कथारंग साहित्य वार्षिकी का लोकार्पण,देश के 180 रचनाकार हैं शामिल
बीकानेर। कथारंग साहित्य वार्षिकी का लोकार्पण गुरुवार को स्थानीय रमेश इंग्लिश स्कूल में हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ रंगकर्मी, पत्रकार व साहित्यकार मधु आचार्य ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजस्थान राज्य अभिलेखागार के निदेशक डॉ.महेंद्र खडग़ावत तथा विशिष्ट अतिथि साहित्यकार अनिरुद्ध उमट व वास्तुविद आर.के.सुतार थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि यह संवेदना का संकटकाल है, जिसके कारण कईं गिनाए जा सकते हैं लेकिन ‘कथारंग’ की यह साहित्य वार्षिकी संवेदना को बचाए रखने का प्रमाण है। यह साहित्य वार्षिकी आने वाले समय के लिए दस्तावेज होगी कि जब समाज संवेदनहीन हो रहा था तब भी रचनाकारों को कलम की ताकत पर भरोसा था और उन्होंने सृजन नहीं छोड़ा। आचार्य ने कहा कि यह साहित्यिक पत्रकारिता की यह बहुत बड़ी घटना है कि एक छोटे से शहर से इतनी बड़ी साहित्य वार्षिकी लगातार प्रकाशित होने का जज्बा लिये सामने आई है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.महेंद्र खडग़ावत ने कहा कि साहित्य की संगत व्यक्तियों तक सीमित नहीं होकर परिवारों तक होनी चाहिए। इस तरह के आयोजन न सिर्फ सोच का परिष्कार करते हैं बल्कि संस्कारित भी करते हैं। उन्होंने मां को पहला साहित्यकार बताते हुए कहा कि जब हर दिन नई लोरियां, नई कहानी और नई बात सुनाने के लिए बच्चे ने जिद की होगी तो संभवतया मां के मन में नया रचने की सूझी होगी। कल्पना से निकली उसी बात ने कालांतर में साहित्य का रूप ले लिया।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि साहित्यकार अनिरुद्ध उमट ने कहा कि जागरूक समाज को मारने के लिए सबसे पहले उसकी स्मृतियों को मारा जाता है, लेकिन कथारंग के माध्यम से इसे संजोने का काम हुआ है। कथारंग आज के समय का इम्यूनिटी-पावर है। यह विवेक, करुणा और सहनशीलता बची रहने की संभावना जगाती है। वास्तुविद आर.के.सुतार ने इस अवसर पर कहा कि लेखक व पाठक की छवि समाज में श्रेष्ठ-पुरुष की रही है। इसलिए समाज उनका अनुसरण करता है। ऐसे श्रेष्ठ पुरुषों के सृजन से सजी कथारंग का प्रभाव समाज पर सकारात्मकता पड़ेगा। यह एक ऐसी किताब है जो समकालीन सृजन को पाठकों तक पहुंचाने का माध्यम बनी है, जो आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत है।
कथारंग के संपादक हरीश बी. शर्मा ने कहा कि यह एक साझा प्रयास है। गुणी और गणमान्यों का मार्गदर्शन से यह कार्य संभव हुआ है ताकि आम आदमी तक साहित्य पहुंच सके और साहित्यकार भी इस चुनौती को समझ सके कि जन तक पहुंचने के लिए उनका सृजन कैसा हो।
प्रारंभ में कवयित्री-उपन्यासकार मनीषा आर्य सोनी ने कथारंग साहित्य वार्षिकी पर पत्रवाचन में कहा कि यह एक श्रमसाध्य कार्य है, जो बीकानेर में ही संभव है। उन्होंने कहा कि चेतन औदिच्य का आवरण चित्र जहां कोरोना से निकलते हुए नये युग में प्रवेश का आशावाद दर्शाता है तो विविध विषयों पर आलेख हमारी चेतना को स्पंदित करते हैं। यह एक संग्रहणीय अंक है। स्वागत वक्तव्य में पत्रकार धीरेंद्र आचार्य ने बताया कि जन तक सृजन के लिए अमीर खुसरो ने नौ सौ साल पहले फारसी से हिंदी में रचने की पहल की थी, ऐसा ही कथारंग के माध्यम से हो रहा है। पत्रकार अनुराग हर्ष ने आभार स्वीकार किया। संचालन कवयित्री-कहानीकार ऋतु शर्मा ने किया।
कथारंग का यह अंक संत संवित सोमगिरिजी, अध्यात्मानुरागी अंबालाल आचार्य, साहित्यकार डॉ.श्रीलाल मोहता, लोक-संस्कृति विवेचक डॉ.कृष्णचंद्र शर्मा व शिक्षक नेता-साहित्यानुरागी चंद्रेश गहलोत को समर्पित किया गया।
