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बीकानेर,आप गधे तो नहीं..अक्सर मजाक में कहा-सुना जाता रहा है लेकिन पूर्व मंत्री और भाजपा नेता राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने तो आम मतदाता की तुलना गधे से कर दी है। वे डंके की चोट कहते हैं, जिन राज्यों में गधे कम हो रहे हैं… वहां कांग्रेस हार रही है। गोया गधे वोट कर रहे हो… अथवा गधों से तात्पर्य सीधे-सीधे मतदाता से है। वोटर अब इस कदर कमजोर हो गया है या भाजपा नेता को भरम हो गया है कि वे कुछ भी कह लेंगें और लोग बुरा नहीं मानेंगे। या फिर वे यह कहना चाहते हैं कि सत्तर सालों से कांग्रेस को वोट करता आ रहा वोटर गधा था……? वैसे नेताओं की फितरत को शायद कवि ओम प्रकाश आदित्य ने बहुत पहले भांप लिया था। गौर करें कविता की चंद लाईनें, जिसमें वे कहते हैं।- आदमी की कहां बनी है…… ये दुनियां गधों के लिए ही बनी है। जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है…जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है। जो खेतों में दिखे वो फसली गया है…… जो माइक पे चीखे वो असली गधा है……!

सुबह अद्भुत घटना हुई। अद्भुत इसलिए की शहर में | अब प्रायः नजर नहीं आने वाला गधा नजर आया। और मजे की बात देखिए उसे मिला भी मेरा ही घर दरवाजे पर आहट को पहले तो मैंने अनसुना कर दिया लेकिन जब यह रह-रह कर होने लगी तो जाकर देखा…। गधा दरवाजा पीट रहा था गधा अकेला नहीं था उसके साथ शायद कुमार भी था ये ही लोग गधे पालते हैं लिखना अंदाजे से ऐसा ही लगा…हालांकि बाद में इस बात की तस्दीक हो गई की कुमार का हो गया था। वह गधे को हांकने की कोशिश कर रहा था लेकिन यह था कि इस से मस नहीं हो रहा था। खैर…हमने नीचे जाकर दरवाजा खोला तो पाया कि गधे के मुंह में एक अखबार का पथ और गधा थोड़ी-थोड़ी देर में रक रहा था और गर्दन हिला रहा था। मुद्रा कुछ-कुछ मुस्कराने जैसी थी….सब जानते हैं कि गधी को मुस्कराने का हासिल नहीं है तो यह हमारा भरम हो सकता था। थोड़ी देर हम यह समझने की कोशिश करते रहे कि गधा हमारे दरवाजे पर ही क्यों डटा है….लेकिन जब समझ नहीं आया तो हमने कुम्हार से पूछा भई ये आखिर माजरा क्या है। कुमार भी सकते में था…बोला हुजूर समझ में तो मेरे भी नहीं आ रहा। छोटे से बड़ा हो गया राजकुमार किंतु कभी ऐसी हरकत नहीं की। राजकुमार हमने रिपीट किया तो बोला साहब गधे का नाम है। तो आपके राजकुमार को सुबह-सुबह मेरा ही घर मिला और ये राजकुमार साहब नेट से हट क्यों नहीं रहे है, बताएंगे जरा..? कुम्हार बोला, साहब यह कभी अखवार नहीं चबाता लेकिन आज सुबह पड़ोसीख पड़ रहा था तो बीच में से एक पत्र ले दौड़ा और तभी से इसे मुंह में रखे है। थोड़ी-थोड़ी देर में अखबार को जोर-जोर से चाता है. फिर थोड़ा मुंह खोलकर गर्दन हिलाने लगता है…..जरूर इस अखबार में कुछ राज है….आप देखिए ना करते हुए कुम्हार ने झटके है…. से अखबार का पागधे के मुंह से खींचा और हमारे हवाले कर दिया लिसलिसे हुए इस पो को हाथ में लेने की इच्छा तो नहीं भी…. ना जाने कौनसी अदृश्य शक्ति ने हिम्मत दे दी। हमने पो को उलट-पलट के देखा तो उसमें छपी एक खबर पर नजर ठहर गई। यह खबर पूर्व मंत्री और भाजपा नेता राजेन्द्र सिंह राठौड़ के हवाले से छपरी थी खबर में राठौड़ कहते हैं कि जिन राज्यों में गधे कम हो रहे हैं वह काग्रेस हार रही है। पांच राज्यों के चुनाव परिणामों का हवाला देते हुए राठौड़ कहते खड़ा है। है कि राजस्थान में भी गधे कम हो रहे हैं और अगले साल चुनाव है। खबर पढ़कर माथा उनका लेकिन फिर सोचा कागज चबाना जानवरों की आदत होती… तो हो सकता है गधे ने भी ऐसा किया हो… अगले हो पल कुम्हार की आवाज ने चौंका दिया…बोला साह.. इसमें जरूर कोई ऐसी बात होगी अन्यथा राजकुमार कभी तंग नहीं करता.. मैं कई बार इसे शहर लेकर आया हूं लेकिन आज तो यह आपके दरवाजे पर ही रमड़ गया है और कागज पर गुस्सा निकाल रहा है। मैंने कुम्हार से

