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बीकानेर, देश के वरिष्ठतम साहित्यकार लक्ष्मीनारायण रंगा की हिन्दी-राजस्थानी भाषा में नवप्रकाशित विभिन्न विधाओं की 51 पुस्तकों का ऐतिहासिक लोकार्पण अतिथियों एवं प्रकाशन ग्रुप की सुषमा रंगा द्वारा शनिवार देर रात धरणीधर रंगमंच पर हुआ। प्रज्ञालय संस्थान व सुषमा प्रकाशन ग्रुप की ओर से आयोजित “रंग सवायौ” समारोह में कीर्तिमान रचते ऐतिहासिक आयोजन में प्रदेश के गणमान्य लोगों एवं ई-तकनीक के माध्यम से देशभर के साहित्य प्रेमी साक्षी बने। समारोह की अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार-आलोचक डॉ. अर्जुनदेव चारण ने कहा कि लक्ष्मीनारायण रंगा ने अपने सृजन से आनेवाली पीढ़ियों के लिए साक्षी भाव रखा है। 51 पुस्तकों का लोकार्पण शब्द शिल्पी रंगा की सृजन यात्रा का सम्मान है। चारण ने रंगा सहित करोड़ों लोगों की जनभावना राजस्थानी भाषा मान्यता के लिए सशक्त पैरोकारी की। समारोह के अतिथि केन्द्रीय राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि रंगा की सृजन यात्रा का सबसे बड़ा सम्मान यही है कि उनकी तीन पीढ़ियां साहित्य सृजन में लगी हुई है। साहित्य-कला-संस्कृति के लिए यह अच्छा संकेत है। साथ ही रंगा ने 125 पुस्तकें रचकर कई पीढ़ियों को संस्कारित किया है जो हमारे लिए गौरव की बात है। मेघवाल ने राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए अपने द्वारा किए गए प्रयासों के बारे में भी बताया।अतिथि के रूप में राजस्थान सरकार के केबिनेट मंत्री डॉ. बी.डी. कल्ला ने कहा कि लक्ष्मीनारायण रंगा का साहित्य आज जन-जन की जुबान बन गया है। डॉ कल्ला ने रंगा के सृजन साहित्य को मानवीय संवेदनाओं का दस्तावेज बताते हुए उन्हें सामाजिक सरोकार का पैरोकार कहा। कल्ला ने राजस्थानी भाषा के लिए अपने द्वारा किए प्रयासों का हवाला देते हुए राजस्थानी की मान्यता के लिए पोस्टकार्ड अभियान चलाने की बात कही।साहित्यकार-पत्रकार मधु आचार्य ने लक्ष्मीनारायण रंगा को साहित्य ऋषि बताते हुए कहा कि साहित्य की जब भी चर्चा होगी रंगा का जिक्र अवश्य आएगा। रंगा ने साहित्य रच देशभर में बीकानेर को साहित्य की छोटी काशी बना दिया है। रंग-सवायौ समारोह के आरंभ में स्वागत उद्बोधन में कवि-कथाकार कमल रंगा ने लक्ष्मीनायण रंगा की 70 साल की सृजन यात्रा का वर्णन करते हुए रंगा द्वारा साहित्य सृजन के साथ साहित्य की रचने के लिए पीढ़ियां तैयार करना न केवल साहित्य बल्कि समाज के लिए भी अच्छा संकेत है। लक्ष्मीनारायण रंगा के अस्वस्थता चलते उनकी साहित्यकार पौत्री डॉ चारुलता रंगा ने उनके द्वारा लिखित उद्बोधन को पढ़ते हुए उनकी राजस्थानी मान्यता एवं स्वतंत्र राजस्थानी रंगमंच की स्थापना की गहरी पीड़ा को साझा करते हुए उन्हीं के शब्द ‘जितने पल रच पाऊंगा बस उतने ही पल बच पाऊंगा.., साहित्य से हैवान भी इंसान बन जाता है…’ बताते हुए रंगा की साहित्य सृजन प्रक्रिया और यात्रा का वर्णन किया। रंगा के रंगकर्म पर पत्र वाचन करते हुए दयानंद शर्मा ने कहा कि रंगा रंगमंच की आत्मा से साक्षात्कार कराने वाले समर्थ नाटककार हैं, उन्होंने सम्पूर्ण रंगमंचीय ज्ञान को आत्मसात किया है। रंगा के साहित्य पर पत्रवाचन करते हुए साहित्यकार हरिशंकर आचार्य ने कहा कि रंगा की साहित्य सृजन यात्रा में सात दशकों की तपस्या छिपी हुई है। रंगा की कलम हमेशा सामाजिक विद्रूपताओं के विरुद्ध चली है। प्रज्ञालय संस्थान और सुषमा प्रकाशन ग्रुप की ओर से राजेश रंगा,पुनीत रंगा एवं अंकित रंगा ने अतिथियों का शाल साफा आदि अर्पित कर अभिनंदन किया। इस अवसर पर धरणीधर रंगमंच ट्रस्ट की ओर से पूर्व उपमहापौर अशोक आचार्य और संस्कृतिकर्मी आनंद जोशी सहित ट्रस्ट के सदस्यगणों ने अतिथियों का सम्मान किया। इस भव्य अवसर पर श्री रंगा का अनेक संस्थाओं, नगर के गणमान्य लोगों एवं परिजनों द्वारा आत्मिक अभिनंदन किया गया। आगंतुकों का आभार सुमित रंगा ने स्वीकार किया। समारोह का सफल संचालन युवा साहित्यकार-पत्रकार हरीश बी. शर्मा ने किया।

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