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बीकानेर,बात सन् 2000 की है. पुरानी दिल्ली के एक बड़े व्यापारी को दुबई से एक कॉल आया. फोन के दूसरी ओर बात करने वाले ने धमकाया कि वो डी गैंग से जुड़ा है और छोटा शकील और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहीम को उसे 5 करोड़ रुपये भेजने होंगे.मामला बेहद संगीन हो गया. दिल्ली पुलिस तुरंत हरकत में आई और व्यापारी के बीते दिनों संपर्क में आए लोगों की कुंडली खंगालना शुरू कर दिया. इसी में से एक नाम निकला एक दौर के कैसेट किंग के भाई कृष्ण कुमार का. कृष्ण कुमार का फोन सर्विलांस पर डाल दिया गया. शुरुआत में पुलिस के हाथ खाली रहे.

पासा पलटा
हालांकि कुछ ही समय बाद पासा पलटा और 20 फरवरी 2000 को कृष्ण कुमार ने अपना फोन लंदन के एक दोस्त दिल्ली के एक व्यापारी को सौंप दिया वो अभी-अभी मुंबई  आया था और उसी ताज महल होटल में रुका था जहां दक्षिण अफ्रीकी टीम रुकी थी. अब उस व्यापारी पर पुलिस ने नजर रखना शुरू कर दिया. उसी दिल्ली के व्यापारी ने दक्षिण अफ्रीकी टीम के एक बड़े खिलाड़ी को एक फोन उपलब्ध कराया, यहीं से राज गहरा गया. उस वक्त दक्षिण अफ्रीका और भारत के बीच क्रिकेट सीरीज हो रही थी और आश्चर्यजनक रूप से उस व्यापारी और दक्षिण अफ्रीका के इस खिलाड़ी के बीच कॉल की संख्या काफी ज्यादा बढ़ गई. इनकी बातचीत से साफ हो गया कि ये व्यापारी दिल्ली और मुंबई के अन्य सट्टा ऑपरेटरों के साथ इस खेल से पहले क्रिकेट मैच फिक्स करने में लगा हुआ था.

दिल्ली पुलिस की प्रेस कॉन्फ्रेंस
मामला काफी बड़ा था. 7 अप्रैल सन् 2000 को दिल्ली पुलिस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की कि हाल ही में संपन्न हुई भारत-दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट सीरीज के दौरान भारत के कुछ व्यापारी मैच फिक्सिंग के लिए दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट खिलाड़ियों के संपर्क में थे.पैसा लेकर मैच फिक्स करने की इस साजिश में दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी की पहचान हैंसी क्रोन्ये के रूप में हुई. इसमें जिस व्यापारी का जिक्र हो रहा था उसकी पहचान दिल्ली के जंगपुरा निवासी संजीव चावला के रूप में हुई.

हैंसी क्रोन्ये ने मैच फिक्सिंग की बात स्वीकारी
ऐसा आरोप लगता है कि मैच फिक्सिंग की रकम हैंसी क्रोन्ये के अलावा दक्षिण अफ्रीकी टीम के अन्य खिलाड़ियों को भी मिली थी जिसमें हर्शेल गिब्स, पीटर स्ट्रेडम और निकी बोजे का नाम शामिल था. शुरुआत में हैंसी क्रोन्य ने मैच फिक्सिंग के आरोपों को अस्वीकार किया लेकिन बाद में उसने माना कि उससे ये गलती हुई है जिसके बाद उस पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया गया. बाद में दक्षिण अफ्रीका के कुछ खिलाड़ियों पर भी मैच फिक्सिंग के इस मामले में कार्रवाई हुई लेकिन वो इतनी सख्त नहीं थी जितनी कि हैंसी क्रोन्ये के खिलाफ. 2002 के एक प्लेन क्रैश में हैंसी क्रोन्ये की मौत हो गई.

