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बीकानेर,लोकतंत्र का संचार माध्यम ( मीडिया ) आधार स्तंम्भ है। भारत जैसे दुनिया के पवित्र लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया की पवित्रता मायने रखती हैं। मीडिया धर्म निभाने में इस कर्म से जुड़े पत्रकारों ने नैतिक पत्रकारिता के लिए पूरे जीवन को दांव पर लगाया है। आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर यह अहम सवाल है कि संचार माध्यम ( मीडिया ) अपनी नैतिक जिम्मेदारी से विमुख होते जा रहे हैं। यह कटु सत्य भी है। क्योंकि बिना पुष्टि के खबरे छपने, प्रसारित करने और टिप्पणी करने से मीडिया बच नहीं पा रहा है। स्व विवेक की नैतिकता प्रतिस्पर्धा की दौड़ में अनदेखी हो रही है। देशभर में विभिन्न मंचों से गाहे बगाहे आवाजे उठ रही है कि प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया को औऱ ज्यादा अपने धर्म के प्रति गंभीर रहने की जरूरत है। अधिक जिम्मेदारी औऱ कर्त्तव्य पालन की आवश्यकता है।। मीडिया नियामक की तरफ प्रभावी ध्यानाकर्षण समय की मांग है। सोशल मीडिया पर भी सरकार प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के नियामक लागू कर दें तो सोशल मीडिया निरंकुश है इस चिंता से निजात मिल पाएगी। न्यूज चैनल का पंजीकरण भी मुख्य धारा के मीडिया की तर्ज पर कर दिया जाए तो न्यूज चैनलों को लेकर सारी वाजिब चिंताएं दूर हो सकेगी। सर्वोच्च न्यायालय से लेकर केंद्र और राज्यों की सरकारों के समक्ष सोशल मीडिया को लेकर उठ रहे सवालों पर चिंताएं हैं। इसका निराकरण सूचना प्रोद्योगिकी के इस युग में नितांत आवश्यक है। वैसे मीडिया समूह प्रेस की आजादी चाहते हैं तो स्व नियमन की पालना लोकतंत्र के हित में करनी चाहिए। प्रेस की आजादी भी चाहे औऱ मनमानी करें यह स्वच्छ लोकतंत्र में नहीं चलेगा। मीडिया अपना धर्म निभाए। नहीं तो मीडिया सवालों के घेरे में तो रहेगा ही। निष्पक्षता औऱ सच्चाई की पत्रकारिता का पतन हो जाएगा। इसका असर सम्पूर्ण लोकतंत्र और मानवता पर पड़ेगा। सोचे मीडिया का क्या हश्र होगा ?

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