गायत्री प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कथारंग साहित्य वार्षिकी में देशभर के साहित्यकारों की रचनाएं हैं। 180 रचनाकारों के उत्कृष्ट सृजन की इस 480 पेज की कृति में 17 राज्यों के 59 नगर के रचनाकार शामिल हैं। दो रचनाकार विदेश से भी हैं। इस अंक में 17 साक्षात्कार, 12 आलेख, 37 किताबों की समीक्षा, 47 कवियों की कविताएं, 39 कहानियां, नौ अनुवाद, 11 संवाद, नौ लघुकथाएं, आठ व्यंग्य, तीन उपन्यास अंश, तीन यात्रा वृत्तांत तथा एक नाटक शामिल है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि यह संवेदना का संकटकाल है, जिसके कारण कईं गिनाए जा सकते हैं लेकिन ‘कथारंग’ की यह साहित्य वार्षिकी संवेदना को बचाए रखने का प्रमाण है। यह साहित्य वार्षिकी आने वाले समय के लिए दस्तावेज होगी कि जब समाज संवेदनहीन हो रहा था तब भी रचनाकारों को कलम की ताकत पर भरोसा था और उन्होंने सृजन नहीं छोड़ा। आचार्य ने कहा कि यह साहित्यिक पत्रकारिता की यह बहुत बड़ी घटना है कि एक छोटे से शहर से इतनी बड़ी साहित्य वार्षिकी लगातार प्रकाशित होने का जज्बा लिये सामने आई है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.महेंद्र खडग़ावत ने कहा कि साहित्य की संगत व्यक्तियों तक सीमित नहीं होकर परिवारों तक होनी चाहिए। इस तरह के आयोजन न सिर्फ सोच का परिष्कार करते हैं बल्कि संस्कारित भी करते हैं। उन्होंने मां को पहला साहित्यकार बताते हुए कहा कि जब हर दिन नई लोरियां, नई कहानी और नई बात सुनाने के लिए बच्चे ने जिद की होगी तो संभवतया मां के मन में नया रचने की सूझी होगी। कल्पना से निकली उसी बात ने कालांतर में साहित्य का रूप ले लिया।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि साहित्यकार अनिरुद्ध उमट ने कहा कि जागरूक समाज को मारने के लिए सबसे पहले उसकी स्मृतियों को मारा जाता है, लेकिन कथारंग के माध्यम से इसे संजोने का काम हुआ है। कथारंग आज के समय का इम्यूनिटी-पावर है। यह विवेक, करुणा और सहनशीलता बची रहने की संभावना जगाती है। वास्तुविद आर.के.सुतार ने इस अवसर पर कहा कि लेखक व पाठक की छवि समाज में श्रेष्ठ-पुरुष की रही है। इसलिए समाज उनका अनुसरण करता है। ऐसे श्रेष्ठ पुरुषों के सृजन से सजी कथारंग का प्रभाव समाज पर सकारात्मकता पड़ेगा। यह एक ऐसी किताब है जो समकालीन सृजन को पाठकों तक पहुंचाने का माध्यम बनी है, जो आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत है।
कथारंग के संपादक हरीश बी. शर्मा ने कहा कि यह एक साझा प्रयास है। गुणी और गणमान्यों का मार्गदर्शन से यह कार्य संभव हुआ है ताकि आम आदमी तक साहित्य पहुंच सके और साहित्यकार भी इस चुनौती को समझ सके कि जन तक पहुंचने के लिए उनका सृजन कैसा हो।
प्रारंभ में कवयित्री-उपन्यासकार मनीषा आर्य सोनी ने कथारंग साहित्य वार्षिकी पर पत्रवाचन में कहा कि यह एक श्रमसाध्य कार्य है, जो बीकानेर में ही संभव है। उन्होंने कहा कि चेतन औदिच्य का आवरण चित्र जहां कोरोना से निकलते हुए नये युग में प्रवेश का आशावाद दर्शाता है तो विविध विषयों पर आलेख हमारी चेतना को स्पंदित करते हैं। यह एक संग्रहणीय अंक है। स्वागत वक्तव्य में पत्रकार धीरेंद्र आचार्य ने बताया कि जन तक सृजन के लिए अमीर खुसरो ने नौ सौ साल पहले फारसी से हिंदी में रचने की पहल की थी, ऐसा ही कथारंग के माध्यम से हो रहा है। पत्रकार अनुराग हर्ष ने आभार स्वीकार किया। संचालन कवयित्री-कहानीकार ऋतु शर्मा ने किया।
कथारंग का यह अंक संत संवित सोमगिरिजी, अध्यात्मानुरागी अंबालाल आचार्य, साहित्यकार डॉ.श्रीलाल मोहता, लोक-संस्कृति विवेचक डॉ.कृष्णचंद्र शर्मा व शिक्षक नेता-साहित्यानुरागी चंद्रेश गहलोत को समर्पित किया गया।
गायत्री प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कथारंग साहित्य वार्षिकी में देशभर के साहित्यकारों की रचनाएं हैं। 180 रचनाकारों के उत्कृष्ट सृजन की इस 480 पेज की कृति में 17 राज्यों के 59 नगर के रचनाकार शामिल हैं। दो रचनाकार विदेश से भी हैं। इस अंक में 17 साक्षात्कार, 12 आलेख, 37 किताबों की समीक्षा, 47 कवियों की कविताएं, 39 कहानियां, नौ अनुवाद, 11 संवाद, नौ लघुकथाएं, आठ व्यंग्य, तीन उपन्यास अंश, तीन यात्रा वृत्तांत तथा एक नाटक शामिल है।