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बीकानेर,लंपी की बीमारी के कारण सरकारी रिकार्ड में अब ढाई हजार गायें मरी है लेकिन हकीकत ये है कि हर रोज दो सौ गाय दम तोड़ रही है और आंकड़ा दस से बीस हजार तक पहुंच गया है। अकेले बीकानेर में हर रोज ढाई सौ से तीन सौ गायों की मौत हो रही है, जिन्हें उठाने के लिए नगर निगम के संसाधन कम पड़ गए हैं। बीकानेर शहर की गायों को शहर से थोड़ी दूरी पर स्थित जोड़बीड़ एरिया में फैंका जा रहा है, जहां आमतौर पर विदेशी गिद्धों के लिए भोजन की कमी रहती है।

बीकानेर शहर के अलावा लूणकरनसर, खाजूवाला, छत्तरगढ़, नोखा, श्रीडूंगरगढ़ और देशनोक एरिया में भी लंपी का प्रकोप जबर्दस्त है। बीकानेर शहर में गायों के शव उठाने का जिम्मा नगर निगम के पास है। निगम के एक सफाई कर्मचारी ने बताया कि हर रोज दो सौ से तीन सौ गायों को जोड़बीड़ एरिया में ही फैंका जा रहा है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं खुले में फैंका जा रहा है तो कहीं जेसीबी मशीन से खड्डे खोदकर गायों को दफनाया जा रहा है। लूणकरनसर में नेशनल हाइवे से कुछ दूरी पर ही गायों की लाशें बिखरी हुई देखी जा सकती है। कमोबेश ऐसे ही हालात महाजन, अरजनसर, खाजूवाला, छत्तरगढ़ के आसपास है। यहां भी शहरों से कुछ दूरी पर गायों को खुले में फैंका जा रहा है या फिर खड्डों में दफनाया जा रहा है।

बीकानेर से महज दो-तीन किलोमीटर की दूरी पर जोड़बीड़ है। जहां दुनियाभर से तरह तरह की प्रजातियों के गिद्ध आते हैं। इन गिद्धों के लिए आमतौर पर मृत जीव के भोजन का अभाव रहता है लेकिन इस बार यहां लंपी गायों के अंबार लगे हैं। कई किलोमीटर लंबे-चौड़े जोड़बीड़ एरिया में मृत जीवों को फैंका जा रहा है। शहर से हर रोज दर्जनभर ट्रेक्टर गायों की लाशें एकत्र करके जोड़बीड़ पहुंच रहे हैं। यहां यत्र तत्र इन लाशों को फैंक दिया जाता है। जो गिद्धों के साथ ही आवारा व जंगली कुत्तों के लिए भोजन बन रही है।

नगर निगम कर्मचारियों का कहना है कि गाय से हर रोज दूध लेने वाले कुछ पशुपालक गाय मरने के बाद उसकी तरफ देखते ही नहीं है। आसपास के लोग मृत गाय को उठाने के लिए निगम से कहते हैं लेकिन खुद पशुपालक की जिम्मेदारी तय नहीं हो रही। वहीं गांवों में पशुपालकों व किसानों ने अपने स्तर पर गायों को उठाने के लिए जेसीबी व ट्रेक्टर की व्यवस्था की है।

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