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बीकानेर,केंद्र में अपनी सरकार के नौ साल पूरे होने के मौके पर भाजपा जहां नरेंद्र मोदी सरकार की उपलब्धियाँ घर-घर तक पहुँचाने और आगामी लोकसभा चुनावों की तैयारियां शुरू करने की योजना बना रही है वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा कर रहे हैं।

कुछ समय पहले ही उन्होंने सभी मंत्रियों से अपनी उपलब्धियों का ब्यौरा देने को कहा था। मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा के दौरान प्रधानमंत्री ने कैबिनेट मंत्री किरेन रिजिजू से कानून मंत्रालय का प्रभार वापस लेकर उन्हें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में भेज दिया। रिजिजू पर हुई इस कार्रवाई से यकीनन बाकी मंत्रियों को भी इस बात की चिंता सताने लगी होगी कि कहीं उनके कामकाज में कोई कमी पाकर उन्हें हटाये जाने या उनका किसी और मंत्रालय में तबादला करने की कार्यवाही ना कर दी जाये।

रिजिजू से क्या गलतियाँ हुईं?

जहां तक रिजिजू पर की गयी कार्रवाई की बात है तो आपको बता दें कि ऐसा माना गया कि न्यायपालिका के साथ उनके रिश्ते काफी असहज रहे। रिजिजू सार्वजनिक रूप से न्यायपालिका पर ऐसी टिप्पणियां कर देते थे जिससे सरकार के लिए मुश्किल स्थिति खड़ी हो जाती थी। कई बार तो रिजिजू के बयानों पर न्यायाधीशों की नाराजगी भी सामने आई। इसके अलावा हाल में उच्चतम न्यायालय के कई ऐसे फैसले सामने आये जिसके बारे में माना गया कि सरकार का पक्ष कानून मंत्रालय ने सही तरीके से नहीं रखा था। इन फैसलों में महाराष्ट्र और दिल्ली की राजनीति से जुड़े मामले भी शामिल थे। रिजिजू ने उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम में सरकारी प्रतिनिधि की माँग को लेकर जिस तरह दबाव बनाया हुआ था उससे भी न्यायपालिका खुश नहीं थी। कानून मंत्री के तौर पर रिजिजू ने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को भारत के संविधान से ‘अलग’ बताते हुए कहा था कि यह देश के लोगों द्वारा समर्थित नहीं है। यही नहीं, कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के ‘भारत विरोधी गिरोह’ का हिस्सा होने संबंधी उनकी हालिया टिप्पणी पर भी कड़ी प्रतिक्रिया जताई गयी थी। रिजिजू ने कहा था कि कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीश और कुछ कार्यकर्ता जो ‘भारत विरोधी गिरोह’ का हिस्सा हैं, वे कोशिश कर रहे हैं कि भारतीय न्यायपालिका विपक्षी दल की भूमिका निभाए।

रिजिजू की उपलब्धियाँ

वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि कानून मंत्री रहते किरेन रिजिजू ने न्यायालयों में बुनियादी से लेकर आधुनिक सुविधाएं बढ़ाने का काम बड़ी तेजी से किया और आम आदमी के मन की बात को वह सार्वजनिक मंचों से बोलते रहे लेकिन शायद यह बोलना कुछ ज्यादा हो गया था जिसके चलते कानून मंत्रालय से उनकी विदाई हो गयी। लगभग दो साल पहले यानि जुलाई 2021 में जब रिजिजू को पदोन्नति देकर कैबिनेट मंत्री बनाया गया था तब प्रधानमंत्री को उनसे बड़ी उम्मीदें थीं। लेकिन रिजिजू के नेतृत्व वाला कानून मंत्रालय विवादों में बना रहा। रिजिजू को जब कानून मंत्री बनाया गया था तब भी उनकी आलोचना में जो स्वर उभरे थे उनमें यही कहा गया था कि इस महत्वपूर्ण मंत्रालय के लिए वह बहुत नये और कम अनुभवी हैं। मोदी सरकार में इससे पहले गृह राज्य मंत्री और खेल मामलों के मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री रह चुके रिजिजू हालांकि पूर्वोत्तर की राजनीति का बड़ा चेहरा हैं इसलिए उनकी मंत्रिमंडल से छुट्टी तो नहीं की गयी है लेकिन उनका मंत्रालय बदल कर उन्हें कामकाज सुधारने संबंधी चेतावनी जरूर दे दी गयी है।

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रविशंकर प्रसाद वाली गलतियां दोहराते रहे रिजिजू!

