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बीकानेर,बीकानेर मतदाताओं का मन पढ़ना कठिन है। यही कारण है कि बूथवार रिपोर्ट हाथ में आने के बाद भी जीत- हार के प्रति अधिकांश प्रत्याशी आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं। प्रशासन की ओर से प्रत्याशियाें और उनके एजेंट्स के पास बूथ रिपाेर्ट पहुंच चुकी है।

हर प्रत्याशी उसका आंकलन कर अपनी स्थिति का सटीक आंकलन करने में जुटे हैं। जिले में सबसे ज्यादा नाेखा के हंसासर में 96.84 फीसदी मतदान हुआ। ज्यादातर प्रत्याशियाें काे अंदाजा है कि काैन से गांव में उनके कितने वाेट हैं। उसी हिसाब से गुणा-भाग चल रहा है। काेलायत का हाडलां मतदान प्रतिशत के लिए खासा चर्चित रहता आया है। विधानसभा चुनाव में वहां 90 प्रतिशत से कम पाेलिंग लंबे समय से नहीं हुई। इस साल भी वहां 94.62 प्रतिशत मतदान हुआ।

नाेखा के हंसासर में सर्वाधिक 96.84 प्रतिशत तक मतदान हुआ। 90 प्रतिशत से ज्यादा मतदान वाले बूथ ज्यादातर काेलायत और नाेखा में रहे। नाेखा के राणीसर में 91, शेखासर में 94.76, राहड़ाे की ढाणी में 95.08, बंधड़ा में 93.48 प्रतिशत तक मतदान हुआ। इसी तरह काेलायत के मगनेवाला में 93.11, करणीसर में 91.45 प्रतिशत तक मतदान हुआ। बीकानेर पूर्व में सबसे ज्यादा मतदान घड़सीसर में 87.68 प्रतिशत तक हुआ। लूणकरणसर में जसवंतनगर में 89.11, बामनवाणी में 89.06, गुसाइंडा में 87.33 प्रतिशत मतदान हुआ। लूणकरणसर में नापासर में 45.35 और सींथल के एक बूथ में 48 प्रतिशत तक वाेट पड़े। इसी तरह नाेखा के किसनासर में 47.67 और हिम्मटसर में 45.47 प्रतिशत तक मतदान हुआ। खाजूवााल में 90 प्रतिशत के ऊपर बूथ नहीं पहुंचा लेकिन 80 से 90 प्रतिशत तक के कई बूथ हैं। बीकानेर पश्चिम में भी 80 प्रतिशत मतदान पहुंचा। श्रीडूंगरगढ़ के सालासर में 92.3 प्रतिशत तक वाेटिंग हुई। ऊपनी जाे चुनावी लिहाज से वीआईपी गांव इसलिए है क्याेंकि इस गांव के कई नेता हैं जहां 86.99 प्रतिशत वाेटिंग हुई। उम्मीदवाराें ने अपने-अपने लाेगाें काे पाेलिंग बूथ की स्क्रूटनी में लगा दिया। ज्यादातर उम्मीदवाराें ने गांव और वहां हुई वाेटिंग के आधार पर खुद का आंकलन भी कर लिया है।

कैसे लगा रहे अंदाज

कई गांव ऐसे हैं जहां एक ही पार्टी का ज्यादातर दबदबा रहता है। उदाहरण के ताैर पर श्रीडूंगरगढ़ के झंझेऊ और जाेधासर में ज्यादातर भाजपा का बाेलबाला रहता आया है। इस गांव में ज्यादातर प्रभाव पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी का रहता है। इसी तरह काेलायत में पट्टा के अलावा हाडलां सरीके कई गांव हैं सिर्फ देवी सिंह भाटी के नाम पर वाेट पड़ता है फिर भले ही वाे किसी पार्टी में हाें। नाेखा के कई गांव में ऐसे हालात हैं जहां कुछ गांव पूरे के पूरे कांग्रेस ताे कभी कुछ भाजपा के पक्ष में जाते हैं। नाेखा शहर में इन दाेनाें पार्टियों के अलग कन्हैयालाल झंवर का दबदबा रहता है। लूणकरणसर में ऐसे गांव में कम हैं जाे पूरे के पूरे एक ही पार्टी के पक्षधर हाें फिर भी भाजपा-कांग्रेस के नाम पर कुछ गांव बहुतायत में एक तरफ झुक जाते हैं। खाजूवाला में इस बार के हालात कुछ अलग थे। 2018 के चुनाव में ऐसे कई गांव-ढाणी थे जाे पूरी तरह कांग्रेस के पक्ष में खुलकर वाेटिंग कर चुके हैं लेकिन इस बार थाेड़ा बदलाव दिख रहा है। वाेटिंग के बाद सच्चे दिल से हार-जीत अभी नेता नहीं मान पा रहे क्याेंकि गांव की वाेटिंग प्रतिशत के आधार उनके पक्ष और खिलाफ करीब पांच से 10 हजार वाेटाें का फर्क पड़ सकता है। यहीं नेताओं की चिंता है। मतदान के बाद ज्यादातर उम्मीदवार रिलेक्स माेड में हैं। कुछ विवाह-शादियाें में व्यस्त हाे गए ताे कुछ आराम फरमा रहे हैं। कुछ अभी भी फील्ड में जाकर कार्यकर्ताओं की सुध ले रहे। तीन दिसंबर काे मतगणना हाेगी और उसके बाद ही नेताओं के भाग्य का फैसला हाेगा।

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