अजहरुद्दीन का नाम आया
इसी फिक्सिंग के मामले के सामने आने के बाद 5 भारतीय खिलाड़ियों पर भी प्रतिबंध लगा जिसमें मोहम्मद अजहरुद्दीन का नाम भी शामिल था. बड़ा सवाल ये है कि मैच फिक्सिंग का ये मामला पहला था तो जवाब है बिल्कुल नहीं.चावला मैच फिक्सिंग के कई प्यादों में से एक है. इससे पहले भी कुछ वाकये ऐसे हुई हैं जो यह बताते हैं कई सट्टेबाजों ने पहले भी इस प्रतिष्ठित खेल में बईमानी की सेंध लगाई थी.

चावला ब्रिटेन फरार
मैच फिक्सिंग के इस खुलासे के बीच एक किरदार ऐसा था जो दिल्ली पुलिस के हाथों से रेत की तरह फिसल गया और जिसकी तलाश में दिल्ली पुलिस को पूरे 20 साल मशक्कत करनी पड़ी. दरअसल जैसे ही सट्टेबाज संजीव चावला को पुलिस की योजनाओं का पता लगा वो ब्रिटेन भाग गया. 2000 में उसका भारतीय पासपोर्ट निरस्त कर दिया गया. 2003 में उसे ब्रिटेन में अनिश्चितकाल तक रहने की इजाजत मिल गई. 2005 में उसे ब्रिटिश पासपोर्ट मिल गया और तब से ब्रिटिश नागरिक बन गया. 2020 में

चावला भारत लाया गया
तकरीबन दो दशक तक उसे भारत लाने की कोशिशें चलती रहीं लेकिन अपने रसूख के दम पर संजीव चावला भारत की पुलिस की गिरफ्त से बाहर रहा. 14 जून 2016 को भारत की उसे प्रत्यर्पित करने की मांग के बाद उसे लंदन में गिरफ्तार कर लिया गया. उसके बाद ब्रिटिश अफसरों ने दिल्ली पुलिस से जेल में उसके सुरक्षा इंतजाम और उसे मिलने वाली सुविधाओं के लेकर बात की. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि चावला ने भारतीय जेल में सुरक्षा और सुविधाओं को लेकर कई सवाल उठाए थे.

आखिरकार पुलिस को उसे भारत प्रत्यर्पित करने में कामयाबी हासिल हो गई और फरवरी 2020 में दिल्ली पुलिस को ब्रिटेन से प्रत्यर्पित कर लाए गए सट्टेबाज संजीव चावला की कस्टडी मिली. उम्मीद की जा रही थी कि संजीव चावला के गिरफ्त में आने से कई बड़े खुलासे होंगे पर ऐसा हुआ नहीं. इसी बीच मई 2020 में क्रिकेट सट्टेबाज संजीव चावला को जमानत मिल गई. चावला पर अगस्त 1999 में दो इंग्लैंड के खिलाडयों को पैसा की पेशकश करने का आरोप था.

चावला का विस्फोटक बयान
जून 2020 में क्रिकेट सट्टेबाज संजीव चावला ने अपने बयान से क्रिकेट जगत में फिर भूचाल ला दिया. दरअसल एक टीवी चैनल को दिए बयान में उसने दावा किया था कि कोई भी क्रिकेट मैच ऐसा नहीं है जो फिक्स नहीं होता, सारे मैच फिक्स होते हैं और स्टार खिलाड़ियों समेत मैच खलने सारे 22 खिलाड़ियों की स्क्रिप्ट सट्टेबाज तैयार करते हैं. चावला ने दावा किया था कि सारे मैचों की स्क्रिप्ट फिल्मों की तरह पहले से तैयार होती है. बताया तो ये भी जाता है कि चावला ने कहा था कि सट्टेबाजी रैकेट में सिंडिकेट और अंडरवर्ल्ड दोनों हैं. जो भी लोग इसे चला रहे हैं वो बेहद खतरनाक हैं और जो भी उनके आड़े आता है वे उसे खत्म कर देते हैं.

