बीकानेर,जगद्गुरु शंकराचार्य रामभद्राचार्य बीकानेर को राम कथा के साथ बहुत कुछ देकर गए हैं। जगद्गुरु वचन सिद्ध हैं। उन्होंने जो आशीर्वचन दिए हैं वो होगा ही। बीकानेर ( सियाराम जी धोरे) में सीता राम जी का मंदिर बनेगा। बीकानेर को राष्ट्र संत ( सरजूदास जी) देकर गए हैं। राम सुखदास महाराज की चिर स्मृति के रूप में बीकानेर के संस्कारों का पुनर्जागरण करके गए हैं। जिन्होंने स्वामी रामसुखदास जी का सान्निध्य पाया है वे समझ सकते है कि जगद्गुरु का स्वामी जी के बार बार स्मरण का क्या पुनीत फल है। बीकानेर में राम कथा की समाप्ति पर राम का राज्याभिषेक और दक्षिणा के रूप में पाक अधिकृत कश्मीर की भारत में विलय उद्घोष बीकानेर से भी किया गया है। भगवान राम से दक्षिणा के प्रतीक रूप में पूरे देश को राष्ट्रीय मायने देकर गए हैं। बीकानेर के लोगों को खूब मंगलाशीष दिया। राम कथा यज्ञ से वातावरण की शुद्धता महीनों तक जन स्वास्थ्य को ठीक रखेगा। एक यज्ञ की आहुति से कितनी वायु शुद्ध होती है यहां तो लाखों आहुतियां दी गई। यहां सैकड़ों संत आए। संत समागम को महाकुंभ की संज्ञा दी गई। बीकानेर के जन मानस में राम का चरित्र छाया रहा। शंकराचार्य जी क्रुद्ध भी हुए। जगद्गुरु के साथ धक्कामुक्की की घटना से वे दुखी भी हुए। अनुशासनहीनता और उश्रखलता का छोटी काशी को जगद्गुरु की उलाहना कलंक से कम नहीं है। यह उलाहना बीकानेर को दिशा बोध है जो नहीं मानेगा और समझेगा उसे भुगतना पड़ेगा! वैसे संत कृपालु और दयालु होते हैं। उन्होंने जाते जाते बीकानेर को खूब आशीर्वाद भी दिया। आयोजन बीकानेर के जन मानस के लिए अविस्मरणीय रहा। जिन्हें बाकी बातों से कोई मतलब नहीं था वे कथा से भाव विभोर रहे। राम चरित को नए नए रूपों में समझा। राम चरित मानस यही नामा। सुनत श्रवण मिले विश्राम।। इसके अभिप्राय को अनुभूत किया। आयोजन समिति के संयोजक अशोक मोदी और सचिव श्रीभगवान अग्रवाल ने आयोजन की पहल कर सराहनीय कार्य किया है। ऐसी जिम्मेदारी निभाने वाले लोगों को कितना कष्ट उठाना पड़ता है। मान भी होता है अपमान भी। कटु वचन अकारण या कारणवश सुनने पड़ते हैं। गलतियां भी होती है। इनके सबके बावजूद जो आयोजन हुआ है वो अद्भुत है। पीढ़ियों तक इसकी खुशबू आती रहेगी। आयोजन में सहयोग करने वाले इसका पुण्य पा चुके हैं। उनकी आत्मा प्रसन्न है। आयोजन की कमियां और खामियां निकालने वाले तो दोषों पर एक किताब लिख सकते हैं, परंतु उनका आयोजन में तिनके जितना ही सहयोग है क्या? देखों ना हजारों लोग कैसे खींचे चले आते रहे हैं। वैसे मौकापरस्त, कुटिल, निंदक और लाभ कमाने वाले तो हर जगह होते ही है? जो हुआ वह जन मानस को भाया है। वह है राम कथा।
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