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बीकानेर,जिप्सम,बजरी और क्ले जैसे खनिजों का •जितना दोहन बीकानेर जिले में हुआ है, उतना किसी दूसरे जिले में नहीं हुआ होगा। सारे नियम कायदों को ताक में रख कर बेहद निर्ममता से भूमि का सीना फाड़ कर खनिज निकाल कर बेचे जा रहे हैं। पुलिस, प्रशासन और राजनेता सब एक दर्शक बन कर बैठे हुए हैं। चिंता की बात यह है कि गोचर, ओरण, वन क्षेत्र जैसे इलाकों में भी बेधड़क खनन हो रहा है। प्रदेश के धार्मिक स्थल और सरोवर भी इससे प्रभावित हो रहे हैं।

बीकानेर से करीब साठ किलोमीटर की दूरी पर कपिल मुनि की तपोस्थली है, जिसे कपिल सरोवर कहा जाता है। पुष्कर सरोवर की भांति, कपिल सरोवर की भी धार्मिक मान्यता है। लाखों श्रद्धालु यहां डुबकी लगाने आते रहे हैं। चिंताजनक बात यह है कि खनन माफियाओं ने कपिल सरोवर के भराव क्षेत्र को भी खोद कर तबाह कर दिया है। कपिल सरोवर को लेकर स्थानीय लोग बेहद चिंतित हैं। सरोवर में यदि पानी नहीं होगा, तो जन आस्था तो आहत होगी ही, धार्मिक पर्यटन भी चौपट हो जाएगा। इसका असर दूसरे काम-धंधों पर भी पड़ेगा। इसीलिए स्थानीय मांग को देखते हुए ऊर्जा मंत्री एवं कोलायत के विधायक भंवरसिंह भाटी ने इस सरोवर को इंदिरागांधी नहर वितरिका से जोड़े जाने को लेकर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था। नहरी विभाग ने भी तकनीकी रूप से इसकी स्वीकृति जारी कर दी थी। विभाग के अनुसार कपिल सरोवर से महज 13 किलोमीटर दूर इंदिरागांधी नहर की वितरिका है। करीब बीस करोड़ रुपए की लागत से इस वितरिका से कपिल सरोवर को जोड़ा जा सकता है। उम्मीद की जा रही थी कि कपिल सरोवर को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार 20 करोड़ रुपए का बजट जारी करेगी, लेकिन बजट में सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।

राज्य सरकार को चाहिए कि वह कपिल सरोवर के जीर्णोद्धार के लिए आगे आए। कपिल सरोवर केवल धार्मिक आस्था का ही विषय नहीं है, अपितु क्षेत्र में रोजगार का भी एक बड़ा जरिया है। हजारों लोग छोटे छोटे गांव-ढाणियों से निकल कर यहां भरने वाले मेले में आते हैं। अपने हुनर का प्रर्दशन कर रोजी-रोटी कमाते हैं। सरकार यदि गौर करे, तो कपिल सरोवर भी पुष्कर की तर्ज पर विकसित हो सकता है। साथ ही राज्य सरकार को यहां हो रहे अंधाधुंध खनन पर भी लगाम लगानी चाहिए।

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