बीकानेर,श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज आदि ठाणा आठ के विनोद मुनि म.सा. ने शुक्रवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में आयोजित हुई धर्मसभा में श्रावक-श्राविकाओं की अनेक जिज्ञासाओं को जिनवाणी के माध्यम से शांत किया। विनोद मुनि जी ने हम क्या बनना चाहते हैं, हम किसमें कुशल बनें, गंभीर कौन…? सहित अनेक प्रश्नों के उत्तर धर्मसभा में मौजूद श्रावक- श्राविकाओं से पूछे और उनके समाधान बताए।
विनोद मुनि जी ने बताया कि हर इंसान अनंत ज्ञानी, अनंत ऋषि, अरिहंत बनना चाहता है। लेकिन क्या वह इसके लिए पात्रता रखता है…?, जब तक वह पात्रता नहीं रखता कुछ भी बनना संभव नहीं है। इसके लिए पहले हमें कुशल बनना होगा। कुशलता के बहुत से क्षेत्र होते हैं। कोई बोलने में कुशल होता है तो कोई लिखने में, कोई चित्रकला में, कोई पाक कला में, इस तरह कुशलता के बहुत से क्षेत्र हैं। अब प्रश्न उठता है िकि हम किसमें कुशल बनें..?, इसे समझने के लिए प्रभु ने एक ओर पात्रता हमें दी है। वह है खेदनीय बनने की, जो खेद को जानने में कुशल है, सक्षम है, वह अरिहंत बन सकता है। यहां खेदनीय उसे कहा गया है जो दूसरों के दुख को जानने वाला हो, सुख को समझने वाला है। एक विचारक ने कहा गंभीर कौन…?, जवाब मिला- जिसको अपना दुख छोटा लगता है और दोष बड़ा लगता है, वह गंभीर है। अगर हमें दूसरों का दर्द- दुख समझ में आ जाए तो हम सहजता से स्वीकार कर लेते हैं। किन्तु यह आसान नहीं होता, यह थोड़ा मुश्किल है। हम पूर्ण रूप से दूसरों के भावों को समझने योग्य नहीं बन पाए हैं, इसलिए हम अरिहंत नहीं बन सकते। विनोद मुनि ने कहा अरिहंत तो बहुत दूर की बात है, हम संत और साधक भी नहीं बन सकते जब तक हमारे अंदर कुशलता नहीं आ जाती है। इसके लिए हमें पहले खेदनीय बनना होगा।
बाहर से आए संघो का किया स्वागत
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि शुक्रवार को आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. के दर्शनलाभ लेने और उनके श्रीमुख से जिनवाणी सुनने के लिए पश्चिम विहार दिल्ली ,अजमेर, उदयपुर, बैंगलुुरु, चैन्नई, मैसूर आदि स्थानों से श्रावक-श्राविकाओं के संघ पहुंचे। जिनका श्री संघ की ओर से स्वागत किया गया। पश्चिम विहार दिल्ली संघ ने धर्मसभा में आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. के चातुर्मास का आग्रह विनोद मुनि से किया।