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श्रीडूंगरगढ़ बीकानेर,व्यासपीठ पर विराजमान संत शिवेन्द्रस्वरूप महाराज ने कहा कि एक साधक को भीतरी बाहरी सावधानी के लिए जरूरी है कि वह भी दत्तात्रेय भगवान की तरह प्रकृति के अनेक प्राणियों एवं वस्तुओं से गुरु की भांति प्रबोध प्राप्त करे। एक साधक (भगवद् भक्त) में सहनशीलता, गतिशीलता, अलिप्ता के भाव सदैव रहने चाहिए। वस्तुतः आशा, आसक्ति, लोलुपता, मर्यादा विछिन्नता ही पतन के कारण हैं। पल पल की सावधानी की खातिर दत्तात्रेय ने चौबीस गुरु बनाए, वे बताते हैं कि जीवन में हर चीज से हमें सीख मिलती है।

कथा के प्रारंभ में आपने कहा कि प्रतिष्ठा, मान- बड़ाई के पीछे सम्पूर्ण जीवन बरबाद कर देते हैं। हमारे भीतर तरह-तरह की वासनाओं के बीज पड़े है। न जाने ये कितने जन्मों से हैं और अनुकूल खाद पानी मिलते ही उग आते हैं और साधना धूल धसरित हो जाती है।
मंच संचालन करते हुए डाॅ चेतन स्वामी ने नव दिवसीय सुन्दर कथा के लिए पूरे नगर की ओर से महाराज का आभार ज्ञापित किया। और कहा कि युवा संत की कथा शैली बांधने वाली और मधुर रही है, । आपने कहा कि सामान्य गृहस्थ के जीवन में अनेक विकल्प हो सकते हैं किन्तु साधु के समक्ष तो एकमात्र विकल्प भगवद् साक्षात्कार का ही रहता है।
कथा के समापन पर कथा आयोजक गिरधारीलाल मुकेशकुमार अमितकुमार पारीक परिवार की ओर से संत शिवेन्द्रजी तथा संत दण्डी स्वामी नृसिंह भारती का सम्मान किया गया इस अवसर पर माहेश्वरी महिला समिति की कार्यकर्ता बहनों का भी दुपट्टा पहनाकर स्वागत किया गया। बाहर से आए चालीस अन्य जनों का भी स्वागत किया गया। कथा उपरांत गाजे बाजे, रंग गुलाल तथा पुष्प वर्षा के साथ सैकड़ों नर नारियों ने उत्सव मनाते हुए भागवत कथा को पाराशर मंदिर पहुंचाया। अखिल भारतीय पत्रकार प्रेस क्लब श्रीडूंगरगढ़ के अध्यक्ष पत्रकार तोलाराम मारू का भी सम्मान किया गया। तोलाराम मारू पत्रकार ने महाराज श्री से आशीर्वाद प्राप्त किया।

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