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बीकानेर,जयपुर दिवाली को लेकर खुशियों का दौर है मगर एक आशंका भी… कि कोरोना को मात दे चुके बड़े- बुजुर्गों को पटाखों का धुआं संकट न पैदा कर दे। पटाखे हवा में ऐसा जहर घोलते हैं जिससे बच्चे और बुजुर्ग दोनों ही प्रभावित होते हैं। खास तौर पर अस्थमा के मरीजों के लिए पटाखों का धुआं मुसीबत बन जाता है। कोरोना और वायु प्रदूषण को देखते हुए भले ही इस बार ग्रीन पटाखों की अनुमति मिली हैं लेकिन ये कितने पर्यावरण अनुकूल हैं कहना मुश्किल है। इससे भले ही 30 से 40 फीसदी तक प्रदूषण कम होगा, लेकिन दमा पीड़ितों को परेशान करने के लिए इतना ही काफी है। यही कारण है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी दीपावली पर पटाखों के

इस्तेमाल पर प्रतिबंध के आदेश को जारी रखा है। इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के अनुसार एक फुलझड़ी जलने से निकले वाला धुआं 74 सिगरेट के बराबर नुकसान करता है। वहीं, अनार को जलाने से 34 सिगरेट जितना फर्क पड़ता है। डॉक्टरों की मानें तो जिन लोगों का सीटी स्कोर 22 से नीचे हैं उन्हें दीपावली में ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। पटाखों के धुएं से सांस, आंख, एलर्जी और त्वचा से संबंधित रोगियों को भी खतरा है।

पटाखा उत्पादन में भारत दूसरे स्थान परः दुनिया में पटाखों के उत्पादक में चीन के बाद भारत दूसरे नंबर पर है। भारत में पटाखों का 55 प्रतिशत उत्पादन तमिलनाडु के शिवकाशी में होता है। शिवकाशी सालभर में 50 हजार टन पटाखा उत्पादन करता है।

पटाखों से हो सकती हैं ये दिक्कतें

सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर गले, नाक और आंखों को समस्याएं देते हैं।

पक्खों का धुआं क्रोनिक ब्रॉकाइटिस, अस्थमा, सर्दी-जुकाम, निमोनिया,

लैग्निजाइटिस दे सकता है।

रंगीन पटाखों में रेडियोएक्टिव और

जहरीले तत्व होते हैं जो कैंसर की जोखिम बढ़ा देते हैं।

85 डेसिबल से तेज आवाज वाले पटाखे सुनने की शक्ति प्रभावित।

पटाखों से बेचैनी, सिर दर्द, उच्च रक्तचाप और दिल का दौरा तक पड़ सकता है।

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