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बीकानेर,राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर पत्रकारिता करने वाले लोग, संस्थान और घराने समाज, सत्ता और लोकशाही के आईने में अपना चहेरा देख लें। कैसा दिखाई देता हैं जांच लें? पत्रकारिता धर्म निभाना चाहते हैं और पेशे की साख बनाए रखना चाहते हैं तो चेहरा सुधार लें। पत्रकारिता से जुड़े संगठन नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिज्म, भारतीय प्रेस परिषद, जर्नलिस्ट एसोसिएशन ऑफ राजस्थान तमाम राष्ट्रीय , राज्य या स्थानीय स्तर के पत्रकार संगठन अपना आत्म विश्लेषण कर लें। ये सब पत्रकारिता और पत्रकारों को क्या दिशा दे दे हैं? आज के दिन विचार कर लें कि पत्रकारिता में जिसकी जो भूमिका है वे समाज, राष्ट्र की नजरों में हेय क्यों बनती जा रही है? पत्रकारिता धर्म कर्तव्य विमुख क्यों हो रहा है ? बेशक पत्रकारिता चुनौति भरा काम है। पत्रकारों को किसी भी स्तर पर संबल नहीं है। उनको सरकार और संस्थानों के स्तर पर संरक्षण, आर्थिक और कानूनी सुरक्षा नहीं मिल पा रही है। फिर भी अगर आप पत्रकारिता के एथिक्स के लिए काम नहीं कर सकते तो पत्रकारिता क्यों करते हैं ? दूसरा काम कीजिए ना। क्यों पत्रकारिता के धर्म के साथ अपनों स्वार्थपूर्ति के लिए खिलवाड़ करते हैं ? पत्रकारिता को बदनाम कर आप राष्ट्रीय लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। जेम्स मैकडोवाल ने कहा था कि पत्रकारिता को मैं रणभूमि से बड़ी चीज मानता हूं, बल्कि पेशे में भी कोई ऊंची चीज है। तात्पर्य यह है कि अगर आप पत्रकारिता के लिए पत्रकार नहीं है तो हट जाए इस कर्म से। अन्य उद्देश्यों के लिए पत्रकारिता अपनाने वाले लोग पाप कर्म कर रहे हैं। इसका नुकसान समाज, मानवता और लोकतंत्र को हो रहा है। क्या कोई ऐसा पाप कर्म पत्रकार और पत्रकारिता के नाम पर करते रहना चाहते हैं?

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