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बीकानेर,चार कषाय क्रोध, अभिमान,माया  और लोभ हमारे जीवन का संचालन कर रहे हैं। इस बारे में जब तक चिंतन-मनन नहीं करेंगे, हमारा जीवन प्रगति के पथ पर अग्रसर नहीं होगा। संतो का मंगल प्रवेश तो आपने करवा दिया। लेकिन इससे भी आगे बढक़र जीवन में धर्म को प्रवेश देना चाहिए। यह उदगार युगपुरूष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराज जी म.सा. के सेवानिष्ठ श्री अनुपम मुनि जी म.सा. ने शनिवार को बागड़ी मोहल्ला स्थित  सेठ धनराज ढढ्ढा कोटड़ी में  हुई धर्मसभा में व्यक्त किए ।  उन्होंने कहा कि ज्ञानीजन कहते हैं, मंगल प्रवेश केवल स्थानक में ना हो, मंगल का प्रवेश जीवन में भी होना चाहिए। धर्म का प्रवेश जीवन में होता है तब जीवन में उन्नति दिखती है। धर्म को जीवन में प्रवेश देकर भीतर की गंदगी को बाहर निकाल सकते हैं। धर्म भाव का विषय है, भावों में धर्म होना चाहिए। इससे पूर्व तरूण तपस्वी श्री दिव्यम् मुनि जी म.सा. ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में चार भाव जरूरी है। यह चार भाव आदर, आस्था, आशा और आभार है। यह जीवन में आने आवश्यक होते हैं। इनकी कमी होने पर जीवन में अभाव आ जाता है। अगर हम किसी को सम्मान भाव देंगें, आदर भाव देंगें, कृपा प्रकट करेंगे तो हम कभी अभाव में नहीं पड़ेंगे। यह अभाव से निवृति दिलाते हैं। अंग्रेजों ने केवल तीन शब्द बहुत अच्छे कहे, और वह सर, प्लीज तथा थैंक्यू है। आप जब इनका इस्तेमाल करते हैं, तब सामने वाला प्रसन्न हो जाता है। इसलिए जीवन में अहंकार नहीं होना चाहिए। भाव होने चाहिएं। सुख का मंत्र देते हुए तरूण तपस्वी श्री दिव्यम् मुनि जी म.सा. ने कहा कि विचारों में संयम रखें, शब्दों पर संयम रखें और कर्म अच्छे रखेगें तो हमारी नियति अच्छी बन जाएगी। धर्मसभा के बाद उपस्थित जन समूह ने सामूहिक वंदना की, सभा के विराम पर णमोकार महामंत्र का पाठ किया गया।
सेवानिष्ठ श्री अनुपम मुनि जी म.सा. ने बताया कि युगपुरूष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराज जी म.सा. के नियमित प्रवचन की संभावना शनिवार सुबह 9 बजे से है। धर्मसभा के बाद गौतम प्रसादी का कार्यक्रम आयोजित किया गया।

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