बीकानेर,थार मरुस्थल में स्थित है बीकानेर जिला । जिले के चरित्र और स्वभाव में विद्यमान है बीकानेर की अलमस्तगी, अक्खड़पन और फक्कड़पन,साम्प्रदायिक सद्भाव और सहिष्णुता की अक्षुण्ण परंपरा तथा विश्व- बन्धुत्व और भाईचारे का जीवन- दर्शन । इस नगर की स्थापना विक्रम संवत की वैशाख सुदी द्वितीया तदनुसार 13 अप्रैल, 1488 शनिवार के दिन राव बीका ने की थी । 535 वां नगर स्थापना दिवस सोमवार को है ।
राव बीका जैसे प्रथम शासक से चल कर भारतीय स्वातंत्र्य पश्चात बीकानेर रियासत के राजस्थान राज्य में विलय तक इस पर 22 शासकों ने शासन किया । इस कालावधि में सर्वाधिक उल्लेखनीय रहा है 21 वें शासक महाराजा गंगासिंह का शासन-काल । आधुनिक विकास की यात्रा के इस प्रस्थान-बिन्दु से चल कर आद्यावधि 535 वर्ष के नौजवान हो चुके शहर बीकानेर की चर्चा करेंगे ।
बीकानेर नगर और जिला थार के क्रोड में स्थित है । थार में स्पन्दित प्रत्येक जीवन जीवट का पर्याय हो जाता है । यह आकस्मिक नहीं है कि यहाँ के लोग असाधारण रूप से सहिष्णु और धैर्यवान हैं । स्थित-प्रज्ञ सी मन:स्थिति वाला यह शहर विकास की वर्तमान परिभाषा के चश्मे से देखें तो विकास की संभावना अभी भी मौजूद हैं । अलबत्ता स्थापत्य-कला के अनेक प्रतिमान हमारे नगर में हैं ।इनमें एक ओर महाराजा गंगासिंह के शासन- काल की स्वर्ण जयंती पर सर्वजन हिताय बने अनेक भवन और स्मारक शामिल हैं, वहीँ “हजार हवेलियों का शहर” एक से एक सुन्दर और नायाब हवेलियाँ अपनी हथेली पर सजाए हुए है । इसी तरह परंपरागत उत्पादों में यहाँ के गलीचों की धाक देश-विदेश में रही, तो भुजिया ने आज गलोबल हो कर पूरी दुनिया का ही दिल जीत लिया है । बंगालियों के “रोसोगोल्ला” को भी हमारी देसी और राठी गायों का स्रोत मिला , तो इसकी पहचान कोलकाता के बहू-बाजार से स्थानान्तरित होकर बीकानेर आ बसी। भुजिया को हम नगर का सर्वकालिक कुटीर उद्योग भी कह सकते हैं । इन सबके बावजूद यह जिला औधोगिक दृष्टि से पिछड़ा रहा है । जिले के औधोगिक विकास के लिये यहां के प्रवासियों और अन्य उद्योगपतियों से आग्रह करते हुए, उन्हे आमंत्रित करते हुए, उनके साथ बैठ कर दूरगामी कार्य-योजना बना कर औधोगिक दृष्टि से बीकानेर को समृद्ध बनाया जा सकता है ।
साम्प्रदायिक सद्भाव के क्षेत्र में हिन्दुस्तान में इस नगर का उल्लेखनीय योगदान रहा है, शहर के लोग पुरखों की इस परम्परा को बरसों से निभा रहे हैं छोटे छोटे झगड़े तो मिलजुलकर निपटा लेते है और बड़े दंगों की सोच यहाँ के निवासियों में कभी नहीं रहीं ।
6 दिसम्बर की घटना ने पूरे देश में खलबली मचा दी थी, कही बड़ी तो कही छुटपुट घटनाएं हुईं परन्तु इस शहर की सद्भाव की तासीर के कारण ककंर भी शाँत रहा था। इस शहर के लोगों कर्फ़्यू का रंग तक नहीं जानते । इतनी बड़ी घटना का असर इस शहर में प्रवेश नहीं कर सका। यहां बदमाश की जाति बदमाश ही है, साम्प्रदायिक सद्भाव ही यहाँ के लोगों का धर्म है ।
535 वर्ष किसी नगर की दृष्टि से युवावस्था की उम्र कही जा सकती है । इसे एक सामूहिक युवा सोच का प्रतिनिधित्व करना ही चाहिए । इस सोच में परंपरा की शक्ति और विज्ञान की सार्मथ्य के मणि-कांचन संयोग की अपेक्षा की जा सकती है । जरूरत है मिल-बैठ कर उपरोक्त मुद्दों के अतिरिक्त उच्च शिक्षा, तकनीक, नगर नियोजन, स्वास्थ्य और सौन्दर्यकरण की संभावनाओं पर संवाद करने की।स्थापना- दिवस के प्रसंग में आइये, मिल कर चिन्तन-मनन करें ।