बीकानेर, जैनाचार्य श्रीपूज्य जिनचन्द्र सूरिश्वर ने रांगड़ी चौक के बड़े उपासरे में पर्युषण पर्व के चौथे दिन बुधवार को प्रवचन में कहा कि सर्वज्ञ, विश्व कल्याणकर्ता, संसार के तारक, सर्व हितकारी परमात्मा स्तुति की स्तुति वंदना, अनन्य भाव, भक्ति, सत्य साधना जोश, होश, उत्साह, समर्पण व समता से करें। बड़ा उपासरा में गुरुवार को भगवान महावीर का जन्म कल्याणक मनाया जाएगा।
उन्होंने नमुत्थुणं सूत्र को सुनाते हुए कहा कि भव भ्रमण के नाशक, बारह गुणों के धारक, श्रुतधर्म और चारित्र धर्म के संस्थापक, साधु साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चार तीर्थों के संस्थापक अरिहंत भगवान के अपार गुणों का स्मरण करते हुए स्वयं धारण करने का प्रयास करें।
यति अमृत सुन्दरजी ने कहा कि सुदेव, सुधर्म व सुगुरु तथा सत्य साधना वर्तमान में आनंद में रहना सिखाती है। सबके प्रति अच्छे भाव रखे, भाव से ही भव सुधरता तथा बिगड़ता है। भाव को अच्छा बनाने के लिए अपने दोष देखें, दूसरों के दोष नहीं, गुणों को देखें। दूसरों दोष देखने से आत्म भाव में गिरावट होती है। उन्होंने बताया कि आचारंगसूत्र में बताया गया है कि दुखों का कारण आलस्य, प्रमाद, मोह, लोभ, काम व क्रोध है। सत्य साधना हमें कषायों से मुक्ति का मार्ग दिखाती है, धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ाती है। धर्म पालना की शुरू की गई यात्रा कभी समाप्त नहीं होती।
यतिनि समकित प्रभा ने भगवान महावीर के आत्म भ्रमण के भवों का वर्णन करते हुए कहा कि अध्यात्म में सबसे बड़ा पद तीर्थंकर का होता है। पंचम ज्ञान के धारी तीर्थंकर अरिहंत देव को ईष्ट देव मानकर, साधना, आराधना व भक्ति से मोक्ष के मार्ग पर बढ़े। उन्होंने छंद ’’देवो को पूजे तो देव मिले, स्वर्ग में जाकर काल बिताएं, पितरों को पूजे तो पितृ मिले तो पितरों में बसे। भूत और प्रेतों को पूजने वाले जन्म उन्हीं की योनि में पाए’’ सुनाते हुए कहा कि साधक को सुदेव की भक्ति करनी चाहिए।