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बीकानेर,राजस्थान परंपराओं और संस्कृति से भरा प्रदेश है यहां हर त्योहार की अपनी एक अलग पहचान है. ऐसे में अब अक्षय तृतीया का त्योहार सिर पर है. अक्षय तृतीय पर रेगिस्तान के शहर बीकानेर में दो दिन का चंदा महोत्सव होता है.

ऐसे में आज से पांच से साल पुरानी परंपरा को आज भी यहां के लोग बीकानेर के स्थापना दिवस के दिन मानते हैं और इस दिन उड़ाई जाती है.

आपने पतंगे कई तरह की देखी होगी. दुनिया में पतंगों को लेकर कई महोत्सव होते हैं और ऐसा ही एक महोत्सव बीकानेर में आखातीज यानी अक्षय तृतीय पर होता है जिसे पतंग महोत्सव कहते हैं. रंगीला राजस्थान अपने अनोखे अंदाज के लिए अपनी पहचान रखता है. बीकानेर में, बीकानेर के स्थापना दिवस के मोके पर पतंग महोत्सव होता है , जो की अक्षय तृतीय को होता है. इस उत्सव में लोग 40-45 डिग्री के तापमान पर भी छतों पर पतंग उड़ाते नजर आते हैं. हर ओर रंग बिरंगी पतंगों से आसमान रंग हुआ नजर आता है और सामने वाले की पतंग काटने पर बोई काटिया से सारा शहर गूंज उठता है.

रंग बिरंगी पगड़ी पहने, राजस्थानी लिबास में बीकानेर के लोग आज भी 500 से अधिक साल पुराणी परंपरा निभा रहे हैं. बीकानेर की स्थापना बीकानेर में पतंग उत्सव की सुरुवात शंखनाद से की जाती है. हजार हवेलियों के इस शहर बीकानेर को राव बीका ने बसाया था और इस राजा ने 500 साल पहले एक गोल आकर का चंदा उड़ाया जाता है.आज भी इस परंपरा को यहां के लोग गोल सुर्यनुमा पतंग उड़ाते है और इस गोल पतंग को चंदा कहा जाता है .

बीकानेर के कलाकार किशन पुरोहित भी इस परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं. गोल पतंगों के जरिए शहर , प्रदेश और देश के ज्वलंत मुद्दों, सामाजिक सरोकार से जुड़े मसलों को बनाते है और इन पतंगों को उड़ाकर संदेश देते है . वैसे किशन राजस्थान में पगड़ी किंग के नाम से जाने जाते है लेकिन बीकानेर स्थापना दिवस पर ये ऐसी विशेष पतंगे बनाते और उड़ाते है .

गोल नुमा पतंग को मोटे कागज से बनाया गया है और यह पतंग आम पतंग के जैसे मांजे से नहीं बल्कि रस्सी से उड़ाई जाती है. इसे उड़ना आसन नहीं होता , यह कई लोगों की मदद से उड़ाती है. यह हवा में जा कर यह और भी भारी हो जाती है. इन पतंगों में राजाओं के चित्र, श्लोक और फिल्म स्टार्स भी नजर आते है. इस पतंग को उड़ने से पहले इसकी पूजा की जाती है और फिर इसे उड़ाया जाता है. लोग अपनी छतों पर राजस्थानी गीत गातें है और मौज मस्ती से इस त्योहार को मानते हैं. कुछ ऐसा ही नजारा आने वाली 22 तारीख को आपको बीकानेर में दिखाई देता है .

चंदा बनाने वाले कलाकार कृष्ण चंद पुरोहित ने बताया कि पिछले 30 सालो से चंदा बनाने का कार्य कर रहे है. अब हमारी चौथी पीढ़ी चंदा बना रही है.नगर स्थापना दिवस पर गोलाकार आकृति में चंदा तैयार किए जाते है. लगभग चार फीट गोलाकार आकार के इन चंदा को बही खाते वाले कागज से बनाया जाता है. इन पर सरकंडे की लकड़ी लगाई जाती है. किनारों पर पाग का कपड़ा चिपकाया जाता है. कई चंदा पर बीकानेर रियासत का ध्वज भी प्रतीकात्मक रूप से लगाया जाता है. बड़े आकार के इन चंदा को डोरी की मदद से उड़ाया और छोड़ा जाता है. एक चंदा को बनाने में चार से पांच दिन का समय लग जाता है . बीकानेर में ये परंपरा पांच से अधिक साल पुरानी है और आज भी लोग इसका निर्वहन करते आ रहे है .

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