सवाल किया भाई यह बताओ तुम्हें क्यों ऐसा लगता है…हो सकता है यह भूखा से और ऐसा कर बैठा हो…..बात खत्म होती इससे पहले हो गया जोर-जोर से उछल कर रेकने लगा…मानो कुछ कह रहा हो। कुम्बर बोला, राजकुमार बहुत भोला है…तभी तो गधा है। लेकिन जब कोई इसके समाज को उलाहना देता है तो यह बिगड़ जाता है। मुझे तो लगता है अखबार में जरूर गधों को लेकर कोई बात छपी है। अन्यथा यह पूरा अखबार लेकर भागने के…बाँच का पत्रा लेकर ही क्यों भागता हो सकता है संयोग हो…मैंने कुमार को खबर के बारे में बताया। इस बार भी बात पूरी होती इससे पहले हो गधा लोट लगाकर यहां-वहां मुड़कने लगा मानों कर रहा हो… नेताजी ने गधों को ही नहीं कोसा है… आम मतदाता को भी गधा करार दे दिया है। चुनावों में मतदान तो मतदाता ही करता है। गधे तो गधे होने पर खुश है। यूपी चुनावों में गधों का जिक्र स्वयं नरेन्द्र मोदी करते हैं तो गधों की गाथा अमिताभ बच्चन सुनाते हैं। मुल्क के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से भी एक बार परदेस में गधों को लेकर सवाल पूछ लिया गया था। सवाल पा सभी गीरे एक रंग के होते हैं लेकिन इंडियन अलग-अलग रंग के क्या वजह है? नेहरूजी ने संजीदगी से जवाब दिया कि गधे ही एक रंग के होते हैं…घोड़ों का रंग अलग-अलग होता है। गधों को कमतर नहीं आना चाहिए। राठौड़ की बात का यह जवाब है या नहीं… आप स्वयं तय करें कवि ओम प्रकाश आदित्य कविता में गधों को कुछ और नजर से देखते हैं, वे कहते हैं….

इधर भी गधे हैं, उधर भी गये हैं…जिधर देखता हूं गधे हो गये है गधे हंस रहे आदमी से रहा है… हिंदोस्ता में ये क्या हो रहा है। ये दिल्ली ये पालम गधों के लिए है…ये संसार सालम गधों के लिए तो आप फैसला करें गधों को लेकर….. कहीं ना कहीं स्वयं को लेकर क्योंकि परोही सही आम मतदाता भी पूर्व मंत्रीजी राठौड़ की नजर में गया हो गया है, जो अब तक कांग्रेस को वोट करता रहा….अब इनकी तादाद कम हो रही है तो कांग्रेस हार रही है….जैसा पूर्व मंत्री राठौड़ ने कहा। अलबत्ता गधे खुश हैं…खुश है पहली बार उसकी तुलना समझदार इंसानों से की गई है। खुश है स्वर्गधाम के बीच गधा

अन्यथा उनकी वक्त अमरीका की डेमोक्रेटिक पार्टी ने ही समझी भी जिसका चुनाव चिन्ह गधा है तो संभल जाईए इन राजनेताओं से….. जो.. जरूरत के लिए आपको गधा बनाते हैं… अब तो कहने से भी नहीं चूक रहे। इंवोएम का बटन दबाते समय भले ही आवाज ‘पी…’ आए लेकिन परिणाम बाद ये नेता एंड़ियां रगड़ते नजर आने चाहिए।

(ये मेरे निजी विचार हैं)

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