90 के दशक में भी होती थी मैच फिक्सिंग
हालांकि चावला के वकील ने दावा किया कि चावला ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया ये दिल्ली पुलिस की फैलाई हुई मनगढ़ंत कहानी है. अगर चावला के इस बयान में जरा सी भी सच्चाई है तो ये क्रिकेट के लाखों-करोड़ों दीवानों के लिए बड़े धक्के से कम नहीं है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि मैच फिक्सिंग सिर्फ हैंसी क्रोंन्जे और चावला तक ही सीमित नहीं है. मैच फिक्सिंग 90 के दशक से क्रिकेट का हिस्सा रहा है और कई क्रिकेट बोर्ड इस पर पर्दा डालने की ज्यादा कोशिश करते नजर आते हैं बजाए करप्शन को खत्म करने के.

धीमी रफ्तार
वजह जो भी रही हो लेकिन इस मैच फिक्सिंग कांड के मामले में मुख्य आरोपी संजीव चावला पर कार्रवाई की रफ्तार बेहद सु्स्त दिखाई दी. दिल्ली पुलिस ने सन् 2000 में इस मामले में एफआईआर दर्ज की थी लेकिन चार्जशीट फाइल करने में 13 साल लगा दिए और सन् 2013 में जाकर चार्जशीट फाइल हो सकी. इस मामले के मुख्य आरोपी संजीव चावला को पूरे 20 साल बाद लंदन से प्रत्यर्पित कर भारत लाया जा सका जब वो 50 साल का हो चुका था. इससे इन आरोपियों की पहुंच का अंदाजा होता है साथ इस काले धंधे में कितने ताकतवर लोग शामिल हैं इसका भी पता चलता है.

मैच फिक्सिंग का मकड़जाल
संजीव चावला न तो इस काले धंधे का पहला आदमी था न ही आखिरी. 90 के दशक में भी मैच फिक्सिंग हो रही थी और उस दौर के कई टेस्ट कप्तान सट्टेबाजों के संपर्क में थे. दिल्ली का हीरा व्यापारी जॉन उर्फ एमके उर्फ मुकेश गुप्ता भी इस काले धंधे की महत्वपूर्ण कड़ी था जिससे पूछताछ के बाद सीबीआई इस निष्कर्ष पर पहुंची. 2013 में भी ऐसे ही सट्टेबाजी कांड का खुलास हुआ था. टेस्ट खिलाड़ी एस.श्रीसंत पर इसे लेकर गंभीर आरोप भी लगे थे.

डी कंपनी से लिंक
सूत्रों की मानें तो चावला ने 1990 के दशक के अंत में डी-कंपनी के संचालकों के संरक्षण में सबसे बड़े सट्टेबाजी सिंडिकेट में से एक का संचालन किया. चावला ने जहां दक्षिण अफ्रीका, भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों के शीर्ष क्रिकेटरों के माध्यम से मैच फिक्स किए. वहीं डी-कंपनी ने यह सुनिश्चित किया कि विदेशों में हवाला लेनदेन के माध्यम से बोलियों का आसानी से निपटारा हो. स्पॉट फिक्सिंग कांड को डी-कंपनी के बॉस दाऊद इब्राहिम और उनके लेफ्टिनेंट छोटा शकील ने संरक्षण दिया था. दिल्ली में एसीपी रहे ईश्वर सिंह ने 2020 में दावा किया था कि इस मैच फिक्सिंग के स्कैंडल में दाऊद इब्राहीम शामिल था. जिस अफसर ने इस रैकेट का खुलासा किया उसने बताया कि जांच के दौरान जो भी उसने देखा और सुना उसके आधार पर कहा जा सकता है कि दाऊद इब्राहीम इस मैच फिक्सिंग में शामिल था. मैंने उसके एक गुर्गे को इस बारे में बात करते हुए सुना था.

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