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बीकानेर,किसी भी राज्य के सर्वांगीण विकास में भाषा का अहम योगदान है। मायड़ भाषा राजस्थानी के सशक्तीकरण से प्रदेश भी सशक्त होगा। राजस्थानी की मान्यता के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। राजस्थानी विषय को राज्य के सभी विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, विद्यालयों में आरम्भ करवाया जाए, जिससे अधिकाधिक युवाओं को रोजगार मिल सके। प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा के अध्ययन से ही नई पीढ़ी लाभान्वित-समृद्ध होगी, जो प्रदेश का भविष्य है। शिक्षा, साहित्य, कला, संस्कृति के क्षेत्रों में गंभीरता से कार्य करने के साथ-साथ पर्याप्त बजट उपलब्ध करवाया जाए, जिससे राजस्थान वर्ष 2030 तक देश का अग्रणी राज्य बन सके।
यह विचार राजस्थानी साहित्यकारों-भाषा अनुरागियों ने राजस्थान मिशन-2030 के तहत राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की ओर से अकादमी सभागार में मंगलवार को आयोजित बैठक में रखे। बैठक की अध्यक्षता करते हुए अकादमी अध्यक्ष शिवराज छंगाणी ने कहा कि राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के विकास में युवाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलने से युवाओं को रोजगार के नये अवसर उपलब्ध होंगे। राजस्थानी भाषा में लेखन-पठन, अनुवाद कार्य किया जाए। प्रदेश के चहुंमुखी विकास में हम सभी अपना योगदान दें।
अकादमी सचिव शरद केवलिया ने विषय प्रवर्तन करते हुए अकादमी द्वारा राजस्थानी भाषा के प्रचार-प्रसार की दिशा में किये जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि प्रबुद्धजनों से प्राप्त सुझावों को ‘विजन दस्तावेज-2030’ तैयार किये जाने के लिए भिजवाया जाएगा। अकादमी कोषाध्यक्ष राजेन्द्र जोशी ने संचालन करते हुए कहा कि शिक्षा विभाग की शिविरा पत्रिका तथा जनसंपर्क विभाग की सुजस पत्रिका में राजस्थानी भाषा की सामग्री शामिल की जाये। उन्हांने सभी शिक्षण संस्थाओं में राजस्थानी विषय आरंभ करने की आवश्यकता जताई। डॉ. वेद शर्मा ने कहा कि महाविद्यालयों-विद्यालयों के विद्यार्थियों में राजस्थानी को लोकप्रिय बनाने हेतु निबंध-भाषण प्रतियोगितायें कराई जायें। डॉ. शंकरलाल स्वामी ने प्राथमिक शिक्षा को राजस्थानी में दिये जाने की आवश्यकता जताई। कमल रंगा ने राज्य सरकार से लोक साहित्य अकादमी स्थापित करने, सांस्कृतिक नीति का निर्माण करने, विभिन्न अकादमियों के शिखर पुरस्कारों से सम्मानित साहित्यकारों को सर्किट हाउस-डाक बंगले में ठहरने की सुविधा प्रदान करने की मांग उठाई। पृथ्वीराज रतनू ने राजस्थानी किताबों की सरकारी खरीद व शिक्षा विभाग में राजस्थानी पुस्तक प्रकाशन पुनः आरम्भ करवाने की बात कही। प्रो. डॉ. अजय जोशी ने कहा कि युवाओं को भाषा, संस्कृति से जोड़ने के लिए गंभीरता से प्रयास किए जाएं। सोजत सिटी के साहित्यकार अब्दुल समद राही ने कहा कि शिक्षा, साहित्य, संस्कृति की दिशा में बेहतर आधारभूत संरचना तैयार की जाए, जिससे राज्य के विकास में मदद मिल सके। शंकरसिंह राजपुरोहित ने बच्चों के लिये राजस्थानी में पाठ्य-पुस्तकें तैयार करने की आवश्यकता जताई। डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने कहा कि प्रतियोगी परीक्षाओं में राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति से संबंधित अधिकाधिक प्रश्न पूछे जायें, जिससे राज्य के परीक्षार्थी लाभान्वित हो सकें। डॉ. कृष्णा आचार्य ने कहा कि हम अपने बच्चों को राजस्थानी में बोलना-लिखना सिखायें। मुकेश व्यास ने राजस्थानी में समाचार पत्र प्रकाशित करने की बात कही। डॉ. नमामीशंकर आचार्य ने राजस्थानी भाषा में अधिकाधिक शोध कार्य करने की आवश्यकता जताई। जुगलकिशोर पुरोहित ने कहा कि जनभागीदारी से ही राजस्थानी भाषा का विकास होगा। कासिम बीकानेरी ने राजस्थानी भाषा-साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर साहित्यकार बिशन मतवाला, गोपाल व्यास, इंद्रकुमार छंगाणी, शालिनी कल्ला, श्रीनिवास थानवी, केशव जोशी, सुशील छंगाणी, कानसिंह, आदित्य व्यास, मनोज मोदी सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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