बीकानेर,हमारे गांव भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, ऐसा लगभग हर राजनीतिक दल की जनसभाओं में बड़े-बड़े नेता दावा करते हैं। इन गांवों के विकास को तमाम बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। ग्रामीणों को विकास के सपने दिखाने के लिए योजनाओ का खाका खींचा गया, लेकिन इस सबके बाद भी गावं-गांव ही रह गये और मूलभूत समस्याओं से भरा पिटारा खाली न हो सका।
बीकानेर जिले का एक ऐसा ही गांव है खारड़ा , जहां संवादाता ने जाकर देखा तो ग्रामीणों के अंदर वर्षों से छिपा विकास न होने का दर्द बाहर निकल आया।
उन्हें आज भी विकास की संजीवनी की तलाश है।
जिला प्रशासन और सरकार की अनदेखी के चलते खारड़ा गांव मूलभूत सुविधाओं की कमी से जूझ रहा है। गांव में पीने के पानी की विकराल स्थिति बनी हुई है।
ग्रामीणों ने बताया कि गांव की गलियों से जो बिजली की लाइन गुजर रही है उनके तार ढीले होने के कारण ये आपस में टकरा जाते हैं और इनके टकराने से निकली चिंगारी के कारण उनके घरों की बाड़ जल जाती हैं। इसके कारण उन्हें हर वर्ष आर्थिक हानि उठानी पड़ रही है। उनका कहना है कि गांव में बिजली भी कम मात्रा में आती है और गांव की लाइनों के तार भी जर्जर हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि गांव में ट्रांसफार्मरों की कमी के कारण लोड ज्यादा हो जाता है और ज्यादा लोड के कारण ट्रांसफार्मर जल जाते है। इसके कारण गांव की बिजली बाधित हो जाती है।
ग्रामीणों का कहना है कि गांव की कुछ गलियां भी कच्ची हैं और इन गलियों के गंदे पानी की निकासी के लिए नाला न होने के कारण इनका गंदा पानी जोहड़ों में जा रहा है। उससे गांव के जोहड़ भी गंदे हो गए हैं और इन जोहड़ों में पशुओं के पीने लायक पानी नहीं बचा है। उन्होंने बताया कि गांव में नहरी पानी की भी कोई सुविधा नहीं है। गांव में न तो पीएचसी है और न ही ग्रामीण बैंक है। इसके अलावा गांव में ना ही कोई खेल मैदान है और ना ही युवाओं के लिए तैयारी करने के लिए कोई ट्रैक है
जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर ग्राम पंचायत खारड़ा के लोग वर्षों से समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन्हें सुलभ जीवनयापन के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं हैं। उन्हें मताधिकार तो मिला है लेकिन इसका फायदा चुनाव लड़ने वालों तक सीमित है। चुनाव जीतने के बाद सरपंच से लेकर विधायक-सांसदों को इस गांव की बेहतरी के लिए समय नहीं मिला। ये हालात यकायक नहीं बने, बल्कि आजादी के बाद से ही उपेक्षा का दंश इस गांव के लोग भोगते आ रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार इस गांव में न तो पेयजल की उपलब्धता के लिए कोई सरकारी योजना संचालित है, न ही गांव से शहर की ओर जाने के लिए पक्का मार्ग ही यहां निर्मित हो सका है। इसके अलावा उनका जीवन नरक समान है। यदि किसी घर में कोई बीमार पड़ जाए तो यहां पर एंबुलेंस आदि का आना नामुमकिन है। ग्रामीण ही अपने बीमार स्वजन को निजी वाहन से शहर की ओर लेकर भागते हैं। बात करने पर ग्रामीणों का आक्रोश भी सामने आ जाता है। उनके अनुसार देश की आजादी को भले ही 75 साल से अधिक का वक्त हो गया हो लेकिन उन्हें इसका कोई फायदा नहीं मिला है।वे आज भी समस्यारूपी गुलामी में जीने को विवश हैं। उनका कहना है कि राजस्थान सरकार द्वारा दर्जनों योजनाएं चलाई जा रहीं हैं। ग्राम विकास के दावे किए जा रहे हैं लेकिन इसका लाभ भी खारड़ा के लोगों को नहीं मिला है। वर्तमान में भीषण गर्मी आने वाली है यहां पर गंभीर पेयजल संकट बन सकता है।
ग्रामीण बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार गांव में चार ट्यूबवेल हैं लेकिन उनमें भी खारा पानी आता हैं। मरू भूमि अंचल होने के कारण यहां का भू जलस्तर गर्मी शुरू होने के पूर्व ही बहुत नीचे चला जाता है। इस बार भी यही हालात बनने वाले है
यहां पर भूजल की उपलब्ध 800 फीट नीचे गहराई पर ही उपलब्ध है। ग्रामीण बताते हैं कि पानी की उपलब्धता के लिए वे गांव में मात्र एक कुएं पर निर्भर हैं।
इसके अलावा खेतों के बोरवेल से भी पानी की आपूर्ति टैंकर द्वारा निजी खर्च पर ग्रामीण प्राप्त कर रहे हैं।
यातायात सुविधा के नाम पर मात्र एक दो बसे संचालित है इस कारण बस में खचाखच सवारिया भरी रहती है भरी धूप में का ये सफर उनके लिए शारीरिक कष्टों के साथ समय की बर्बादी करने जैसा है। यहां पर पानी का संकट विकराल रूप धारण किए है। ग्रामीणों के अनुसार ग्राम पंचायत के प्रतिनिधियों से लेकर जिले तक के जिम्मेदारों को यहां के हालातों के बारे में पता है। इसे लेकर कई बार शिकायतें की गईं, राहत मांगी गई लेकिन हुआ गया, कुछ नहीं। प्रशासनिक अधिकारी समस्याओं पर तमाशबीन बने हुए हैं। जनप्रतिनिधियों की तरह अधिकारी भी सिवाय कोरी घोषणाएं करने के अलावा कोई राहत नहीं दे सके
गांव में शिक्षा के नाम पर एक सरकारी स्कूल है कहने के को तो यह स्कूल उच्च माध्यमिक विद्यालय है पर इस स्कूल में लगभग सात सो बच्चे अध्यनरत है लेकिन स्कूल में अध्यापक की कमी है
इसके अलावा 11 वी और 12 वी कक्षा में साइंस और कॉमर्स विषय नही होने के कारण बच्चो को पढ़ने के लिए मजबूरन बीकानेर जाना पड़ता है
विद्यालय में कक्षा कक्ष की कमी है बच्चो को मजबूरन बरामदे में बैठना है स्कूल में अध्यापक के अलावा ,चपरासी ,बाबू और प्रधानाचार्य के पद भी रिक्त हैं