बीकानेर,जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के जैनाचार्य जिन पीयूष सागर सूरीश्वर महाराज अपने सहवृति मुनियों के साथ गुरुवार को पैदल विहार करते हुए नाल गांव में स्थित दादा जिन कुशल सूरी की दादाबाड़ी पहुंचे। उन्होंने मुनिवृंद के साथ दादा गुरुदेव के मंदिर में दर्शन वंदन तथा जाप किया ।
श्री जैन श्वेताम्बर ओसवाल श्री खरतरगच्छ श्रीसंघ ट्रस्ट के अध्यक्ष रतन लाल नाहटा ने बताया कि रांगड़ी चौक के सुगनजी महाराज के उपासरे से बीकानेर की साध्वीश्री प्रभंजना महाराज आदिठाणा शुक्रवार सुबह को नाल गांव जाएंगा। नाल गांव में मुनि सुव्रत स्वामी के प्राचीन मंदिर में 23 से 26 नवम्बर तक प्रतिष्ठा महामहोत्सव आयोजित किया जाएगा, इसकी तैयारियां परवान पर है।
धर्म चर्चा में जैनाचार्य जिन पीयूष सागर सूरीश्वर महाराज ने बताया कि बीसवें तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रत स्वामी वर्ण काला व प्रतीक चिन्ह कछुआ होने से समूचे हिंदुस्तान में उनके मंदिरों में सभी प्रतिमाएं काले कसौटी या अन्य काले पत्थर के संगमरमर की बनी हुई है। उन्होंने बताया कि देवात्मा के रूप में जीवन पूरा करने के के बाद राजा शूरश्रेष्ठ की आत्मा ने राजगृही नगरी में राजा सुमित्र व रानी पद्मावती के यहां तीर्थंकर के रूप में जन्म लिया। विवाह के बाद राजकुमार मुनिसुव्रत कुछ समय तक युवराज के पद पर रहे, तत्पश्चात उन्होंने दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के 11 माह बाद उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई।
बीकानेर के मुनि सम्यक रतन सागर महाराज ने जैनाचार्य के विषय का विस्तृत वर्णन करते हुए धर्म चर्चा में बताया कि भगवान मुनिसुव्रत स्वामी को केवल ज्ञान प्राप्ति के पश्चात समवशरण की रचना की गई। जिसमें मुनि सुव्रत स्वामी ने देशना में संसार के वास्तवित स्वरूप् और मोक्ष प्राप्ति के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मोक्ष प्राप्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण मोक्ष का लक्ष्य तय किया जाना चाहिए। मोक्ष का दृढ़ लक्ष्य होने पर संसार असार तथा संयम व मोक्ष का मार्ग सार्थक लगता है। मोक्ष का मार्ग बहुत ऊंचा है, जिसके पास बहुत क्षमतावान ही इस मार्ग पर चल सकता है । यह कायरों का नहीं वीरों का काम है। संयम व मोक्ष मार्ग के लिए वीरता से अपने भीतर के कषायों व शत्रुओं पर विजय पाने की आवश्यकता है। तीर्थंकर भगवंतों ने यह वीरता दिखाई, इसलिए वे आदरणीय, वंदनीय, पूजनीय व जन मानस के आदर्श बन गए।