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बीकानेर,श्री शान्त -क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने देशनोक के नवकार भवन में विहार के दूसरे दिन सोमवार को अपने प्रवचन में श्रावक-श्राविकाओं को आत्म चिंतन और आत्म बोध करने का सद्ज्ञान  दिया।  आचार्य श्री ने फरमाया कि सत्संग सभा में बैठकर हम अपना आत्मचिंतन करते हैं, महापुरुष फरमाते हैं, मैं कौन हूं। यह प्रश्न आज का नहीं, अभी का नहीं, सदियों से पूछा जाता रहा है। मैं आपसे पूछूं कि आप कौन है..?, आप अपना नाम बताएंगे। लेकिन, बोलने वाले को बस यह आत्मबोध हो जाए कि  यह नाम हमारा परिचय शरीर का है। मेरा नहीं है। यह नाम तो संसार में मानवों की करोड़ों, अरबों की भीड़ है। इस भीड़ में पहचान के लिए  रख दिया गया और हम इस नाम को ही अपना मान लेते हैं।
आचार्य श्री ने कहा कि वस्तुत: मैं कोई नाम नहीं अनामा हूं, मेरा कोई रूप नहीं है। यह आकार, यह रंग -रूप शरीर का है। आत्मा का ना रंग है, ना रूप है और ना ही आकार-प्रकार है। मति के द्वारा हम इस तत्व को सिद्ध नहीं कर सकते, हम सब के अन्दर आत्म तत्व मौजूद है। जिनकी बदौलत हमारे कान सुनते हैं, आंखे देखती है, हाथ-पैर चलते हैं।
आचार्य श्री मंगलवार सुबह रासीसर के लिए करेंगे विहार
चंदा देवी डालचंद सांड चेरिटेबल ट्रस्ट के फाउंडर मुंबई प्रवासी, देशनोक निवासी  नवरतन सांड ने बताया कि आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. मंगलवार सुबह रासीसर के लिए विहार करने की संभावना रखते हैं। महाराज साहब के साथ रासीसर विहार के लिए श्रावक-श्राविकाऐं साथ रहेंगी।
शीलव्रत का आजीवन प्रत्याख्यान लिया
श्री शान्त-क्रान्ति जैन श्रावक संघ के विकास छल्लाणी ने बताया कि सोमवार को आचार्य श्री ने कस्बेवासियों को महामंगलिक दी एवं धर्मचर्चा की, तत्पश्चात निकट घरों में श्रावकों की मांग पर पगलिए भी किए। प्रवचन पश्चात प्रत्यख्यान करवाए। वहीं महावीर गीड़िया की प्रेरणा से गंगाशहर निवासी रामेश्वरलाल दैया एवं उनकी धर्मपत्नी शोभा देवी ने आजीवन शीलव्रत का प्रत्याख्यान लिया, जिनका देशनोक श्री संघ की ओर से स्वागत-अभिनंदन किया गया।

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