रिजिजू ने दरअसल ठीक वही गलतियां कीं जो दूरसंचार और आईटी मंत्री रहते हुए रविशंकर प्रसाद ने की थी। प्रधानमंत्री मोदी ने जब अपने मंत्रिमंडल से रविशंकर प्रसाद को बाहर किया था तब सभी को हैरानी हुई थी। दरअसल रविशंकर प्रसाद मंत्री रहते हुए नामी-गिरामी सोशल मीडिया कंपनियों से सार्वजनिक रूप से भिड़े हुए थे जिससे कई बार विदेशी निवेशकों में ऐसा भी संदेश गया कि भारत एक ओर तो निवेश का न्योता दे रहा है और दूसरी ओर हमें अपने कड़े कानूनों से डरा रहा है। निवेशकों में यह संदेश जा रहा था कि भारत में सख्त कानूनों की वजह से कारोबार करना आसान नहीं है। सोशल मीडिया कंपनियों खासकर टि्वटर के खिलाफ कई बार रविशंकर प्रसाद ने ऐसे-ऐसे बयान दिये थे जिससे वैश्विक मंचों पर भारत की उज्ज्वल तस्वीर प्रस्तुत कर रही मोदी सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा हो गयी थी। यही कारण रहा कि रविशंकर प्रसाद को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी यह नहीं चाहते हैं कि संस्थाएं या मंत्रालय आपस में ही भिड़े रहें और कोई मंत्री कामकाज से हीरो बनने की बजाय सिर्फ बयानवीर बना रहे। साथ ही रविशंकर प्रसाद कानून मंत्री रहते हुए भी अदालतों में सरकार का पक्ष ठीक से नहीं रखवा पा रहे थे। जिस तरह से कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान केंद्र सरकार को कभी हाईकोर्ट तो कभी सुप्रीम कोर्ट की फटकार पड़ती रही उससे मोदी सरकार की छवि पर विपरीत असर पड़ा था। इसके अलावा कानून मंत्री के तौर पर रविशंकर प्रसाद के भी रिश्ते न्यायिक तंत्र के साथ सहज नहीं रहे थे और बड़ी संख्या में जजों की रिक्ति को भरने के लिए भी उनके नेतृत्व में कानून मंत्रालय पर्याप्त कदम नहीं उठा पाया था।

विपक्ष ने घेरा

अब जब कानून मंत्री पद से किरेन रिजिजू की छुट्टी हो गयी है तो विपक्ष भी उनके खिलाफ भड़ास निकाल रहा है। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने रिजिजू पर निशाना साधते हुए उन्हें ‘नाकाम मंत्री’ करार दिया। कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने रिजिजू को ‘नाकाम मंत्री’ कहा तो वहीं राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने चुटकी लेते हुए कहा कि कानूनों के पीछे के विज्ञान को समझना आसान नहीं है। वहीं उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना की नेता और राज्यसभा सदस्य प्रियंका चतुर्वेदी ने रिजिजू को कानून मंत्री पद से हटाकर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में भेजे जाने के संभावित कारणों का जिक्र करते हुए कहा कि क्या महाराष्ट्र के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय का हालिया फैसला तो वजह नहीं था?

नये मंत्री क्या गुल खिलाएंगे?

बहरहाल, जहां तक अर्जुन राम मेघवाल की कानून मंत्री पद पर नियुक्ति की बात है तो इसके पीछे संसदीय कार्य राज्य मंत्री होने और बीकानेर से लगतार चुनाव जीतते रहने के नाते उनका विशाल अनुभव और आईएएस अधिकारी के रूप में सेवाएं देने के चलते उनके प्रशासनिक अनुभव पर तो गौर किया ही गया साथ ही उनकी साफ और ईमानदार छवि के अलावा इस साल के अंत में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनावों का भी ध्यान रखा गया है। हाल ही में राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे गुलाब चंद कटारिया को असम का राज्यपाल बना कर भेजा गया और अब बीकानेर के सांसद और केंद्र में स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल को महत्वपूर्ण कानून मंत्रालय का प्रभार सौंप कर उनका कद बढ़ाया गया है। देखना होगा कि राजस्थान की राजनीति पर इसका क्या असर होता है। साथ ही यह भी देखा जाना महत्वपूर्ण होगा कि मोदी सरकार और न्यायपालिका के रिश्तों में जो खिंचाव चल रहा था क्या वह अब दूर हो पायेगा?

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