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बीकानेर,देवप्रबोधनी एकादशी से श्रीकोलायत में कपिल सरोवर पर पंच दिवसीय कार्तिक मेले शुरू हो गया है। कार्तिक पूर्णिमा को भरने वाले इस मेले की पूरे देश में अपनी एक आध्यात्मिक महत्ता और ख्याति है। इसके पीछे सांख्य दर्शन के प्रणेता, आदिकाल के ऋषि आश्रम और पुरातन मंदिर है। दुर्भाग्य है कि आस्थावान लोग डुबकी लगाकर कपिल मुनि के दर्शन करके लौट जाते हैं। भारत भूमि के सिरमौर तीर्थाटन कपिलतायन के मर्म को जानने की कोशिश नहीं करते। श्रध्दालुओं की तो यही दशा है, कोई साधु संत, महंत या क्षेत्र के बुध्दिजीवी, नेता और समर्थ लोग भी कपिलतायन के महत्व को उजागर नहीं कर पा रहे हैं। इससे देश में इस इस सरोवर के 84 घाट, विख्यात भव्य मंदिर, आश्रम, अखाड़े, मठ आदि शिल्पकला के बेजोड़ नमूने हैं। इन मंदिरों की मूर्तियां अद्भुत हैं । श्रीकोलायत सरोवर में डुबकी लगाने, अखण्ड पाठ, भगवत कथा, यज्ञ और प्रवचन सुनने के लिए हजारों की संख्या में देश भर से श्रद्धालु आते हैं। यहां कपिल सरोवर के तट पर विभिन्न संप्रदायों के साधु संतों का समागम होता है। इन सब चीजों को पहचान नहीं मिल पा रही है।
कपिल सरोवर का सरोकार कपिल मुनि के काल से ही माना जा रहा है। कपिलायतन तीर्थस्थल मरूजांगल प्रदेश का पवित्र स्थान माना जाता है। मान्यता है कि सिद्धेश कपिल मुनि का यह स्थान कलिकाल में बिना ज्ञान के मुक्ति देने वाला और समस्त पापों का विनाशक है। संसार के प्राणी मात्र की इस तीर्थस्थल पर आने की इच्छा से ही सकल पापों का विनाश हो जाता है। प्राकृतिक सौन्दर्य, खनिज सम्पदा और तीर्थराज श्रीकोलायत की ख्याति होने से तथा बदलती परिवहन सेवाओं जैसे अब बीकानेर में रेल सेवाएं, राष्ट्रीय राज मार्ग और हवाई सेवाओं के कारण और आध्यात्मिक, सांस्कृतिक तथा प्राकृतिक विशेषताओं के चलते श्रीकोलायत तीर्थ स्थल विश्व मानचित्र पर आ सकता है। बर्शत इस तरफ सबका ध्यान जाए। कभी जांगल प्रदेश का हिस्सा रहा श्रीकोलायत बीकानेर से लगभग 51 किलोमीटर पर स्थित है। यह क्षेत्र युगों तक ऋषि मुनियों की तपोस्थली रहा है। श्रीकोलायत स्थित कपिल तीर्थ स्थल विष्णु के पंचम अवतार एवं सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल की तपोस्थली के रूप में विख्यात है। यहां आदिकाल के सप्त ऋषियों की आठ कोसी तपो भूमि है। डेह में देवहूति का प्राचीन मंदिर, जागेरी में याज्ञवलक्य, टेचरी में काग ऋषि, जोगीरा में जोग ऋषि, दियातरा में दतात्रैय ऋषि, चानी में च्यवन ऋषि और बीठनोक सिध्द माहत्माओं की तपोस्थली रहा है। इस तीर्थ परिसर में बाला जी धाम आश्रम, बारह ज्योर्तिलिंग मंदिर, पंच मंदिर, लालेश्वर महादेव मंदिर, गंगा मंदिर, गुरूद्वारा, लोक देवता सिद्ध भभूता महाराज मंदिर, ठाकुर जी मंदिर, आदि छोटे- बडे करीब सौ मंदिर हैं। तीर्थ राज श्रीकोलायत के कपिल सरोवर को बिन्दु सागर के नाम से भी जानते हैं और इसका महात्म्य गंगा जल के समान पवित्र और मोक्षदायी माना गया है। यहाँ कार्तिक मास की पूर्णिमा का अभी मेला चल सहा है। इस दौरान झील में दीप जलाकर अर्पण किए जाते हैं। यहां समीप ही एक शिवालय (ज्योतिर्लिंग मंदिर )है, जिसमें 12 ज्योतिर्लिंग हैं। कोलायत झील में स्नान करना धार्मिक दृष्टि से पवित्र माना जाता है, इसलिये यहाँ लोगों का आना-जाना चलता रहता है। ऐसी जन मान्यता है कि कोलायत में एक दिन का प्रवास किसी अन्य पवित्र स्थान पर 10 साल बिताने के बराबर है। यहां मेले में झील के किनारे सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया जाता है। कोलायत मेले में विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जिन में मांड राग गायन, भवाई, कालबेलिया नृत्य, चारी नृत्य, पंजाबी और राजस्थानी लोक नृत्य, कठपुतली और मिमिक्री आदि मुख्य आकर्षण हैं। कपिल मुनि घाट की दीप मालिका देखने लायक होती है।
इस दौरान में ‘पशु मेला भी लगता है। . कहते हैं कि ‘कोलायत झील का पानी हिलता है तब मौसम बदलता है।कार्तिक स्नान या काती नहाना का अपना महत्व है। झील के चारों तरफ पीपल के कई सारे पेड़ हैं। कहते हैं कि कपिल मुनि ने पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर तपस्या की थी। सिख धर्म के लोगों के लिये कोलायत एक पवित्र स्थान है। यहां गुरुद्वारा भी है। जहां बारहमास गुरुद्वारे में भोजन की व्यवस्था है। यहीं पर गुरुनानक जी ने यात्रा की थी। सिख भाइयों द्वारा कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही गुरुनानक जयंती पर्व भी मनाया जाता है। यही वजह है कि बड़ी संख्या में सिख भाई भी कार्तिक पूर्णिमा के दिन कोलायत पहुंचते हैं।
बस राजनेताओं, खननकर्ताओं और सरकार के लिए तो इतना ही महत्व है कि कोलायत की खानों में से निकलने वाला मुख्य खनिज जिप्सम है। यहां 125 मुल्तानी मिट्टी और 80 बजरी की खानें हैं। इतने करोड़ रायल्टी वसूली और चोरी में इतना जुर्माना लगाया। अवैध खनन को रोका। तीर्थों के सिरमौर कपिलतायन में इस क्षेत्र की तस्वीर बदलने के साम्मर्थ्य को न तो सरकार पहचान रही है, न साधु संत और जिम्मेदार लोग। तीर्थाटन का सिरमौर कपिलायतन को इस क्षेत्र के विकास की संभावनाओं को स्वार्थ के आवरण से ढक दिया गया है। सभी अपने अपने स्वार्थ पूरे करने में लगे है। किसे पड़ी है जो तीर्थ स्थल की महत्ता को कौन जाने समझे…?

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