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बीकानेर,राजस्थानी भाषा-साहित्य के महान् पुरोधा और राजस्थानी के अमर गीत ‘धोरा वाळा देस जाग रै, ऊंठा वाळा देस जाग/छाती पर पैणां पड्या नाग रै, धोरां वाळा देस जाग….’ को उन्होंने अपनी अल्पायु में ही रच दिया था। आज इसी अमर गीत को राजस्थानी के बड़े से बड़े समारोह में सुनना राजस्थानी के समृद्ध गीत परंपरा से संस्कारित होना है। ऐसे अमर गीत के रचयिता महान् राजस्थानी विद्वान मनुज देपावत को नमन-स्मरण करना अपनी विरासत से रूबरू होना है।

यह विचार प्रज्ञालय एवं करूणा क्लब नालन्दा की इकाई की ओर से सृजन सदन में उनकी पुण्यतिथि पर आयोजित ‘आपणा पुरोधा’ कार्यक्रम में राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार केन्द्रीय साहित्य अकादेमी नई दिल्ली के मुख्य राष्ट्रीय पुरस्कार एवं अनुवाद पुरस्कार से पुरस्कृत कमल रंगा ने व्यक्त करते हुए उन्हें अपनी विनम्र श्रृद्धांजलि अर्पित की।
रंगा ने आगे कहा कि मनुज देपावत क्रान्तिकारी विचारों के संवाहक तो थे ही साथ ही उन्होंने आम-आवाम की पीड़ा और मरू प्रदेश के हालातों को रेखांकित करते हुए मानवीय वेदना-संवेदना को नव-स्वर दिए। रंगा ने कहा कि उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामंती युग पर करारा प्रहार किया। साथ ही उनकी कविता मानवीय चेतना की सही अर्थों में पैरोकार है।
मनुज देपावत को स्मरण करते हुए कमल रंगा ने कहा कि मेरे साहित्य सृजन के प्रेरणा-पुंज मनुज देपावत है। बीकानेर मरूधरा के देशनोक में 1927 में जाये-जन्मे राजस्थानी के महान् रचनाकार से युवा पीढ़ी को प्रेरणा लेनी चाहिए।
उन्हें स्मरण-नमन करते हुए करूणा क्लब के सह प्रभारी सुनील व्यास, भवानी सिंह, हेमलता व्यास, महावीर स्वामी, विजय गोपाल पुरोहित, आशीष रंगा, अशोक शर्मा, नवनीत व्यास ने अपनी शब्दांजलि देते हुए उन्हें राजस्थानी का अमर साधक बताया।

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