बीकानेर,जयनारायण व्यास कॉलोनी स्थित जाम्भाणी साहित्य अकादमी भवन में मंगलवार को आयोजित सम्मान समारोह में सत्साहित्य के उत्कृष्ट प्रचारक पृथ्वीसिंह गिला को उनकी अभूतपूर्व साहित्यिक सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह में बोलते हुए अकादमी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री राजाराम धारणियां ने इस विषय में गीता के श्लोक उद्धृत करते हुए कहा की-
य इमं परमं गुह्यं मद् भक्तेष्वभिधास्यति।
भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशय़ः।।
न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः।
भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि।। गीता 18/68-69।।
जो पुरुष मुझमें परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीताशास्त्र को मेरे भक्तों से कहेगा, वह मुझको ही प्राप्त होगा – इसमें कोई सन्देह नहीं। उससे बढ़कर मेरा कोई प्रिय कार्य करने वाला मनुष्यों में कोई भी नहीं है तथा पृथ्वीभर में उससे बढ़कर मेरा प्रिय दूसरा कोई भविष्य में होगा भी नहीं।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण गीता के प्रचारक की स्वयं अपने मुख से महिमा गाते हुए उसे अपना परम प्रिय बताते है। गीता भगवान के श्रीमुख से निसृत है उसी प्रकार सबदवाणी भी स्वयं भगवान विष्णु के अवतार गुरु जाम्भोजी के श्रीमुख से निकली हुई ज्ञानगंगा है। इस ज्ञानगंगा में जो स्नान करता है वह परमपद मोक्ष का अधिकारी हो जाता है तथा उस परम बड़भागी जीव के भाग्य की बड़ाई तो देवता लोग भी करते हैं जो इस ज्ञानगंगा में दूसरों को भी स्नान करवाता है। आज के समय में इस प्रकार के कार्य करने वाले सज्जन का नाम है श्री पृथ्वी सिंह गिला जो जाम्भाणी साहित्य का दानदाताओं से सहयोग लेकर वितरण भी करते हैं। वे इसके साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा के लिए वृक्षारोपण भी करवाते हैं क्योंकि गुरु जाम्भोजी और जाम्भाणी संतों की सर्वहितकारी वाणी पर्यावरणीय चेतना से भरपूर है इसलिए इस वाणी के प्रचार का प्रयोगात्मक रुप वृक्षारोपण है।
श्री पृथ्वीसिंह गिला का जन्म 15 अगस्त 1955 को गांव आदमपुर जिला हिसार हरियाणा में श्री शंकर लाल गिला के घर श्रीमती पतासी देवी की कोख से हुआ। आप सरकारी सेवा में रहते हुए जड एम ई ओ ( जोनल मार्केटिंग इंफोर्समेंट ओफिसर ) के पद से सेवानिवृत्त हुए । सेवानिवृत्त के बाद आपने गुरु जाम्भोजी और जाम्भाणी संतों की वाणी के प्रचार को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया। आप जगह- जगह घूमकर जहां पर जाम्भाणी हरि कथा आदि आयोजन होते हैं उसकी शुरुआत वृक्षारोपण से करवाते हैं । लोगों को जाम्भाणी साहित्य वितरित /दान करने के लिए प्रेरित करते हैं। जहां पर जांभाणी कथा का आयोजन होता है आयोजकों से आग्रह करके मोमेंटो के तौर पर जांभाणी साहित्य दिलवाते हैं।किसी के विवाह-शादी, जन्मदिन, पदोन्नति गृहप्रवेश का शुभ अवसर हो, किसी सेवानिवृत्ति हो अथवा किसी के बड़े-बुजुर्ग, प्रियजन की स्मृति का अवसर हो ये उनके नाम के फोटो सहित स्टीकर बनाकर उनके द्वारा संकल्पित पुस्तकों पर लगाकर उसे समाज में संस्कार परीक्षा या जाम्भाणी हरी कथा के माध्यम से वितरित कर देते हैं। इन्होंने अब तक जाम्भाणी साहित्य अकादमी बीकानेर द्वारा प्रकाशित 3500 सबदवाणी , 3675 जम्भसागर , 1800 बाल पोथी ,950 सूक्ति सागर , 200 बिश्नोई पंथ और साहित्य , कुल 10125 पुस्तकों का वितरण किया है । वृक्षारोपण व जाम्भाणी साहित्य वितरण अभियान को ये जीवन भर चलाना चाहते हैं। इनकी पहचान अब समाज में जाम्भाणी साहित्य प्रचारक के रूप में बन चुकी है और लोग स्वयं इनसे संपर्क करके इनके इस अभियान से जुड़कर जाम्भाणी साहित्य इन्हें वितरण के लिए दान मे दे रहे हैं। सम्मान समारोह में श्री बुधराम सहारण, डॉ हरिराम बिश्नोई, रविन्द्र राहड़, ठेकेदार एस के साहब, सुभाष खीचड़, अजयपाल गीला भी उपस्थित रहे। जाम्भाणी साहित्य अकादमी बीकानेर की संरक्षिका डॉ सरस्वती बिश्नोई, आचार्य कृष्णानंदजी ऋषिकेश, अकादमी की अध्यक्षा प्रो(डॉ) इंद्रा विश्नोई, पूर्व महासचिव डॉ सुरेन्द्र कुमार खिचड़, कोषाध्यक्ष डॉ भंवरलाल बिश्नोई, महासचिव विनोद जम्भदास ने इन्हें इस पुण्य कार्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए इनका आभार प्रकट किया।