष्ट्र निर्माण का कार्य करेंगे। फर्जी और मनगढ़ंत तथ्यों के आधार पर इतिहास लेखन देश के लिए हानिकारक है। आर्यों को विदेशी बताना भी ऐसा ही तथ्य है। इस पर भी विचार की दरकार है। इतिहास राष्ट्र का मार्गदर्शी होता है, लेकिन उसका सत्य होना अनिवार्य है। विभिन्न राजनीतिक दल एनसीईआरटी के इस निर्णय को राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए ही गलत बता रहे हैं।