बीकानेर,संभागीय आयुक्त नीरज के. पवन ने उपनगरीय क्षेत्र गंगाशहर में रसोई गैस सिलेंडर से रिफिलिंग का मामला पकड़ा। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की। शहर के हर इलाके में ऐसा हो रहा है। सिलेंडर आपूर्ति में ऐसे उचके भी लगे हैं जो खाली सील्ड सिलेंडर रखकर पैसे ले जाते हैं। अधीनस्थ अधिकारी जिसमें कलक्टर, जिला रसद अधिकारी और रसद विभाग के इंस्पेक्टर ने आयुक्त की कार्रवाई से क्या लेशन लिया? कुछ तो शर्म आई ही होगी? जनता के प्रति प्रशासनिक ड्यूटी का भान नहीं हुआ? सोसायटी में प्रशानिक शिथिलता के चलते जो हालत है उनको कैसे नियंत्रण में लाया जा सकता है। यह प्रशासन और अफसरों को अगर सीखना है तो डा नीरज के पवन से सीख सकते हैं। यातायात व्यवस्था के प्रति डिविजनल कमिश्नर क्यों सिर दर्द लें। उनको कुछ अव्यवस्था लगे तो निचले जिम्मेदार अधिकारियों को डांट डपट कर दें। कर्तव्य की इतिश्री, परंतु वे ऐसा नहीं कर रहे हैं खुद को जिम्मेदार मान कर हर काम करवाते हैं और करते हैं। मैनें मेरी 35 साल की सक्रिय पत्रकारिता के कार्यकाल में ऐसे जितने अफसर देखें हैं उनमें डा नीरज के पवन का काम उनके अधीनस्थ अधिकारियों को सीख देने वाला है। एक मेरे पॉलिटिकल मित्र ने मेरे दफ्तर में काम करने के तरीके, जनता का विश्वास और जन हित के प्रति अफसरों में जिम्मदारी की भावना की चर्चा के दौरान बताया कि जनता ने कलक्टर ऑफिस तो जाना ही कम कर दिया। कमिश्नर के यहां हर वक्त भीड़ लगी रहती है। यह उनका एक संकेत था। जिसमें गहरी अभिशंसा भरी हुई थी। मेरे एक रिलेटिव का श्रीकोलायत से कुछ दिन पहले फोन आया कि संभागीय आयुक्त श्रीकोलायत आए और मुख्य मार्ग के सारे कब्जे तोड़ गए। उनका भी बाहर रखा जनरेटर तत्काल हटवा दिया। बोले बोल्ड अफसर है दबंगता से काम कर के चले गए। कई लोगों ने मंत्री को फोन भी किया। कुछ नहीं हुआ। मंत्री के फोलोवर्स एसडीएम, तहसीलदार मुंह ताकते रह गए। उनका कहना था कि इससे मेलार्थियों और यात्रियों को सुविधा हुई और तत्काल ही यातायात सुधरा। नीरज के पवन के कामों की प्रशंसा जनता के जुबान पर है। इससे उनके सक्रियता और जिम्मेदार अफसर होने की टिप्पणी चापलूसी नहीं हो सकती।वे अपनी सुख सुविधा छोड़कर बिना किसी पक्षपात के जन हित के काम करते हैं। जहां अव्यवस्था दिखती है खुद रुककर सुधार के प्रयास करते हैं। बाकी अफसरों की साख पर जनता बट्टा लगा रही हैं। वो मीटिंगों में तल्लीन, एसी में रहने और एक ही तरह के कोकस से घिरे रहने के कारण उनको अपनी बाहर की छवि का अहसास ही नहीं हो रहा। ऐसे अफसरों को अपने पद, प्रतिष्ठा और मान की चिंता कर लेनी चाहिए नहीं तो उनकी जनता और नेता चर्चा में उदाहरण के रूप में उल्लेख करेंगे। यह उनकी छवि पर माने तो बड़ी टिप्पणी होगी। नहीं मानें तो कुछ भी नहीं।
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