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बीकानेर,सर्वोच्च अदालत ने चेक बाउंस के एक मामले की सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला दिया है। फैसले से अदालतों में लंबित 33 लाख मामलों पर प्रभाव पड़ेगा। चेक बाउंस के नाजायज केसों में भी कटौती हो सकेगी। कई देशों की तरह हमारे देश में भी चेक बाउंस होना अपराध माना जाता है। नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट (एनआई) एक्ट‚ 1881 के मुताबिक चेक बाउंस की स्थिति में चेक जारीकर्ता पर मुकदमा चलाया जा सकता है। कानून के मुताबिक उसे 2 साल की जेल या चेक में भरी राशि का दोगुना जुर्माना या दोनों लगाया जा सकता है।

मुख्य न्यायाधीश का पदभार संभालने से कुछ हफ्ते पहले जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपनी सहयोगी जज जस्टिस हिमा कोहली के साथ एक खंडपीठ में अक्टूबर 2022 को दिए इस फैसले में इस कानून की एक धारा के सही उपयोग को स्पष्ट किया है।कोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति ने जितनी राशि का चेक जारी किया है‚ यदि उसमें से उसे कुछ रु पया लौटा दिया गया है‚ तो एनआई एक्ट‚1881 की धारा 138 के तहत उस पर मामला नहीं चल सकता। यह फैसला गुजरात हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर दशरथ भाई त्रिकम भाई पटेल की अपील पर आया। गुजरात के व्यापारी हितेश महेंद्र भाई पटेल ने अपने ही रिश्तेदार दशरथ भाई से जनवरी‚ 2012 में 20 लाख रुपये उधार लिए थे। गारंटी के तौर पर हितेश ने दशरथ भाई को समान राशि का चेक भी दिया था परंतु बैंक में भुनाने के लिए जमा करने पर चेक बाउंस हो गया।

गौरतलब है कि चेक को बैंक में जमा करने की तारीख से पहले ही हितेश ने उधार की रकम का कुछ हिस्सा लौटा दिया था। हितेश पर चेक बाउंस का केस दर्ज हुआ। मामले की सुनवाई करते हुए न सिर्फ निचली अदालत‚ बल्कि हाई कोर्ट ने भी कहा कि हितेश के खिलाफ चेक बाउंस का कोई वाद नहीं बनता। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने (एनआई) एक्ट के विभिन्न प्रावधानों का विश्लेषण करने के बाद कहा‚ ‘इसकी धारा 138 के तहत चेक बाउंस को आपराधिक कृत्य मानने के लिए जरूरी है कि बाउंस हुआ चेक पेश किए जाते समय एक वैध प्रवर्तनीय ऋण का प्रतिनिधित्व करे।

यदि परिस्थिति में कोई सामग्री परिवर्तन हुआ है जैसे कि राशि में चेक परिपक्वता या नकदीकरण के समय कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण का प्रतिनिधित्व नहीं करता है‚ तो धारा 138 के तहत अपराध नहीं बनता है। आम भाषा में कहें तो गारंटी चेक पर लिखी राशि यदि बकाया राशि से अधिक है‚ और यदि वो चेक बाउंस होता है तो चेक जारी करने वाले पर चेक बाउंस का मुकदमा नहीं चल सकता। कोर्ट ने यह भी कहा‚ ‘जब ऋण का आंशिक भुगतान चेक के आहरण के बाद लेकिन चेक को भुनाने से पहले किया जाता है‚ ऐसे भुगतान को एनआई एक्ट की धारा 56 के तहत चेक पर पृष्ठांकित किया जाना चाहिए।

आंशिक भुगतान को रिकॉर्ड किए बिना चेक को नकदीकरण के लिए प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। यदि बिना समर्थन वाला चेक प्रस्तुत करने पर बाउंस हो जाता है‚ तो धारा 138 एनआई अधिनियम के तहत अपराध को आकर्षित नहीं किया जाएगा क्योंकि चेक नकदीकरण के समय कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।’

आदेश के अनुसार यदि आप गारंटी के चेक को बैंक में जमा कराते हैं‚ तो उस चेक के पीछे आपको अनुमोदन करना होगा कि चेक पर लिखी राशि में से आपको आंशिक भुगतान हो चुका है। जारी किया हुआ चेक केवल बकाया राशि के लिए ही मान्य होगा। व्यापार में आए दिन देखा जाता है कि एक व्यापारी दूसरे से अनुकूल ऋण या ‘फ्रेंड़ली लोन’ लेते हैं। प्रायः लोन नकद में किया जाता है‚ जिसकी एवज में उसी मात्रा का चेक‚ गारंटी के तौर पर दे दिया जाता है। चूंकि यह लेन–देन नकदी रूप में होता है‚ इसलिए बैंक में चेक डालने की नौबत ज्यादातर मामलों में नहीं आती।

चेक जमा करने का मतलब पैसा वापस लेने वाले और देने वाले‚ दोनों को ही अपनी किताबों में इसे दर्ज करना पड़ेगा। परंतु कुछ लोग‚ जिनकी पैसा लौटाने की नीयत नहीं होती‚ वो लेनदार को किसी न किसी बहाने से टालते रहते हैं। ऐसे लोग हमेशा अपनी बदहाली का रोना तो रोते हैं परंतु असलियत में उतने बदहाल नहीं होते। लोन देने वाले को जैसे ही उन पर शक हो जाता है‚ वो गारंटी के चेक को बैंक में जमा कर देता है। यदि उसकी किस्मत अच्छी होती है तो चेक पास हो जाता है। यदि चेक बाउंस हो जाता है तो मामला कोर्ट में जाता है। ऐसा नहीं है कि लोन लेने वाले की ही नीयत में खोट होता है। यह भी देखा गया है कि लोन देने वाले‚ लालच के चलते लोन की राशि वापिस मिलने के बावजूद चेक को जमा करा देते हैं।

ऐसे में अक्सर देखा गया है कि चेक बाउंस का केस कोर्ट में न जाए‚ इसके लिए दोनों पक्ष किसी न किसी समझौते पर आ जाते हैं। यहां लोन देने वाले के लालच का मकसद पूरा हो जाता है परंतु कुछ मामलों में पैसा लौटाने वाला‚ जो गारंटी का चेक देता है‚ उस पर सही साइन नहीं करता। ऐसे में चेक बाउंस होना तय है। फिर वो लेनदार पर जालसाजी का आरोप भी लगा सकता है। इस प्रकार लोन लेने वाले का पलड़ा भारी हो जाता है। इस फैसले से व्यापारी जगत को बड़़ी राहत मिली है।

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