बीकानेर नोखा, राजस्थान विधानसभा में नोखा विधायक बिहारीलाल बिश्नोई ने राजस्थान माल और सेवा कर (संशोधन) विधेयक 2022 की चर्चा में भाग लिया और सुझाव दिए ।
विधायक बिश्नोई ने कहा कि वित्त विधेयक 2022 में प्रस्तावित धारा 16 (4) में संशोधन द्वारा किसी
भी करदाता को किसी वर्ष की खरीद पर चुकाए गए कर/जीएसटी को क्लेम करने का अधिकार आगामी वर्ष के सितम्बर माह की जगह नवम्बर माह की 13 तारीख तक बढ़ाया गया है । महोदय वित्त विभाग (SDRI) की
रिपोर्ट अनुसार वर्ष 2017-18 से 2020-21 तक 700 करोड़ का कर इन तिथि के बाद करदाताओं ने क्लेम किया जो अभी तक बकाया है और विभाग की धीमी कार्यवाही चल रही है । दूसरा, यह अपेक्षा की जाती है
कि व्यवहारियों की खरीद पर कर को क्लेम करने में पूर्ण छूट हो क्योंकि किसी की खरीद के कर पर प्रतिबन्ध का कारण नहीं है । जो कर का
पैसा खरीद पर चुकाया गया है, उसे ही किसी समय सीमा न बांधा जाये । तीसरा, ऐसी समय सीमा से विभाग के अधिकारीयों पर भी कार्यबोझ
बढेगा, वसूली भी नहीं होगी और लिटिगेशन भी होंगे |
धारा 16(2) अनुसार कोई भी करदाता अपनी सद्भावपूर्ण खरीद पर उतना ही कर/जीएसटी क्रेडिट के रूप में क्लेम कर पायेगा जो विक्रेताओं ने
उस दिन तक अपने रिटर्न में दर्शाया है । बहुत से विक्रेता समय पर रिटर्न नहीं भरते है और यह संख्या बहुत ज्यादा है । अब कोई करदाता किसी दुसरे की गलती से अपना खुद का चुकाया कर भी क्लेम न कर पाए तो यह अति होगी । यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम समय
पर सभी से रिटर्न भराए । विभाग ने अभी तक सभी रिटर्न डिफाल्टर पर कोई भी प्रभावी कार्यवाही नहीं की है । आज 8 लाख करदाता में लगभग 20% करदाता समय पर रिटर्न नहीं भरते । विभाग तो जीएसटी पर काम ही कहा कर रहा है । आपकी सरकार तो वेट के बकाया मांगों को बिना वसूली ही एमनेस्टी स्कीम में रेवड़ियाँ बांटने में लगी हुई है जिसमें कर में भी 80% छूट देकर डिमांड को खत्म कर रहे है I जीएसटी लागू हुए पांच बरस हो गए लेकिन अभी तक आपने
न तो रिटर्न डिफॉल्टर पर सही कार्यवाही की है न ही धारा 16 (2) और धारा 16 (4) के निर्देशों की कोई प्रभावी पालना की है।
धारा 10 में पंजीकृत कम्पोजीशन करदाता के पंजीयन को उस परिस्थिति में निरस्त किया जायेगा जब वो किसी वर्ष में तीन टैक्स पीरियड के रिटर्न नहीं भरेगा | यह सीमा 9 महीने की हो जाती है ।
विधायक बिश्नोई ने कहा कि ऐसे संशोधन की आवश्यकता क्यों आती है ? मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि राजस्थान में पूर्व पांच वर्ष में रिटर्न डिफाल्टर कम्पोजीशन करदाताओं विभाग ने कोई कार्यवाही नहीं की । ये करदाता पूर्णतः अनियंत्रित है क्योंकि ये लोग खरीद की क्रेडिट लेते नहीं। कम टर्नओवर सीमा के कारण विभाग ध्यान देता नहीं । विभाग तो अभी वेट काल के कामों में उलझा हुआ है । कम्पोजीशन करदाता जानबूझकर अपना टर्नओवर 2 करोड़ की सीमा में रखते है ताकि विभाग की नजर में ना आये । दूसरा, यदि रिटर्न ही न भरे तो कोई पूछने वाला ही नहीं है । अत: यह संशोधन हमारी कमी को ज्यादा उजागर करता है कि विभाग से काम न हो तो पोर्टल ही पंजीयन को स्वतः निरस्त कर दे ।
हम इन संशोधन से करदाता को सहज सुविधा दे रहे है और साथ ही विभाग की जिम्मेदारी है कि कानून की पालना सुनिश्चित करे । जिनकी खरीद ज्यादा दिख रही है उनका जमा होने वाला कर भी ध्यान में रखे । लम्बे समय तक रिटर्न नहीं भरकर करदाता अचानक गायब हो जाते है I फेक पंजीयन भी बहुत ज्यादा है । अत: सुविधायों के साथ जिमेदारी से पालना के लिए विभाग को सजक होना होगा जो आज नहीं है ।
धारा 37 में संशोधन से करदाता अपनी विवरणी में उतना ही कर क्लेम कर पायेगा जो उसके खरीदक के खाते GSTR-2B में उस दिन तक दिखता है । यदि उसके खाते में खुद की खरीद से कम कर दिख रहा है क्योंकि विक्रेता ने अपना रिटर्न नहीं भरा है । ऐसी परिस्थिति में करदाता को कैश कर जमा करना होगा । यह एक तरह से दोहरा कर है । इस नियम की पालना जब ही सम्भव है कि विभाग करदाताओं से समय पर रिटर्न भराये। हैरानी की बात यह है कि रिटर्न जमा नहीं करने पर धारा 46, 62 के तहत विभाग को कार्यवाही करनी होती है जो आज तक नगण्य हुई है। करदाता की क्या गलती है जिसने सही खरीद की है ? यह हमारी कमजोरी है कि हम काम नहीं कर पाते ।
धारा 38 के प्रस्तावित समस्त प्रावधान इस बात पर केन्द्रित है कि करदाता को अपनी सदभावपूर्ण खरीद कर क्लेम करने को कैसे नियंत्रित किया जाए । इसका सम्बन्ध यह है कि जो कर राजकोष में जमा नहीं हुआ वो कर हम करदाता को नहीं दे सकते। बात सही भी है लेकिन राजकोष में कर जमा क्यों नहीं हुआ ? यह किसकी कमी होती है लोग अपना कर जमा नहीं करते । यह विभाग जिम्मेदारी है कि प्रभावी नियंत्रण रखे और कर जमा कराये । कानून में सब प्रावधान है, अधिकरियों को इन कार्यों के कानून में शक्तियां दी हुई है लेकिन सरकार तो जीएसटी के काम कराना ही नहीं चाहती ।
ये प्रावधान क्यों आये ? हजारों करोड़ का कर कराताओं ने अपनी खरीद पर क्लेम किया जो विक्रेताओं ने भरा ही नहीं। यह बहुत गंभीर बात है । जो कर खरीद पंजिका में नहीं दिखता और राजकोष में नहीं जमा हुआ । उसका लाभ तो देना संभव नहीं । लेकिन विभाग को भली भांति अवगत है कि कौनसा कर करदाता ने जमा नहीं कराया है। ये सब MIS रिपोर्ट उपलब्ध है लेकिन कोई कार्यवाही ही नहीं करता । ऐसी परिस्थिति में वो करदाता भुगत रहा है जिसने सही खरीद की है।
7. धारा 39, 42, 43, 45, 4950 के संशोधन भी इसी अनुसार है ।
मुद्दे की बात इतनी ही है कि कानून में संशोधन समय की मांग है लेकिन क़ानून की पालना नहीं हो रही है। सरकार की प्राथमिकता व्यापारियों को रिझाना है और इसमें सबसे ज्यादा लाभ उन व्यापारियों को हो रहा है जो काननों की पालना नहीं करते । सद्भावपूर्ण व्यापारी ठगा महसूस करता हैं जब उसको का तो सही से क्रेडिट का लाभ मिलता है और न ही समय पर कर जमा करने का पुरुष्कार । इसका उदाहरण एमनेस्टी स्कीम है जिसमें जिन्होंने बरसों से कर जमा नहीं किया उनके कर में भी 80% तक छूट दे दी। जिसने समय पर कर भरा था उनको लगता है कि वो गलती करते हैं । यह प्रवृति डिफॉल्टर की संख्या बढ़ाएगी और जीएसटी के ये प्रावधान विभाग की कमी के कारण मुश्किल से लागू होंगे।